मुख्यपृष्ठस्तंभप्रासंगिक : मोदी का गुजरात प्रेम महाराष्ट्र को उजाड़ देगा!

प्रासंगिक : मोदी का गुजरात प्रेम महाराष्ट्र को उजाड़ देगा!

लोकमित्र गौतम

यह पांच साल पहले फरवरी २०१९ की बात है। मुंबई के पड़ोस में स्थित पालघर जिले में आगरी समुदाय ‘मुंबई-अमदाबाद बुलेट ट्रेन’ प्रोजेक्ट के विरोध में आंदोलन कर रहा था। चूंकि उन दिनों मैं नई दिल्ली स्थित एक वेबसाइट के लिए लाइव रिपोर्टिंग भी किया करता था इसलिए मैं यहां आंदोलन को कवर करने पहुंचा था। आंदोलन में मछली मारनेवाले आगरी समुदाय के अलावा कई दूसरे आदिवासी समुदायों की भी बहुत बेचैन भागीदारी थी। आंदोलन की तीव्रता और ग्रैविटी को देखकर मेरे मन में यह सवाल उभरा कि आखिर यह समुदाय बुलेट ट्रेन का इस कदर विरोध क्यों कर रहा है? मैंने एक सामान्य आंदोलनकारी से पूछा भाई आप लोग बुलेट ट्रेन का इतना तीखा विरोध क्यों कर रहे हैं? इस पर उसने जो एक-दो कारण बताए कि वे तो थोड़े बहुत समझ में आए क्योंकि सामान्य कारण थे, लेकिन फिर उसने एक ऐसा कारण बताया जो बिल्कुल मेरे सिर के ऊपर से होकर गुजर गया। उसने कहा आपको मालूम नहीं है, एक बार बुलेट ट्रेन चालू हो जाएगी तो मुंबई में जो बड़ी-बड़ी कंपनियों के दफ्तर हैं, वे सब अमदाबाद चले जाएंगे। जवाब सुनकर एकबारगी तो मेरी कुछ समझ में ही नहीं आया कि आखिर जो एक सामान्य ग्रामीण कह रहा है, उसका मतलब क्या है?
क्योंकि मुझे लग ही नहीं रहा था कि वह सामान्य सा ग्रामीण व्यक्ति कॉरपोरेट हेड आफिसेज की मुंबई से अमदाबाद शिफ्टिंग की बात कर रहा है। जाहिर है यह उसकी खुद से सोची गई चिंता भी नहीं थी, लेकिन आंदोलन में कुछ लोग तो ऐसे थे ही, जिन्हें यह आशंका थी कि बुलेट ट्रेन के सामान्य हो जाने के बाद कहीं वाकई मुंबई स्थित अनेक बड़े-बड़े कॉरपोरेट हेड ऑफिस कहीं अमदाबाद ही न पहुंच जाएं, जैसे पिछले साल आईसीसी वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला जो आराम से वानखेड़े में हो सकता था और यहां की पिच में भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा भी रहता, लेकिन अमदाबाद चला गया। इसलिए पिछले साल श्वेतपत्र लाने के बाद भी अगर इस समय महाराष्ट्र में सरकार और विपक्ष के बीच महाराष्ट्र से विभिन्न उद्योग प्रोजेक्टों के बाहर जाने को लेकर राजनीतिक हंगामा जारी है तो यह बिल्कुल बेमतलब नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र आज भी तमिलनाडु के बाद देश का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा औद्योगिकृत राज्य है। लेकिन यह भी सही है कि पिछले दस सालों में महाराष्ट्र पहले से दूसरे नंबर पर आया है। चार मेगा परियोजनाएं- वेदांता-फॉक्सकॉन, टाटा एयरबस, सैफरन प्रोजेक्ट और बल्क ड्रग पार्क महाराष्ट्र से बाहर न गई होतीं तो यह महाराष्ट्र हित में होता। अब सवाल यह है कि देश के सबसे अच्छे इन्प्रâास्ट्रक्चर के बाद भी आखिर ये परियोजनाएं यहां क्यों नहीं आईं?
लेकिन हैरानी यह है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और भाजपा सरकार इन परियोजनाओं के प्रदेश में न आने से चिंतित नहीं है। भला केंद्र की कठपुतली बनी प्रदेश सरकार को इस बात की चिंता क्यों होगी कि ५०,००० करोड़ का गेल इंडिया का प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश चला गया? दरअसल, भले यह अस्पष्ट फुसफुसाहटों के बीच ही सुना जा रहा हो कि मुंबई और अमदाबाद के बीच एक अदृश्य होड़ शुरू हो गई है, लेकिन अगर यह आम लोगों की जुबान तक पहुंची है तो सिर्फ कोई कहानी नहीं है। इसका अपना कोई आधार तो है ही। महाराष्ट्र द्वारा लुभाए जा रहे बड़े औद्योगिक प्रोजेक्टों के अंतत: गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों में स्थानांतरित होने के बारे में मौजूदा सरकार को चिंता तो करनी ही होगी। बड़े-बड़े प्रोजेक्टों के दूसरे राज्यों में जाने के लिए पूर्ववर्ती एमवीए शासन को परोक्ष रूप से दोषी ठहराने से जिम्मेदारी तो खत्म नहीं हो जाती। वेदांता-फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर प्लांट (१.५४ लाख करोड़ रुपए), बल्क ड्रग पार्क (५,००० करोड़ रुपए), सैप्रâॉन रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल हब (१,२३४ करोड़ रुपए) और एयरबस-टाटा विमान विनिर्माण संयंत्र (२२,००० करोड़ रुपए) का था। ये सब प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में होते तो निश्चित रूप से २ लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मैग्नेटिक महाराष्ट्र निवेश शिखर सम्मेलन का पहला संस्करण फरवरी २०१८ में मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) में आयोजित किया गया था। ‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र: कन्वर्जेंस २०१८’ में १२.१ लाख करोड़ रुपए के ४,१०६ निवेश प्रतिबद्धताओं पर हस्ताक्षर किए गए थे। दो साल बाद महाविकास आघाड़ी सरकार ने शिखर सम्मेलन का दूसरा संस्करण आयोजित किया और दावा किया गया कि १.२९ लाख करोड़ रुपए के ५६ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। ‘महाराष्ट्र के आर्थिक सर्वेक्षण २०२२-२३’ के अनुसार, नवंबर २०२२ तक गुजरात ने ९८,१५९ करोड़ रुपए के निवेश के साथ १६८ औद्योगिक परियोजनाओं को मंजूरी दी थी और कर्नाटक ने ६८,९३१ करोड़ रुपए के निवेश के साथ ९७ परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। इसके विपरीत, महाराष्ट्र में २११ परियोजनाओं से ३५,८७० करोड़ रुपए का निवेश हुआ। इन आंकड़ों में १०० प्रतिशत निर्यातोन्मुखी इकाइयां, औद्योगिक उद्यमियों के ज्ञापन और आशय पत्र के माध्यम से निवेश जैसे निवेश शामिल हैं। संयोग से औद्योगिक परियोजनाओं को आकर्षित करने के मामले में महाराष्ट्र ने २०२१ में गुजरात और कर्नाटक दोनों को पीछे छोड़ दिया था। तब इसमें २.७७ लाख करोड़ रुपए के २७३ निवेश हुए थे, जबकि गुजरात और कर्नाटक के आंकड़े बहुत कम थे – क्रमश: २१४ परियोजनाएं और ९२,५६६ करोड़ रुपए और ११४ परियोजनाएं ६१,७२६ करोड़ रुपए की थीं। २०२० में कर्नाटक ने महाराष्ट्र और गुजरात को पीछे छोड़ दिया था। इसमें १.६२ लाख करोड़ रुपए की १२० औद्योगिक परियोजनाओं को मंजूरी मिली, उसके बाद गुजरात (४६,१४१ करोड़ रुपए, २२० परियोजनाएं) और महाराष्ट्र (४४,१८८ करोड़ रुपए, २९६ परियोजनाएं) का स्थान रहा। महाराष्ट्र के लिए कुछ राहत की बात यह है कि यह ऐतिहासिक रूप से एफडीआई प्रवाह को आकर्षित करने में सबसे आगे है। महाराष्ट्र में अप्रैल २००० से सितंबर २०२२ तक १०.८ लाख करोड़ रुपए का संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह देखा गया, जो भारत में सभी विदेशी निवेश प्रवाह (लगभग ३८.२ लाख करोड़ रुपए) का २८.५ प्रतिशत था। इसके विपरीत, कर्नाटक और गुजरात क्रमश: ५.५ लाख करोड़ रुपए (१४.४ प्रतिशत) और ३.६ लाख करोड़ रुपए (९.७ प्रतिशत) पर थे। अगस्त १९९१ में उदारीकरण नीति को अपनाने के बाद से महाराष्ट्र में नवंबर २०२२ तक १७.४ लाख करोड़ रुपए के निवेश के साथ कुल २१,४४२ परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। फिर ऐसा क्या हुआ कि २०२३-२४ में महाराष्ट्र फिसड्डी साबित हो रहा है और शिंदे सरकार इसी बात पर खुश है कि ये प्रोजेक्ट तो यहां आए ही नहीं थे? कालीन के नीचे कचरा छिपाने की सच्चाई नहीं छिपेगी।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)

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