सावन
सावन आता है झूम-झूम
नभ लेता धरती चूम-चूम
रवि को ढंकते, घिरते बादल
बांटें खुशियां ये घूम-घूम
लाता है सावन हरियाली
जीवन में छाती खुशहाली
मन जब-जब भी उपवास करे
वह पिया मिलन की आस करे
आया सावन, आया सावन
हर ओर मचे बस यही धूम
संकल्पवान जो साधक हैं
जो शिव जी के आराधक हैं
वे सावन में सह भूख-प्यास
पावन गंगा-सी लिए आस
भोले शंकर की पूजा को
कांवरिए चलते झूम-झूम
धुन एक सिर्फ शिव की लेकर
पग-पग बढ़ते कह-कह शंकर
‘बम-बम भोले’ का जय-निनाद
भू-नभ में छाता आह्लाद
शिव-भक्त धन्य हो जाते हैं
भोले की चौखट चूम-चूम
– सीमा मधुरिमा, लखनऊ
बारिश
बारिश आई, बारिश आई,
बादल गरजे, बिजली कड़की,
झमाझम बारिश हुई,
सभी नदियां और नाले बहने लगे
भारी बारिश हो रही है,
बारिश तेज हो रही है,
पानी ही पानी है रेल पटरियों में,
सड़कें भीगी हुई हैं,
घर-घर पानी ही पानी है,
पेड़ भी पानी हैं,
पंछी भीग गए हैं,
सड़क पानी ही पानी है,
मुंबई की शान,
बारिश में धो-धो,
कोई भागने की,
जद्दोजहद कर रहा है,
कोई किसी को बचा रहा है,
बारिश एक अलग तरह का कोहरा है,
महाराष्ट्र में कोहरा बन गया है,
ये बरसाती धारा,
मुंबई बन गई है तुंबई
– सागर महादेव ठाकरे, उल्हासनगर, मुंबई
डिजिटल
डिजिटल हुई मोहब्बत और शादियां भी डिजिटल
रिश्तों में फॉर्मेलिटी है जो निभ रहे हैं डिजिटल
हाल-चाल अब तो कोरम का उदाहरण है
चैट में समाहित हर रिश्तों का व्याकरण है
अब कौन मिल रहा है रूबरू हो फिजिकल
रिश्तों में फॉर्मेलिटी है जो निभ रहे हैं डिजिटल
मोबाइल ही आजकल के रिश्ते चला रहे हैं
बस जन्म और मरण के संदेश ला रहे हैं
खुशियां दुबक के बैठी कोने में होके मेंटल
रिश्तों में फॉर्मेलिटी है जो निभ रहे हैं डिजिटल
मोबाइल के मामले में सब कर रहे हैं उंगली
जवाब में किसी के अब भेजते हैं उंगली
सवाल-ए-लॉजिकल का जवाब है इलॉजिकल
रिश्तों में फॉर्मेलिटी है जो निभ रहे हैं डिजिटल
बच्चों की डोर भी अब चलभाष्य से बंधी हैं
चलभाष्य की इच्छाएं बच्चों पे जा सधी हैं
मोबाइल हो या बचपन बस हो गया है ऑप्शनल
रिश्तों में फॉर्मेलिटी है जो निभ रहे हैं डिजिटल
– सिद्धार्थ गोरखपुरी, गोरखपुर, उ.प्र.
बेदाग जगहें
परसों उस दरख्त से उड़कर
एक परिंदा आया
मंदिर के कलश पर बैठा
और बीट कर दिया
उड़ने से पहले
कल उस खंभे से उड़कर
एक दूसरा परिंदा आया
मस्जिद के गुंबद पर बैठा
बीट कर दिया उसने भी
उड़ने से पहले लेकिन आज
मैंने देखा तुमने देखा
और सबने देखा
उन परिंदों के बीट का दाग
न तो कलश पर था
और न ही गुंबद पर
– टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’, छत्तीसगढ़
दिल्ली की
इस दिल की बेताबी, संभाले न संभली है
जब-जब याद आई चांद सी लड़की दिल्ली की
अचानक मुझे सामने देख मुस्करा के बोले
‘जनाब बहुत दूर तक ले गए आप याद दिल्ली की’
सुन के अमिताभ और शाहरुख के किस्से
लगा मुंबई भी गोया अब तो हो गई दिल्ली की
भले तबाह हुए, बरबाद हुए हर बार उठ के चल पड़े
मुफलिस हम नहीं, हमारे पास है दौलत दिल्ली की
कितनी बार लुटी उसे खुद भी याद नहीं
पर दिल से न जा सकी जिंदादिली दिल्ली की
– डॉ. रवींद्र कुमार
मेरी सोच का प्रारब्ध तुम
मेरी सोच की, कल्पना हो तुम
मेरी सोच का, विस्तार भी तुम
मेरी सोच की, नियंता हो तुम
मेरी सोच का, माधुर्य भी तुम
मेरी सोच के, अरबाज हो तुम
मेरी सोच की, परवाज भी तुम
मेरी सोच का, आसमां हो तुम
मेरी सोच का, चंद्रमा भी तुम
मेरी सोच की, जिंदगी हो तुम
मेरी सोच की, बंदगी भी तुम
मेरी सोच का, इजहार हो तुम
मेरी सोच का, साकार भी तुम
मेरी सोच का, आकार हो तुम
मेरी सोच के, कई प्रकार तुम
मेरी सोच का, यथार्थ हो तुम
मेरी सोच का, विश्वास भी तुम
मेरी सोच का, समंदर हो तुम
मेरी सोच का, किनारा भी तुम
मेरी सोच का, प्रारब्ध हो तुम।
मेरी सोच का, अवसान भी तुम
– नलिन खोईवाल,
इंदौर