मुख्यपृष्ठस्तंभसाक्षात्कार : एक-दूसरे के पूरक हैं धर्म-विज्ञान-स्वामी हरि चैतन्य महाप्रभु

साक्षात्कार : एक-दूसरे के पूरक हैं धर्म-विज्ञान-स्वामी हरि चैतन्य महाप्रभु

भारतीय संत परंपरा में कुछ ऐसे युगद्रष्टा महापुरुष हैं, जिनका जीवन न केवल प्रेरणा देता है, बल्कि समाज को नई दिशा भी प्रदान करता है। ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व हैं हरिकृपा पीठाधीश्वर, युगद्रष्टा, श्रीश्री १००८ स्वामी हरि चैतन्य महाप्रभु, जिनका जीवन एक खिले हुए कमल की तरह पवित्र, सरल और समाज को आलौकित करनेवाला है। वो न केवल एक संत, बल्कि एक समाज सुधारक, पर्यावरण प्रेमी और राष्ट्र के पुजारी भी हैं। उन्होंने अनेक सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के साथ ही लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक दिशा दी। हमारे संवाददाता संदीप पांडेय के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कई कड़ियों पर अपने विचार व्यक्त किए। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

 आपने देशभर में २३,००० किलोमीटर की पदयात्रा की। इस यात्रा के दौरान हुआ कोई ऐसा अनुभव, जो आपके हृदय में आज भी बसा हुआ है?
इस पदयात्रा के दौरान १० लाख से ज्यादा लोगों ने शराब अथवा बुरी आदतों का परित्याग किया। १०० से ज्यादा जगह पर बलि प्रथा बंद कराई। नदियों में निर्मल सतत प्रवाह के लिए लोगों को जागरूक किया। दहेज प्रथा, बाल विवाह, मृत्युभोज इत्यादि कुरीतियों के विरुद्ध जो जनजागरण था, उसको सफल करने में लोगों ने अपना योगदान दिया। जन-जन का जो अपार प्यार, उत्साह और अपनत्व मिला, मैं कह सकता हूं कि उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

आज की युवा पीढ़ी को अध्यात्म और संस्कृति से जोड़ने के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए लोगों ने ढकोसला बनाने का प्रयास किया है। धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं, यदि मैं यह कह दूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। धर्म से विज्ञान को दूर कर दो तो झूठ, पाखंड, अंधविश्वास और कुरीतियां प्रवेश करती हैं और विज्ञान से यदि धर्म को दूर कर दें तो धर्मविहीन विज्ञान भी विकास का नहीं, बल्कि विनाश का कारण बनेगा। धर्म के वास्तविक मर्म को समझकर अपनाते हुए लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाए तो युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा इस ओर आती हुई दिखेगी।

आपका ‘एक शाम शहीदों के नाम’ कार्यक्रम युवाओं में देशभक्ति वैâसे जागृत करता है?
देश के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न स्थानों पर ‘एक शाम शहीदों के नाम’ कार्यक्रम का हमने आयोजन किया, जो कड़ी प्रारंभ की थी, जिसकी २७६ कड़ियां पूरी हो चुकी हैं। उन वीर अमर शहीदों के परिजन, जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया हमारे लिए उनका ध्यान रखना, उनकी समस्याओं का निराकरण करना, उनका सहयोग करना और अपनत्व का भाव देना, उनका सम्मान करना, देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। इस राष्ट्र के प्रति एक अंशदान हमने भी किया है। युवा पीढ़ी कोरी कथाओं में नहीं व्यावहारिक उपदेशों और राष्ट्रीयता का भाव रखती है। उन्हें सिर्फ जागरूक करने की जरूरत है।

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