दिव्यांग
अहा! कौन यह आता झुक-झुक,
किए हाथ में लकुटी;
मत हम ताने इसे देखकर
घृणा भाव में भृकुटी।
यह तो है प्रकृति का मारा,
बना दया का पात्र;
और नहीं कुछ इसे चाहिए,
बस अपनापन मात्र।
कोई आता पहन पैर में,
नहीं, हाथ में चप्पल;
घिसट-घिसट चलकर आता,
पछताता-सा वह पल-पल।
कहते लोग इन्हें लंगड़ा,
या अंधा औ फटकारे,
यह तो है दिव्यांग हमें-
अपनत्व हेतु पुकारे।
डॉ. हीरानंद सिंह,
‘हीरा’ मालाड
सादगी
मीठी बोली दयालुता, विनम्रता,
व्यक्तित्व के सुंदर गुण विशेष।
कर्मठता,सत्यप्रियता,विद्वत्ता,
जैसे अनेक गुणों का मिलता संदेश।
सादगी व्यक्तित्व की खास बात,
पसंद लोग अक्सर करते।
अधिकांश महापुरुषों के जीवन,
दूसरों के लिए प्रेरक बनते।
खान पान बातचीत पहनावे में,
हमें दिखती यह सादगी।
जीवन सरल,सरस बनता,
कुछ लोगों में उत्कृष्ट ताजगी।
विचारों की सादगी प्रशंसनीय,
व्यक्ति को सदा मिले सम्मान।
सादा जीवन उच्च विचार,
महापुरुषों के ये लक्षण महान।
चंद्रकांत पांडेय, मुंबई
अपना साहस कमजोर नहीं!
हे ईश्वर! तूने धरती को दिनमान किया
कहीं बनाया पूरा मानव और कहीं दिव्यांग किया
विविध रूप तेरे, हे मालिक!
वसुधा को रत्नो की खान दिया
नहीं सुरक्षित है उनका जीवन
जिनको तूने दिव्यांग किया
धैर्य और साहस देकर धरती पर भेजा
जा मृत्यु लोक में खुद को स्थापित कर
दिखा दो अपना साहस तू कमजोर नहीं
तू भी है अनमोल ईश्वर की रचना।
कुछ लेकर विधाता ने बहुत दिया
अंग भले ही दुर्बल है पर साहस है
शक्ति सदैव रही साथ मे बुद्धि की
दीन हीन लाचार नहीं मैं भी तो मानव हूं।
नूतन सिंह ‘कनक’
अमेठी
हौसले को
पंख लगाएं!
आओ दिव्यांगों को गले लगाए,
उनको उनका अधिकार दिलाए,
करुणा सेवा मानवता का श्रृंगार,
शिक्षा स्नेह दे पूर्ण मनुष्य बनाएं।
भेदभाव न व्यवहार न काम में हो,
सम्मान व्यक्तित्व और नाम में हो,
विकलांगता की सोच को हराने के लिए,
रोजगार का हुनर हर हाथ में हो।
जागरूकता का दीप जलाना होगा,
रुठी खुशियों से मिलाना होगा,
एक ही ईश्वर की हैं संतान सभी,
पूर्ण सहभागिता का भाव जगाना होगा।
विकलांग नहीं दिव्यांग हैं वे,
अपनी खुद एक पहचान है वे,
अक्षमता की सीमा को चीरते हुए,
भरते नई-नई ऊंची उड़ान हैं वे।
सिंधवासिनी तिवारी ‘सिंधु’
वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
वृक्ष समझते सबकी भावना
समझते हैं ये सबकी पीर,
सबको देते हैं लाभ सदा ही
राजा-रंक या अमीर-फकीर!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि
प्रकृति ने अच्छा दृश्य रचा
प्रकृति ने अच्छा दृश्य रचा
इसका उपभोग करें मानव।
प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करके
हम क्यों बन रहे हैं दानव।
ऊंचे वृक्ष घने जंगल ये
सब हैं प्रकृति के वरदान।
इसे नष्ट करने के लिए
तत्पर खड़ा है क्यों इंसान।
इस धरती ने सोना उगला
उगलें हैं हीरों के खान
इसे नष्ट करने के लिए
तत्पर खड़ा है क्यों इंसान।
धरती हमारी माता है
हमें कहते हैं वेद पुराण
इसे नष्ट करने के लिए
तत्पर खड़ा है क्यों इंसान।
हमने अपने कूकर्मों से
हरियाली को कर डाला शमशान
इसे नष्ट करने के लिए
तत्पर खड़ा है क्यों इंसान।
अरुण कुमार
लड़की को अपनाओ
लड़की को पराई न समझो
उसकी सगाई जल्दी न रचाया करो
पहले उसको पढ़ाई कराओ
उसको अपने पैरों पर खड़े कराओ
घूंघट पर्दाकशी दानवीर का गहना मत पहनाओ
इसको शूरवीर, कर्मवीर, परमवीर से भरपूर कराओ
लड़की को इतना शरमाई न समझो
लड़की को पराई न समझो।
अपना ही घर उसे बेगाना समझता
दूसरा घर भी आसानी से न अपनाता
न इधर टिके न उधर बसे
कहीं भी उसे जगह न मिले
असमय की जंजीरों में जकड़ी रहे
पराया धन समझ के उसे लुटाते
उसकी ख्वाइशों को नजर अंदाज करते
उस पर क्यूं इतना सितम ढ़ाते
वो मौके की तालाश में बैठी रहती
सोचती रहती वो भी अपना दम दिखाती
अपने श्रम से अपना कर्म दिखाती
लड़की तो माता नारायणी का रूप कहलाई
लड़की को इतना सहमाई न समझो
लड़की को पराई न समझो।
अन्नपूर्णा कौल, नोएडा
मायने रखना
न मंजिल न सफर मायने रखता है
हमसफर कौन है मायने रखता है!
मेरी गलतियां बेझिझक बताता है
सच्चा दोस्त आईना सामने रखता है!
एक बात के कई मतलब निकलते हैं
बात कहेने का ढंग मायने रखता है!
हर चीज मे खूबसुरती छुपी होती है
देखेने वाले का नजरिया मायने रखता है!
सब शास्त्रों का एक ही ज्ञान है
अमल में क्या लाया मायने रखता है!
अविनाश
धरती मां को
भी सजाओ!
बदन पर लेप लपेटे हो
कई ब्रांडेड प्रसाधनों के
होठों पर लगाकर लाली
लहराते हो काले बाल।
पहनकर निकलते हो
रेशमी परिधान निकल पड़े हो
बिखेरते हुए खूशबू इतर के
कूड़े-कचरे को हटाकर
साफ कर दिए बना दिए घर को स्वर्ग।
सड़क पर जा फेंका गया
तुम्हारे घर का कचरा
देखो वैâसा दुर्गंध पैâला हुआ है!
बड़े आम और अमरूद के पेड़
काटकर बना लिए हो महल
कभी सोचा है वैâसे जी पाओगे
ऑक्सीजन के बगैर!
आज जैसे खुद को सजाए हो
अगर धरती मां को भी सजाओ
कभी न लगाने पड़े चेहरे पर
यह कीमती प्रसाधन न इतर।
समय रहते संभल जाओ
अपना पर्यावरण संरक्षण करो
साफ रखो खुशहाल रहो।
रमेश कुमार
घूंघट!
घूंघट की आड़ में मैं समाई हूं
न जाने कितने सपने इन आंखों में बसाई हूं
ऐसे कई दर्द के किस्से लेकर मन में बात छुपाई हूं
घूंघट उठ न जाए इसी बात से मैं घबराई हूं
इस घूंघट की आड़ में मैं समाई हूं।
अपने आंसुओं से कई बातें बताई हूं
कितने गिले-शिकवे थे जिनसे मैं बाट पाई हूं,
`खुद की ख्वाहिशों का गला घोंट कर
घूंघट की आड़ में मैं कई बार पछताई हूं।
शिकायतें करके भी खुद से पढ़ी-लिखी होकर
भी मैं अनपढ़ ही कहलाई हूं
जरा गौर से इस घूंघट को देखो
पलके भिगोकर भी झूठी खुशियों
का बोझ उठाई हूं।
इसी घूंघट की आड़ में मैं इस तरह से समाई हूं।
अंजू यादव, मुंबई
कमाल कर दिया मां
कमाल कर दिया मां मालामाल
कर दिया मां
बेहाल था मैं अच्छा भला हाल
कर दिया मां
नवरात्रि में आ मां नवरात्रि में आ मां
न रहने का घर था न खाने का था खाना
ममतामयी ओ मैया मेरा भर दिया खजाना
ख्याल कर दिया मां खुशहाल कर दिया मां
बेहाल था मैं अच्छा भला।
दुनिया के ठोकरों से मैं थक गया माता
गम का गले में हार था खुशियां न था सुहाता
धमाल कर दिया मां संभाल तू लिया मां
बेहाल था मैं अच्छा भला वश आखिर में
मेरी इतनी अरज तू सुन ले मां।
जब जाऊं इस जहां से तो चरणों में जगह दे
सबाल सुन लिया मां हल कर दिया मां
बेहाल था मैं अच्छा भला हाल कर दिया
मां कमाल कर दिया मां
नवरात्रि में आ मां नवरात्रि में आ मां।
संजीव कुमार पांडेय, नालंदा