माता ब्रह्मचारिणी
दुर्गा का दूसरा रूप सलोना, ब्रह्मचारिणी माता कहलाई।
कानों में कुंडल हाथ कमंडल श्वेतवसन में माता सुहाई।।
दाहीन हाथ में जप की माला बाएं हाथ कमंडल उठाई।
निकली हिमालय के घर से, किन्ही तपस्या पहाड़ों पे जाई।।
प्रेम विवश हो राजा की बेटी जंगल में तन दीन्ही तपाई।
शिव से ब्याह रचावन खातिर, वर्ष हजार अन्न नहीं खाई।।
वर्ष हजारों तो पत्ते खाकर शिव आराधन में थी बिताई।
पत्ता भी जब छोड़ दियो तब, नाम अपर्णा थी कहलाई।।
ठाढ़ रही जल भीतर निशदिन, वेश बदल शिव शंकर आई।
प्रेमप्रगाढ़ सुनावन खातिर, लिन्ही परीक्षा बहुबिधि जाई।।
प्रेम शिवा है प्रेम है शक्ति, प्रेम अलौकिक प्रेम मिताई।
सती ही पार्वती बन जन्मी शिवशंकर से ब्याह रचाई।।
भक्तों से माता प्रसन्न भई हैं, सबने खीर का भोग लगाई।
खीर नहीं यदि संभव हो तो, मिश्री भक्तों में दीन्ही बटाई।।
पूजन-अर्चन कर लो मां की, ईर्ष्या द्वेष भस्म होइ जाई।
बुद्धि विवेक बढ़ेगी हर पल, अहंकार आलस छंटि जाई।।
-सत्भामा सिंह
मेरी मां
मां दुर्गा का नौ रूप निराला
जन-जन का मन हरसे
जिस पर हो मां तेरी दृष्टि
उस पर प्रेम सुधा रस बरसे।
संपूर्ण विश्व की जननी तू है
तुझ बिन जीवन नहीं धरा पे
तेरे श्वास से चलती है सृष्टि
हर जीव-सृजन है तुझसे।
तेरी गोद में स्वर्ग है माते
तेरे दरस को मन ये तरसे
तेरी ममता बिन नर्क यह जीवन
अब मोह नहीं दुनिया से।
तू शांत तू विक्रांत तू
सब देव-दानव तुझसे
अति सुक्ष्म तू विशाल तू
शस्त्र-शास्त्रों में धार, ज्ञान तुझसे।
तेरे दर की डगर बड़ी कठिन है मां
किस विधि मिलूं मैं तुझसे
तेरे चरणों की ‘पूजा’ है दासी
अब दूर न कर तू खुद से
मां दूर न कर तू खुद से।
-पूजा पांडे ‘गार्गी’
हमें तार देना
नमामी भवानी हमें तार देना
सुनो मात अंबा सदाचार देना
तुम्हारी दया की हमें कामना है
मिटाना सभी के अनाचार देना
खड़ी एक अंधी दुवारे तुम्हारे
बड़े भाव से आपको वो पुकारे
दिखाना दया आंख देना उसे मां
खड़े आज हैं भक्त द्वारे तुम्हारे
नहीं ज्ञान आता नहीं ध्यान आता
यही जानती आप ही हो विधाता
लगा दो कभी पार मेरी भी नैया
दिखा दो दया आज हे अंबे माता
-सीमा ‘नयन’
जरा ठहरो
जरा ठहरो अभी कुछ देर फिर चाहे चले जाना।
अजनबी ऐ मुसाफिर तुम भले मत लौट के आना।।
मुहब्बत दास्तां ऐसी है जो दिल, दिल पे लिखता है।
गवाही है नहीं इसकी मगर तुम भी न झुठलाना।।
बिना सोचे, बिना समझे मोहब्बत हो ही जाती है।
नहीं मुमकिन है खुद को खींच लाना और समझाना।।
अगरचे बोलना, सच बोलना बेशक वो कड़वा हो।
कभी भी झूठ का लेकर सहारा दिल न बहलाना।।
अगर जाने की जल्दी है तो जाओ पर ये बतला दो।
तेरी नजरों में जो देखा है बतलाते न शरमाना।।
मोहब्बत का असर तुम पर भी है कहता ये दिल मेरा।
अगर सच हैं मेरी बातें तो मिलने लौटकर आना।।
न आना सोचकर कि मैं परेशां हूं मोहब्बत में।
यही किस्मत मेरी ‘शिब्बू’ है इससे तुम न घबराना।।
-‘शिब्बू’ गाजीपुरी
जरा ठहरो
जरा ठहरो अभी कुछ देर फिर चाहे चले जाना।
अजनबी ऐ मुसाफिर तुम भले मत लौट के आना।।
मुहब्बत दास्तां ऐसी है जो दिल, दिल पे लिखता है।
गवाही है नहीं इसकी मगर तुम भी न झुठलाना।।
बिना सोचे, बिना समझे मोहब्बत हो ही जाती है।
नहीं मुमकिन है खुद को खींच लाना और समझाना।।
अगरचे बोलना, सच बोलना बेशक वो कड़वा हो।
कभी भी झूठ का लेकर सहारा दिल न बहलाना।।
अगर जाने की जल्दी है तो जाओ पर ये बतला दो।
तेरी नजरों में जो देखा है बतलाते न शरमाना।।
मोहब्बत का असर तुम पर भी है कहता ये दिल मेरा।
अगर सच हैं मेरी बातें तो मिलने लौटकर आना।।
न आना सोचकर कि मैं परेशां हूं मोहब्बत में।
यही किस्मत मेरी ‘शिब्बू’ है इससे तुम न घबराना।।
-‘शिब्बू’ गाजीपुरी
‘वैमनस्यता’
चुटकी भर की मेरी काया,
क्या सागर कर पाऊंगा?
मतभेदों की गांठें इतनी,
क्या खोल अकेले पाऊंगा?
अंतर्मन का खारा पानी,
क्या मीठा कर पाऊंगा?
धधक रही नफरत की ज्वाला,
क्या यह आग बुझाऊंगा?
ऊंची-ऊंची इन लहरों से,
क्या बाहर आ पाऊंगा?
मस्तिष्क पटल के नीरवता में,
क्या मैं लुत्फ उठाऊंगा।
सूख रहे रिश्ते नाते जो,
क्या जीवित कर पाऊंगा?
अपना घर न संभल रहा है,
क्या दूजे कर पाऊंगा?
-राजेंद्र प्रसाद पांडेय
मां-बाप हैं
इतनी जल्दी किसी चीज से हार न मानो
वह तो मां-बाप हैं उनकी हर बात मानो
जो वह खुद न कर सके वही इच्छा जाहिर करते हैं
तुम समझ सको तो करो वरना अपनी बात को समझाओ।
तुम्हारी इच्छा तुम्हारे सपने कहीं-न-कहीं वह भी जानते हैं पर दुनिया के आंधी-तूफानों से डर के शायद अपनी हर बात मनवाते हैं
वह तो मां-बाप हैं उनकी हर बात मानो।
परिस्थितियों से मजबूर होकर अपनी पढ़ाई छोड़ी यह सोचकर मैं नहीं तो मेरा आनेवाला कल करेगा
इसी इंतजार में उन्होंने
२० साल गुजारे कि मेरा बेटा कब बड़ा होगा।
उनसे कीमती इस दुनिया में न कोई है और न कोई होगा इस बात को खुद समझो और दूसरों को समझाओ।
इतनी जल्दी किसी चीज से हार न मानो
वह तो मां-बाप हैं उनकी हर बात मानो।
-सेजल यादव
यूं नहीं रूठना
प्रीत हमसे है तो बोलना चाहिए।
इश्क में फिर सुनो डोलना चाहिए।।
तुम अगर मुस्कुरा दो जरा भी सजन।
फिर न कोई हमें हौसला चाहिए।।
जिंदगी है मेरी डूबती नाव सी।
बस तेरे प्यार का घोंसला चाहिए।।
पीर है गर कोई यार बोलो जरा।
प्यार में यूं नहीं रूठना चाहिए।।
चाहते हो अगर प्यार सबका मिले।
राज यूं ही नहीं खोलना चाहिए।।
मीत हो यदि मेरे दोष मेरे हरो।
अन्यथा फिर सुनो फासला चाहिए।।
बिन तुम्हारे सुनो मैं तो कुछ भी नहीं।
साथ में हम रहें सिलसिला चाहिए।।
प्यार हमसे अगर है तो मेरी सुनो।
जख्म सह लूं सभी आसरा चाहिए।।
-धीरेंद्र वर्मा ‘धीर’
वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
सर्प लिपटा रहे वृक्ष पर
या कोयल गाए उस पर गीत,
हर हाल में खुशियां बांटें हैं
वृक्ष कभी न होते भयभीत!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि
सृष्टि का खेल
नव सर्जन केतु सृष्टि का
नवनिर्माण सेतु सृष्टि का
जथा जन्म ले पल्लव दल
नवजीवन है हेतु सृष्टि का
पूर्व रचित है कर्म सृष्टि का
जीवन-मृत्यु सत्य सृष्टि का
आने-जाने वाले सब मिल
आओ मनाएं पर्व सृष्टि का
सुंदर कोमल अंग सृष्टि का
प्रलय भयंकर रंग सृष्टि का
अखिल विश्व नतमस्तक हो
ऐसा विस्मित खेल सृष्टि का
भेद अनूप अपार सृष्टि का
सब मिल करें मान सृष्टि का
यद्यपि इसका रूप विनाशक
करते सब आह्वान सृष्टि का
अभिनंदन आभार सृष्टि का
जीवन है उपकार सृष्टि का
पंचभूत हैं नियति के अंग
जन-जन को आधार सृष्टि का
मानुष है बस रूप सृष्टि का
कहीं छांव कहीं धूप सृष्टि का
मोह, मान, मद छोड़ दे प्यारे
मंगल नहीं है अंत सृष्टि का
उठो औ करो ध्यान सृष्टि का
चलो बढ़ाएं मान सृष्टि का
छोड़-छाड़कर माया के टंटे
आओ करें सम्मान सृष्टि का।
-विनय सिंह ‘विनम्र’
षड्यंत्र
उसके घर में
दाने-दाने को तरस रहे
भूखे मर रहे थे
लोग
और वह
आधुनिक अस्त्र शस्त्र
खरीदने में व्यस्त था
उस दुश्मन का डर दिखाकर
जिसके घर में भी
उतने ही लोग
तरस रहे हैं
दाने-दाने को
और मर रहे हैं
भूख से।
-हूबनाथ
कहां रह गई है बहार
कहां रह गई है बहार आते आते
कहीं जां न जाए करार आते आते
नसीहत न दो दौर-ए-नौ की है औलाद
बिगड़ और जाती सुधार आते आते
ये आराई-ए-रुख ज्यादा न अच्छा
न घिस जाए तलवार धार आते आते
करो खाद-पानी से खिदमत शजर की
वगरना ये सूखे शुमार आते आते
मिला ही नहीं कर्ज अरमां हुए खाक
बिकी साइकिल मेरी `कार’ आते आते
हवस थी जहां की या मजबूर थे हम
लुटी बज्म-ए-दिल पास-दार आते आते।
-बिट्टू जैन ‘सना’
शमा बुझा दिया उसने
प्यार में उसने बेहयाई की।
दिल लगा करके जग हंसाई की।।
दिल जला रात-दिन मुहब्बत में।
यार ने मुझसे बेवफाई की।।
हम भी वैâसे लड़े जमाने से।
उसने मुझसे ही जब लड़ाई की।।
बंदगी जो नहीं किया करते।
बात करते हैं वो खुदाई की।।
इश्क में हमको वैâद रहने दो।
अब जरूरत नहीं रिहाई की।।
गंदगी खुद जो रोज करते हैं।
बात करते हैं वो सफाई की।।
आज शमा बुझा दिया उसने।
दोस्ती-प्यार में बुराई की।।
सबकी नजरें जुदा-जुदा सी हैं।
जब से हमने है कुछ कमाई की।।
ख्वाहिशें अब नही ‘कनक’ को है।
जिंदगी में किसी बड़ाई की।।
-नूतन सिंह ‘कनक’