धर्म

धर्म न प्रदर्शन है, न प्रतिस्पर्धा।
धर्म तो साधना है, मन की इंद्रियों की इच्छाओं की।
सीख है संयम की, जिससे खुलता है कपाट।
आत्म ज्ञान का विवेक का चेतना का
और खुलता है रास्ता आत्मा का।
जिसे पकड़कर हम चलते हैं जीवन की ओर
आत्मने रक्षाय सर्व जन हिताय च
लोकमंगल गाते हुए।
चैन की बांसुरी बजाते हुए।
सत्य को बुलाते हुए
आत्मानंद की ओर ।।

– अन्वेषी

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