हालांकि माना यही जाता है कि पिछले दिनों हमास के शीर्ष नेता इस्माइल हनिया की इजरायल ने एक प्रोजेक्टाइल के जरिए हत्या की थी, लेकिन हिजबुल्लाह नेता हसन नसरुल्लाह को अंदेशा था कि हमास के मुख्य बम निर्माता और अल-कस्साम ब्रिगेड की वेस्ट बैंक बटालियन के नेता याह्या अय्याश की तरह हनिया की भी मोबाइल में विस्फोट कराकर ही हत्या की गई है। इसीलिए नसरुल्लाह ने हिजबुल्ला के लड़ाकों को आदेश दिया था कि वे मोबाइल फोनों को लॉक कर दें, तोड़कर फेंक दें या जमीन में गाड़ दें; लेकिन आपस में बातचीत के लिए किसी भी तरह से इसका इस्तेमाल न करें। आदेश के मुताबिक, हिजबुल्लाह के लड़ाकों ने ऐसा कर भी दिया था। वे यूं तो पहले ही काफी सालों से मोबाइल का बहुत कम इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन हानिया की मौत के बाद तो बिल्कुल ही बंद कर दिया था। हिजबुल्लाह के लड़ाके इन दिनों आपस में संपर्क बनाए रखने के लिए सिर्फ पेजर का इस्तेमाल करते थे।
लेकिन यह क्या गुजरे १८ सितंबर २०२४ को लेबनान के स्थानीय समय के मुताबिक दोपहर करीब साढ़े तीन बजे हिजबुल्लाह लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हजारों पेजरों में एक साथ बीप बीप की आवाज हुई और चंद ही सेकंड में ये फट गए। कोई दो चार या दस बीस नहीं, एक साथ करीब चार हजार पेजर फट गए, जिससे १२ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और शुरुआती खबरों के मुताबिक करीब २,७०० लोग और एक दिन बाद की सूचनाओं के मुताबिक करीब ३,८०० लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए, जिनमें ४५० की हालत गंभीर थी, ९५ को एयर लिफ्ट के जरिये ईरान के अस्पतालों में ले जाया गया। आतंकी विस्फोट की यह एक ऐसी घटना थी,जिसकी इसके पहले तक कल्पना तक नहीं की गई थी, खासकर इतने बड़े पैमाने पर। लेकिन लगता है कि दुनिया को चौंकाकर दहशत में भरने का इजरायल का इरादा अभी पूरा नहीं हुआ था कि अगले दिन लेबनान में हजारों वॉकी-टॉकी फट गए। संपर्क की एक ऐसी डिवाइस जिसे आम पुलिसवालों से लेकर इमारतों के सुरक्षा गार्ड और ट्रैफिक कंट्रोल करने वाले पुलिसकर्मियों से लेकर खेल मैदानों के अम्पायर तक इस्तेमाल करते हैं। पेजर विस्फोट के बाद जहां दुनिया दहशत से दहल गई थी, वहीं वॉकी-टॉकी विस्फोट के बाद तो दहशत से सन्न रह गई।
इन दो अनयूजुअल आतंकी विस्फोटों से दुनिया इसलिए दहशत में नहीं भर गई कि इजरायल किस हद तक तनाव को ले जा रहा है। दरअसल दुनिया की दहशत का कारण यह आशंका है कि अब उन्हें भी न कहीं ऐसे ही इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर से दो चार होना पड़े। भले मोसाद ने अपनी इस उच्च तकनीकी ताकत का इस्तेमाल हिजबुल्लाह की कमर तोड़ने के लिए किया हो, लेकिन इन सामान्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खतरनाक बमों की तरह इस्तेमाल करके इजरायल ने दुनियाभर के आतंकियों को दहशत का वह रास्ता दिखा दिया है कि अब ये छोटी से छोटी और रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस को तरह-तरह के बमों के रूप में इस्तेमाल की खौफनाक कल्पनाओं को अंजाम देंगे। हमारे अपने देश के लिए तो यह आशंका और भी ज्यादा दहशतनाक है क्योंकि हमारे यहां तो आसानी से सबसे खतरनाक बम जाने वाले मोबाइल फोनों का इस्तेमाल ही १ अरब से ज्यादा होता है। अपने यहां तो १.२५ अरब इंटरनेट के ही यूजर हैं।
कहा जा रहा है कि लेबनान में जो पेजर फटे, उनमें बहुत मामूली मात्रा में पीईटीएन विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। अगर लेबनान में महज कुछ हजार आयातित इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस चेक नहीं की जा सकी तो सोचिए भारत में यह वैâसे संभव है, जहां हर दिन औसतन ५ लाख विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस आयात के जरिये विभिन्न देशों से आती हैं। भारत में संबंधित अथॉरिटी ही स्वीकारती हैं कि अपने यहां आ रहीं ९० फीसदी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की चेकिंग ही नहीं होती, तो सोचिये अपने यहां कितनी खतरनाक स्थिति हो सकती है। पिछले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ बढ़ी है। अब धीरे-धीरे इन सच्चाइयों का खुलासा सामने आ रहा है कि वैâसे सुरक्षाबलों और एजेंसियों को चकमा देने के लिए आतंकी यहां भी टेक्नोलॉजी और हाइब्रिड वॉरफेयर का सहारा ले रहे हैं। इंटेलिजेंस एजेंसियों को जांच से पता चला है कि पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए आतंकी इन दिनों धड़ल्ले से अल्पाइन मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें आमतौर पर पहाड़ों पर ट्रैकर्स यूज करते हैं। अब ध्यान में आर्इं ये घटनाएं आशका पैदा कर रही हैं कि लेबनान की तरह भारत में भी इन साधारण इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से टारगेटेड अटैक किए जा सकते हैं?
सवाल है कि अगर इस तरह की आशंकाओं के तहत भारत में भी आतंकी अटैक की साजिश रची जाती है, तो क्या हम इसे समय रहते नियंत्रित कर सकते हैं? अचानक यह आशंका इसलिए भी डरा रही है क्योंकि हम तो ६० फीसदी से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम आइटम चीन और उसके ही एक विस्तारित हिस्से हांगकांग से खरीदते हैं। यही नहीं हम तो अपनी सारी की सारी एटीएम मशीने, टरबाइनें यहां तक कि हमारे महानगरों की शान बनी मेट्रो ट्रेन पूरी की पूरी या इसके ज्यादातर हिस्से भी चीन सहित विभिन्न देशों से खरीदते हैं तो हमारे यहां स्माल डिवाइसेस से लेकर इंप्रâास्ट्रक्चर के आधार का भी भारी भरकम बमों की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल लेबनान में विस्फोट की इन घटनाओं ने एक झटके में पूरी दुनिया को आत्मघाती खतरे के घेरे में खड़ा कर दिया है। हम सब जानते हैं कि जब तक ध्यान न जाए तो न जाए, लेकिन जब एक बार मामूली सी चीजों को भयानक बमों की तरह इस्तेमाल किये जाने का खौफनाक प्रदर्शन हो चुका है तो अब तो इस डर को फिजूल का फितूर नहीं ही माना जा सकता। हमारे लिए अनदेखी किए जाने की सुविधा इसलिए नहीं है क्योंकि भारत और चीन के रिश्ते किस दौर से गुजर रहे हैं हम सब जानते हैं।
इसलिए हमें बिना देरी किए भारत आने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस की १०० फीसदी स्वैâनिंग सुनिश्चित करनी होगी, चाहे जितना खर्च बढ़े और चाहे जितना समय लगे। अगर सुरक्षित २रहना है तो ९० फीसदी डिवाइसेस चेक नहीं किए जाने का अब जोखिम नहीं लिया जा सकता। साथ ही मोबाइल, लैपटॉप और स्मार्टवॉच जैसी हर उस चीज के इस्तेमाल की एक स्मार्ट गाइडलाइन तय करनी होगी और हर नागरिक को उसकी ट्रेनिंग जरूरी करनी होगी। क्योंकि ऐसी सभी डिवाइसेस का बम की तरह इस्तेमाल हो सकता है, जिसमें बैटरी लगी है और जिसे इंटरनेट के जरिए ऑपरेट करना संभव हो। इसलिए विदेश से आ रहे हर डिवाइसेस की मॉनिटरिंग हर हाल में बहुत जरूरी है। याद रखिए हाइब्रिड वॉरफेयर भारत के लिए लेबनान से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है। इसलिए लेबनान से सबक लेते हुए हमें इस तरह अलर्ट रहना होगा जैसे ये विस्फोट हमारे यहां ही हुए हों। क्योंकि हाइब्रिड और एसिमिट्रिक वॉरफेयर परंपरागत तरीके से लड़े जाने वाले युद्ध से कहीं ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि ऐसे युद्ध में देश का हर नागरिक फौजी की भूमिका में होता है।
लोकमित्र गौतम
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)