लोकमित्र गौतम
मैं पिछले तीन दिनों से दिल्ली में हूं। यह बताने का संदर्भ सिर्फ यह है कि अपनी करीब ३२ साल की पत्रकारिता में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी दिन १० पत्रकारों से बात हो और सभी से न सिर्फ एक ही विषय पर बात हो, बल्कि सभी के निष्कर्ष भी एक हों। ऐसा सचमुच बहुत कम होता है। इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि अलग-अलग सोच-विचार के अधिकतर पत्रकार इस समय राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की रिहाई को मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, के. कविता या हेमंत सोरेन की रिहाई जैसी एक और रिहाई नहीं मान रहे, बल्कि थोड़े या ज्यादा लगभग सभी पत्रकारों के पास इस रिहाई को लेकर अपनी एक कहानी या कहें अपना-अपना एक अनुमान है। जी हां, अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए भले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने सीबीआई को फटकार लगाई हो, २०१३ के बाद फिर से एक बार देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा उसे पिंजरे में बंद तोता कहा गया हो, फिर भी मीडिया के गलियारों से लेकर आम लोगों के बीच ऐसी अफवाहों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा कि केजरीवाल की रिहाई के पीछे कहीं कोई कहानी तो नहीं है?
जबकि देखने वाली बात यह है कि चुन-चुनकर सही जगह पर हमला करने में माहिर अरविंद केजरीवाल ने जेल के बाहर आते ही आतिशी भाषण दिया है और यह कहने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई कि जेल से वह और ताकतवर होकर निकले हैं। लेकिन उनकी जमानत के बाद से ही न सिर्फ सोशल मीडिया में सैकड़ों ऐसे मीडिया विमर्श चल निकले हैं, जो इस जमानत के पीछे कोई कहानी देख रहे हैं बल्कि जितने भी खेल हो सकने के संभावित कोण और आशंकाएं हो सकती हैं, सब पर नजर दौड़ाई जा रही है। इससे अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और १७७ दिनों तक उनका जेल में रहना दूसरे दर्जे की चिंता बन गई है, असली चिंता यह हो गई है कि कहीं अरविंद केजरीवाल की रिहाई और हरियाणा में उनके सक्रिय होने से कांग्रेस के साथ खेल तो नहीं हो जाएगा? कामकाजी दफ्तरों में, चाय की दुकानों में, सार्वजनिक बसों में, मेट्रो में और लोगों की आपसी बातचीत के दौरान इस समय शायद हरियाणा से ज्यादा दिल्ली में लोग हरियाणा विधानसभा चुनाव की बात कर रहे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि हाल के महीनों में देश का सियासी विमर्श कितना संवेदनशील हो गया है और खुद आम मतदाता किस तरह अपने को चुनावों का एक पक्ष मानने लगा है।
अरविंद केजरीवाल की रिहाई के तुरंत बाद यू-ट्यूब में अपना चैनल चलाने वाले ज्यादातर स्वतंत्र पत्रकारों की इसी विषय पर डिस्कशन की बाढ़ आ गई कि अरविंद केजरीवाल की रिहाई का हरियाणा के चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? आश्चर्य की एक बात यह भी है कि ९९.९९ फीसदी पत्रकार और जरा भी राजनीति में रुचि रखने वाले लगभग सारे लोग इस बात पर भी सहमत हैं कि केजरीवाल हरियाणा में ऐसी कोई स्थिति खड़ी नहीं करेंगे कि कांग्रेस कमजोर पड़े या वो हार जाए। क्योंकि लगभग सभी का मानना है कि केजरीवाल न तो इतने भावुक और न ही इतने कमजोर गणित के राजनेता हैं कि वह हरियाणा में कांग्रेस को मुश्किल में डालकर दिल्ली में अपने लिए ज्यादा मुश्किलें खड़ी करें। साथ ही राजनीति में रुचि रखने वाला हर शख्स केजरीवाल की जमानत के बाद से आम आदमी पार्टी की पिछले ८-१० सालों की राजनीति और उसके अलग-अलग जगहों में चुनावी दखल की ताकत और प्रभाव को उलट-पलटकर जांच-परख रहा है, ताकि यह जान सके कि अगर कुछ खेल हुआ तो वह कहां तक जा सकता है?
यही वजह है कि जब मौजूदा हरियाणा विधानसभा के चुनावी परिदृश्य को देखते हुए यह लगता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अनुमानित गठबंधन न हो पाने की वजह से आम आदमी पार्टी ने मैदान में अपने पूरे ९० के ९० उम्मीदवार उतार दिए हैं और इसी के समानांतर कई और छोटे गठजोड़ भाजपा और कांग्रेस की आमने-सामने की मजबूत लड़ाई को कमजोर करने के लिए अस्तित्व में आ गए हैं। ..तो छूटते ही इन समीकरणों का कोई आशंकित अनुमान निकले, इसके पहले ही लोग इन आंकड़ों को भी रख देते हैं कि हरियाणा में साल २०१९ के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने ४६ सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे महज ६०,००० वोट मिले थे, जो कि कुल वोटों का ०.४८ फीसदी था। इस चुनाव में आप के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। यही नहीं इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत कुरुक्षेत्र की एक सीट मिली थी और उसकी कई विधानसभाओं में आप ने बढ़त भी हासिल की थी, लेकिन सीट नहीं निकाल सकी। आनन-फानन में विमर्श के दौरान रखे जा रहे ये आंकड़े यह साबित करने के लिए पेश किए जा रहे हैं कि आप कुछ भी कर लें, लेकिन हरियाणा में वह कांग्रेस के पक्ष में बन चुके माहौल को पलट नहीं सकती।
लेकिन अतीत के आंकड़ों के निष्कर्ष अपनी जगह, राजनीति में कभी न कभी तो कुछ चीजें पहली बार भी होती हैं और अगर एक क्षण को हरियाणा की जगह गोवा और गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी द्वारा पहुंचायी गई चोट पर नजर दौड़ाएं तो साफ पता चलता है कि कहीं न कहीं इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के सत्ता में न आने का बहुत बड़ा कारण आम आदमी पार्टी ही थी।
झांकी
अजय भट्टाचाय
मुख्यमंत्री पद पर विज का दावा
हरियाणा में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं। इसी बीच पूर्व मंत्री अनिल विज ने रविवार को बड़ा बयान दागा है। मीडिया के पूछने पर उन्होंने साफ कहा कि अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो वे खुद हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि वह पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। अनिल विज ने यह बयान तब दिया है, जब पार्टी पहले ही कह चुकी है कि अगर भाजपा हरियाणा में फिर वापसी करती है तो नायब सिंह सैनी ही दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे। ऐसे में विपक्ष को घर बैठे एक और मुद्दा मिल गया है। अनिल विज का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वह प्रदेश की राजनीति के वरिष्ठ नेता हैं। वे छह बार से विधायक हैं और सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने मीडिया में बयान देते हुए यह भी कहा कि मैं सबसे वरिष्ठ विधायक हूं और मैंने पार्टी से कभी कुछ नहीं मांगा है। मैं जहां-जहां गया हूं, सब मुझे कह रहे हैं कि आप सीनियर मोस्ट हो, ऐसे में आप मुख्यमंत्री क्यों नहीं बने? ऐसे में लोगों की मांग पर इस बार अपनी वरिष्ठता के दम पर मैं मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश करूंगा। अगर सरकार बनती है और पार्टी ने मुझे मुख्यमंत्री पद सौंपा तो मैं हरियाणा की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दूंगा।
वीडियो वायरल, नेता बाहर
बीते बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कोयंबटूर में थी, जहां एमएसएमई क्षेत्र के साथ उनकी बैठक कोयंबटूर दक्षिण भाजपा विधायक वनथी श्रीनिवासन ने एक महीने के प्रयास के बाद आयोजित की थी, उम्मीद थी कि इससे सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। बैठक में श्री अन्नपूर्णा श्री गौरी शंकर होटल्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डी. श्रीनिवासन ने होटल में दिए जानेवाले विभिन्न खाद्य पदार्थों पर जीएसटी की अलग-अलग दरों से उत्पन्न जटिलता को उठाया। बैठक के बाद श्रीनिवासन का निर्मला सीतारमण के साथ एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें श्रीनिवासन माफी मांगते नजर आ रहे थे/हैं। जब इस पर चौतरफा भाजपा की आलोचना की तब शनिवार को इस वीडियो को सोशल मीडिया पर जारी करने वाले एक शीर्ष जिला पदाधिकारी को जोड़नेवाली उनकी कथित टिप्पणियों के लिए निष्कासित कर दिया। निष्कासित पदाधिकारी, सिंगनल्लूर मंडल के अध्यक्ष आर सतीश ने फेसबुक पर पोस्ट किया था कि बैठक का विवादास्पद वीडियो एक शीर्ष जिला पदाधिकारी द्वारा रिकॉर्ड किया गया और जारी किया गया। उन्होंने कहा कि बाद में पोस्ट को हटा दिया गया। भाजपा जिला अध्यक्ष जे रमेशकुमार ने तुरंत सतीश को निष्कासन की चिट्ठी थमा दी। रमेशकुमार ने कहा कि सतीश ने हाल के विवादों को जोड़ते हुए पार्टी पदाधिकारियों के खिलाफ अपने विचार साझा किए थे और जिला इकाई उस व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर रही है, जिसने घटना का वीडियो रिकॉर्ड किया था।
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)