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मछली की ‘चन्ना एंपिबियस’ प्रजाति की ९२ वर्षों बाद पुनर्खोज!..ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन की ‘चमकदार’ उपलब्धि…तेजस ठाकरे के नेतृत्व वाली टीम के शोध में एक और अग्रणी भूमिका

सामना संवाददाता / मुंबई

विश्व प्रसिद्ध ‘फोर्ब्स’ पत्रिका द्वारा सराहे गए ‘ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन’ ने दुर्लभ वन्यजीवों के शोध में एक और ‘चमकदार’ उपलब्धि हासिल की है। ‘स्नेकहेड’ मछली प्रजाति में से ‘चन्ना एंपिबियस’ नामक दुर्लभ प्रजाति की ९२ वर्षों बाद पुन: खोज करने में ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन को सफलता मिली है। आकर्षक चमकदार रंग वाली ‘चन्ना’ प्रजाति की यह नई मछली पश्चिम बंगाल की चेल नदी में पाई गई है। इससे पहले १९३३ में यह प्रजाति देखी गई थी। इसकी तस्वीर पहली बार दुनिया के सामने आई है।
ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन के माध्यम से तेजस ठाकरे के नेतृत्व वाली शोधक टीम ने ‘चन्ना एंपिबियस’ प्रजाति की पुन: खोज की है। टीम में प्रवीणराज जयसिंह, नल्लाथांबी मौलीधरन, बालाजी विजयकृष्णन और गौरव कुमार नंदा भी शामिल थे। शरीर पर आकर्षक, चमकदार रंग वाली मछली की प्रजातियों को ‘स्नेकहेड’ कहा जाता है। ‘चन्ना एंपिबियस’ प्रजाति का आकर्षक रंग इसकी विशेष पहचान है।
पहली बार १८४० में मिली थी ‘चन्ना एंपिबियस’!

‘ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन’ ने दुर्लभ वन्यजीवों के शोध में एक और शानदार उपलब्धि हासिल की है। ‘चन्ना एंपिबियस’ नामक दुर्लभ प्रजाति की मछली की पुन: खोज करने में ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन को सफलता मिली है। सबसे पहले १८४० में इस प्रजाति की खोज की गई थी। इसके बाद यह प्रजाति विलुप्त हो गई थी।
ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन की सराहना
‘चन्ना एंपिबियस’ की खोज को ‘जूटैक्सा’ पत्रिका ने सराहा है और शोध की प्रशंसा करते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। तेजस ठाकरे के नेतृत्व वाली टीम ने दुर्लभ वन्यजीवों के शोध में अपनी अग्रणी भूमिका बनाए रखी है। इस वजह से ठाकरे वाइल्डलाइफ फाउंडेशन की हर स्तर पर सराहना हो रही है।
दुर्लभ प्रजाति की विशेषता
‘चेल स्नेकहेड’ के नाम से जानी जाने वाली ‘चन्ना एंपिबियस’ प्रजाति हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली बड़ी ‘स्नेकहेड’ प्रजातियों में से एक है। इस प्रजाति का रंग चमकदार और बेहद आकर्षक है। मछली के शरीर पर पीले और नारंगी रंग की धारियां होती हैं और मछली का अधिकतम आकार २०५ से २७० मिमी तक होता है।

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