– राजेश विक्रांत
एक सयाने ने तुलसीदास की चौपाई के संशोधित वर्जन में कहा है कि जहं जहं कदम पड़े सन्तन के तहं तहं बंटाधार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामले में ये बात एकदम सही है। वे एक महत्वपूर्ण क्रिकेट मैच देखने चले गए तो हिंदुस्थान हार गया। वे जब चुनावी बोलबचन कर रहे थे, तभी ५ मई को नीट-यूजी का आयोजन ४,७५० केंद्रों पर कराया गया। इसमें लगभग २४ लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे।
देशभर के सरकारी और निजी संस्थानों में एमबीबीएस, बीडीएस, आयुष और अन्य संबंधित पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी-एनटीए ने इसे आयोजित किया था। पहले इस परीक्षा के परिणाम १४ जून को आने की उम्मीद थी, लेकिन उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन समय से पहले पूरा होने पर परिणाम ४ जून, जब मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, को घोषित किया गया, लिहाजा बवाल होना ही था।
जहां मोदी हैं वहां गड़बड़झाला होना ही है, सो हो गया। वो कहते हैं न कि जहां एनडीए सरकार का हवाला, वहीं गड़बड़झाला। पेपर लीक, भारी संख्या में टॉपर, गिरफ्तारियां, पुलिस, सीबीआई और फिर सुप्रीम कोर्ट, इससे एनडीए सरकार की परीक्षा व्यवस्था पर कलंक लग गया। एनटीए की साख मिट्टी में मिल गई। और अब सुप्रीम कोर्ट आठ जुलाई को विवादों से घिरे नीट-यूजी से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिनमें पांच मई को आयोजित परीक्षा में अनियमितताओं का आरोप लगाने वाली याचिकाएं भी शामिल हैं। नीट-यूजी परीक्षा मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अभी तक २६ याचिकाएं सूचीबद्ध की गई हैं। ये सभी याचिकाएं अलग-अलग तरह की हैं। इनमें शिक्षण संस्थान परीक्षा देने वाले छात्र और संगठन हैं।
इसके बाद एक के बाद एक परीक्षाएं वैंâसिल होती गर्इं। लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर लग गया है, लेकिन एनडीए सरकार अभी भी मामले को हल्के में ले रही है। जबकि राजस्थान, हरियाणा, बिहार और गुजरात में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। गुजरात, बिहार व महाराष्ट्र में नीट पेपर लीक में २ दर्जन से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं। इस प्रकरण में परीक्षाओं में धांधली कराने में देशभर के ५८,००० करोड़ रुपए की कोचिंग इंडस्ट्री की भी भूमिका है, पर सरकार अभी तक सोई पड़ी है।
सवाल ये भी उठता है कि जब चुनाव के लिए पेपर बैलेट की बजाय ईवीएम का इस्तेमाल होने लगा है तो नीट- यूजी परीक्षा कागज-कलम मोड में क्यों होती है? और एनटीए जो कि चीन की गाओकाओ के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा परीक्षा आयोजक है, जो नीट-यूजी के साथ जेईई मेन, यूजीसी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा- नेट, साझा विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा-सीयू ईटी, सामान्य प्रबंधन प्रवेश परीक्षा-सीमैट, आईसीएआर अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा, होटल प्रबंधन संयुक्त प्रवेश परीक्षा, आईआईएफटी प्रवेश परीक्षा, पीएचडी प्रवेश परीक्षा, ग्रेजुएट फार्मेसी एप्टीट्यूड टेस्ट-जीपैट समेत कुल १५ प्रवेश परीक्षाएं और फेलोशिप आयोजित करता है और २०२३ में उसके साथ १.२३ करोड़ आवेदक थे, की व्यवस्था इतनी लचर क्यों है? उस पर कोई अंकुश क्यों नहीं है? क्यों सरकार ने उसे लाखों छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार दिया? इस बवंडर की जिम्मेदार एनटीए को अब तक सजा क्यों नहीं दी गई? क्या एनडीए सरकार परीक्षा माफिया तथा कोचिंग माफिया के इशारे पर काम करती है? क्योंकि नीट स्कैंडल की वजह से यूजीसी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा- नेट वैंâसिल हुई, नीट पीजी तथा सीएसआईआर नेट भी नहीं हुई।
एनटीए २०१७ में गठित हुई। नीट-यूजी में २०२०, २०२१ तथा २०२२ में गड़बड़ी की शिकायतें मिली। २०२४ में तो गड़बड़ी के सारे रिकॉर्ड टूट गए। इससे पहले महज दो या तीन टॉपर होते थे, इस बार ६७ हो गए जिन्होंने पूरे के पूरे अंक हासिल किए। जो एनटीए के इतिहास में पहली बार हुआ। हरियाणा के एक ही केंद्र से ६ उम्मीदवारों ने ६१ अन्य के साथ पूरे ७२० अंक प्राप्त किए।
इसकी वजह एनटीए का मनमाने ढंग से १,५६३ छात्रों को ग्रेस अंक बांटना था। जिससे अनियमितताओं और ग्रेस अंकों की भूमिका पर संदेह हुआ। पेपर लीक सहित अनियमितताओं के आरोपों के कारण विरोध प्रदर्शन और मुकदमेबाजी हुई, काफी उम्मीदवारों ने पूर्ण पुन: परीक्षा की मांग की। ग्रेस अंक रद्द हुए। १,५६३ के लिए दोबारा परीक्षा हुई। दोबारा परीक्षा देने वाले किसी भी टॉपर के इस बार ७२० में ७२० अंक नहीं आए हैं। परीक्षा में ८१३ छात्र शामिल हुए थे, इनमें से पांच ऐसे थे, जिन्हें पहले के रिजल्ट में पूरे अंक मिले थे। इस बार के रिजल्ट में इन पांच में से किसी के भी पूरे अंक नहीं आए हैं। इस प्रकार नीट- यूजी के पहले जारी नतीजों में जहां कुल ६७ छात्रों ने टॉप किया था, वहीं इस बार के जारी नतीजों के बाद टॉपर्स की संख्या ६१ रह गई है।
कहते हैं कि परीक्षा केंद्रों पर गंभीर अनियमितताएं थीं। ६ टॉपरों वाला हरियाणा का परीक्षा केंद्र स्थानीय भाजपा युवा इकाई के प्रमुख की पत्नी का था। अनेक केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरों की अपर्याप्त व्यवस्था थी। स्ट्रांग रूम बिना गार्ड के थे, स्टॉफ का बायोमेट्रिक डाटा अपूर्ण था। ऐसी भी संभावना है कि एनटीए के सुरक्षा प्रोटोकॉल से गंभीर छेड़खानी भी हुई है। संगठित साइबर हमले का अंदेशा है। हमलावर ब्लैक बॉक्स तक पहुंच गए जहां केंद्रीय रूप से प्रश्नपत्र रखे जाते हैं।
बहरहाल, अब तक एनडीए सरकार लीपापोती ही कर रही है, जबकि उसे कागज-कलम मोड की बजाय तत्काल कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट-सीबीटी अपना लेना चाहिए। साइबर हमलावरों से बचने की फुलप्रूफ योजना लागू करनी चाहिए। इसके साथ ही अमेरिका जैसे दूसरे देशों से सीखने की भी जरूरत है जहां पर कॉलेज व विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए एसएटी, एसीएटी और जीआरई जैसी मानक परीक्षाएं होती हैं जिसमें रटने की बजाय मानक सोच का मूल्यांकन किया जाता है। इससे कोचिंग सेंटरों की अहमियत घट जाएगी। वैसे, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तो कहा है कि हम परीक्षाओं को १०० फीसदी फुलप्रूफ बनाएंगे, पर वैâसे? आज सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है।