मुख्यपृष्ठनमस्ते सामना21 जून के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

21 जून के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

नदी हूं
मैं हूं एक नदी सदैव यूं ही बहती रहूंगी
न डालो कचरा कब तक सब सहती रहूंगी
न रहूंगी तो प्यास कैसे अपनी बुझाओगे
अनाज के लिए तुम भी एक दिन तरस जाओगे
न पेड़ रहेंगे कहीं न ही खलियान रहेंगे
बना दोगे जो नाला तो जीव-जंतु भी न रहेगें
पेड़ों पर चिड़िया न चहकेगी, न कोयल कुहू बोलेगी
यह मंद पवन भी जरा थम-थम के ही बहेगी
न हो पाएगा छठी मैया पूजा, न मन पाएगा कोई तीज-त्यौहार
ज्यों सूख गई तो न चल पाएगा यह विशाल संसार
नावों से निकले धुएं, पेट्रोल न यहां विलीन करो
तुम्हारी ही प्यास बुझाऊंगी जरा संभलकर ध्यान रखा करो
मैं हूं एक नदी सदैव यूं ही बहती रहूंगी
न डालो कचरा कब तक सब सहती रहूंगी
– डॉ. निशा सतीश चन्द्र मिश्रा ‘यामिनी’, मुंबई (मीरा रोड)

मन का गीत
गम की खिजा में खो गई जिंदगी आहत हो गई
आंखों के दर्पण ने दिखाई ऐसी तस्वीर
पलकों को नम होने की आदत हो गई
सोच रहा नदियों का किनारा बन के सहारा
दु:खी मन को मेरे से मिलने से राहत हो गई
मुद्दतों से हर घड़ी को सपने में पिरोते हैं
हकीकत बेनजर हो गई निगाहों में नजाकत आ गई
ताकते-ताकते थक गए नैन वैâसे कटे दिन और रैन
इंतजार की बस कयामत हो गई
ख़ुशी दबे पांव चली किसी और की गली
न वो रुके न वो मुड़े जिगर को टूटने की इजाजत हो गई
कितनी देर से गुमसुम बैठे हैं
किसी की आहट से मचलते मन को कुछ शरारत हो गई
काली घटा के छाने से बादल गरजने से
मन को किसी से मिलने की चाहत हो गई
कागज की नाव बारिश के पानी में बहाई
बीती यादों से होंठों पर मुस्कराहट आ गई
जुदा जमाने से मन मीत के आने से
गुलशन-ए-बहार छाने से इस दिल को बेगाना हो गई।
– अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

योग रखेगा, पूर्ण निरोग
प्रात:काल करें शारीरिक योग
स्वास्थ्य लाभ अकाट्य प्रयोग
सुलभ योग करे हमें निरोग
योग साधना अध्यात्म है योग
मन मस्तिष्क में जगे प्रयोग
स्वस्थ शरीर हो भागे रोग
विश्व भी मांगे यह सहयोग
विश्व में दिखता अब प्रयोग
दुनिया समझे योग उपयोग,
योग रखेगा सबको जोग
दवा-दारू है विफल प्रयोग
योग रहस्य है कसरत योग
हसरत पूरे करता योग
योग निहित हो सबकी फितरत
आदि काल से मेहनत-कसरत
सादा जीवन उच्च विचार
योग से निकले सभी विकार
योग से पनपे शुद्ध विचार
आओ मनाएं विश्व में योग
अपनाकर घर-घर में योग
दुनिया हो अब पूर्ण निरोग
– संजय सिंह ‘चंदन’

मोबाइल सेवा
विज्ञान ने किया ऐसा कमाल
इंसान के हाथ में पहुंचाया आराम का सामान
मोबाइल सेवा से जीवन हुआ आसान
मुफ्त में ही मिल जाए सारा सामान
सबने किया इसका स्वागत
बैठकर काम करने की पड़ गई आदत
ये बन गया जीवन का दस्तूर
इसके बिना जीना हुआ फिजूल
सुबह उठ के पहले मोबाइल देखें
बाद में प्रभु के दर्शन करें
घंटों बैठ के चैट करना
घंटों एकांत में जाकर बातें करना
हमेशा सिर झुका रखता है इंसान
अब खेलने बाहर कोई न जाए
मोबाइल को ही खेलने का जरिया बनाए
अब कंप्यूटर की जरूरत न पड़े
मोबाइल से ही सारा काम निपटाए
बिल बाहर जा के भरने का झंझट हुआ खत्म
घर बैठकर ही शॉपिंग करें
ऑनलाइन ही पैसे भरें
रात-रात भर जागते रहें
जब मन चाहे पसंदीदा कार्यक्रम देखें
पहले सब बाहर घूमने जाते
सुख दु:ख आपस में बांटते
अब वो भी मोबाइल पर ही शेयर करें
हवा से काम करनेवाला यंत्र कहलाए
बिना तार के ही चलता जाए
यह यंत्र हानिकारक भी सिद्ध हुआ
इंसान विभिन्न बीमारियों से पस्त हुआ
मोबाइल बना एक ऐसा साधन
मशीन एक है काम अनेक
– अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

दौड़ जारी है
दौड़ अभी जारी है, दौड़ अभी जारी है
कदमों में पड़े छाले, तकदीर ने ठोकर मारी है
दौड़ अभी जारी है, दौड़ अभी जारी है
जुगनू की ताकत क्या, अंगारों को बतलाना है
सपनों की तपिश से हमें, फौलादों को पिघलना है
चट्टानों के डर से भला, नदियां कब हारी हैं
सागर में मिल जाने की, छाई उनपे खुमारी है
दौड़ अभी जारी है, दौड़ अभी जारी है
हार की ग्लानियों को, घोंट-घोंट कर पीना है
पर्वतों सा कठोर यहां, देखो अपना सीना है
हार से हमें भय कैसा, जब जीत की कोशिश जारी है
दर्द से भला क्या गिला, जब जख्मों से अपनी यारी है
दौड़ अभी जारी है, दौड़ अभी जारी है
फूलों की खुशबू की तरह, हवाओं में उड़ जाना है
जमीं से अपना नाता क्या,
आसमां अपना ठिकाना है
तूफानों से लड़के हमने, मारी बाजी सारी है
किसी और का अब हक नहीं, ओ मंजिल बस हमारी है
दौड़ अभी जारी है, दौड़ अभी जारी है
– विशाल रामप्रवेश गौड, नालासोपारा, मुंबई

आप न होते...
आप न होते
संसार न मिलता
हम ना होते।
पेड़-सी छाया
जीवन वटवृक्ष
पिता ही काया।
मां सम नहीं
धीर-गंभीर होते
वो कम नहीं।
सब सिखाया
थामी सदा उंगली
बने वे साया।
करूं प्रणाम
सर्वोत्तम हैं पिता
उनसे नाम।
उनका कर्ज
हाथ नहीं छोड़ना
निभाना फर्ज।
आंसू न देना
चाहते वो प्रगति
मान रखना।
सुनें उनकी
सबक का खजाना
सीख उनकी।
सब जानते
फटे जूते रहते
वो मुस्कुराते।
बहाते स्वेद
हर इच्छा सुनते
अकेले रोते।
पिता का कांधा,
सबसे मजबूत
दु:ख था आधा।
फिर न मिलें
दें खुशियां उनको
पिता अमोल
– अजय जैन ‘विकल्प’,
इंदौर, मध्य प्रदेश

 

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