सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भाजपा में मोदी-शाह की ही चलती है, पर अब यह जोड़ी कमजोर होती दिख रही है। इसका प्रमुख कारण है गत लोकसभा चुनाव में तमाम दावों के बावजूद भाजपा का बहुमत से दूर रह जाना। इससे पार्टी में मोदी-शाह का कद घटा है। इसी का नतीजा है कि अब संघ ने एक बार फिर इस जोड़ी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ के बाद सहयोगी पत्रिका ‘विवेक’ ने भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आलोचना की है। इससे माना जा रहा है कि भाजपा के साथ ही संघ में भी मोदी-शाह के खिलाफ बगावत के सुर उठने लगे हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है तो अभी कोई भी नेता इस बारे में खुलकर सामने नहीं आ रहा है। सारा खेल पर्दे के पीछे खेला जा रहा है।
बता दें कि यूपी में इस समय मोदी-शाह और योगी आदित्यनाथ के बीच तेज रस्साकशी चल रही है। मोदी-शाह पर्दे के पीछे से कठपुतलियों का संचालन कर रहे हैं। हाल ही में जब लखनऊ में भाजपा संगठन की बैठक हुई तो वहां काफी नेताओं ने बयानबाजी की। सूत्र बताते हैं कि एक समय लग रहा था कि योगी कमजोर पड़ रहे हैं, पर अब उन्हें वहां पार्टी के भीतर अच्छा समर्थन मिल रहा है, जिससे दिल्ली का वार फुस्स साबित हुआ है। दूसरी तरफ मोदी-शाह के खिलाफ पार्टी में सुर उठने लगे हैं। संघ तो खैर पहले से ही मोदी-शाह को पसंद नहीं कर रहा है। लोकसभा में खराब प्रदर्शन के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत भी बिना नाम लिए मोदी-शाह की आलोचना कर चुके हैं। संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आलोचना कर चुके हैं। अब आरएसएस की सहयोगी पत्रिका ‘विवेक’ ने भी अजीत पवार गुट को लोकसभा चुनाव में हार के लिए दोषी बताते हुए भाजपा को भ्रमित बताया है। ‘विवेक’ में अजीत पवार के गुट की आलोचना करते हुए लिखा कि आज हिंदुत्व कार्यकर्ता थके हुए नहीं, बल्कि खोए हुए और भ्रमित हैं।
मूल कार्यकर्ताओं को आगे लाओ!
‘संघ’ की भाजपा को सलाह
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर संघ सवाल उठा रहा है। संघ की सहयोगी पत्रिका ‘विवेक’ ने पार्टी की आलोचना करते हुए लिखा कि हमें पार्टी के मूल कार्यकर्ता और पार्टी में बाहरी लोगों की जगह के बारे में सोचने की जरूरत है। इसका मतलब यह नहीं है कि हर बाहरी व्यक्ति गलत है, लेकिन मूल कार्यकर्ताओं को आगे लाना जरूरी है।
इसके पहले आरएसएस का मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ भी इस मामले में मोदी-शाह की आलोचना कर चुका है। ऑर्गनाइजर ने कहा था कि महाराष्ट्र में जब सरकार चल रही थी तो अजीत पवार को लेने की क्या जरूरत थी? इसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ा। इसी तरह संघ भी कह चुका है कि यूपी में भी जब मोदी ने अपने मन से प्रचार किया, लोगों को मोदी की गारंटी दी, योगी के सुझाए नामों को टिकट नहीं दिए गए तो फिर हार का ठीकरा योगी पर फोड़ना ठीक नहीं है। इस तरह यूपी के मामले में तो फिलहाल मोदी और शाह बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। योगी ने कहा है कि चुनाव में संविधान बदलने की बात कहने से नुकसान हुआ। उनका साफ इशारा भाजपा के उन नेताओं की तरफ था, जिन्हें उनके न चाहने के बावजूद टिकट दिया गया था। सूत्रों का दावा है कि जब से सोशल मीडिया पर योगी को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में चर्चा शुरू हुई है, वे योगी का पर कतरने की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन योगी समर्थकों की भी एक बड़ी फौज तैयार हो चुकी है, ऐसे में कल को मोदी-शाह के खिलाफ बगावत का खेल खुलकर सामने आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।