-राजेश माहेश्वरी
राजस्थान विधानसभा में पिछले दिनों स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पारित हो गया। यह विधेयक जो कि अब कानून का रूप ले लेगा स्वास्थ्य क्षेत्र एवं स्वास्थ्य अधिकारों के परिपेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका न केवल राजस्थान राज्य बल्कि देश के हर नागरिक को स्वागत करना चाहिए। इस विधेयक के पारित होने से स्वास्थ्य का अधिकार, जिसको अब तक हम मुख्यत: हमारे संविधान के अनुच्छेद-२१ में निहित ‘जीने के अधिकार’ से प्राप्त करते थे, एक विस्तृत रूप और कानूनी प्रतिबद्धता मिल गई है।
कानून के अंतर्गत अब राज्य में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को सरकारी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से तमाम स्वास्थ्य सेवाएं पूर्णत: नि:शुल्क प्राप्त करने का अधिकार होगा। जायज है कि इस प्रतिबद्धता के चलते सरकार को कई ऐसे ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे सरकारी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का ढांचा और सुदृढ़ और सुव्यवस्थित हो और लोगों को कानून के तहत उल्लेखित सभी सेवाएं गुणवत्तापूर्ण व जेब से बिना कुछ खर्च किए निर्बाध रूप से एवं निश्चित दूरी पर मिल सके। यह निश्चित ही एक महत्वपूर्ण कानून है, किंतु इसमें कुछ खामियां भी हैं। निजी चिकित्सकों की मांगों को ध्यान में रखते हुए इस कानून में कुछ ऐसे संशोधन किए गए हैं। सरकारी अस्पतालों का हाल किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में राइट टू हेल्थ बिल पास होने पर आमजन को बड़ी राहत मिलेगी।
भारत को आजाद हुए ७ दशक से ज्यादा का समय हो गया है, परंतु आज भी चिकित्सा के क्षेत्र में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। भारत में अब तक रहस्यमयी की कही जाने वाली अनेक बीमारियां व्याप्त हैं, जो काफी पहले ही विकसित देशों से विलुप्त हो चुकी हैं। भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा बीमारियों से जूझता है और अस्पतालों में लंबी कतारों के साथ सुविधाओं का अभाव है। अपने देश में अस्पतालों और डॉक्टरों की उपलब्धता जनसंख्या के घनत्व के हिसाब से कम है और सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं, आधारभूत संरचना, चिकित्सकों, कमरों, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की कमी है। इन्हीं अभावों के चलते अपने देश में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को विस्तार करने का मौका मिल गया, जिसका गरीब लोगों से कोई वास्ता नहीं। कोरोना काल में देश का स्वास्थ्य ढांचा कितना मजबूत है, इसका अनुभव देशवासियों को बखूबी हो ही चुका है।
किसी भी देश के विकास में उसके स्वस्थ नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए स्वास्थ्य के अधिकार कानून को मौलिक अधिकार बनाया जाना चाहिए। लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। हमारे संविधान में हमें जीने का अधिकार तो प्रदान किया है, लेकिन अभी तक स्वास्थ्य का अधिकार कानून नहीं बनाया गया है। स्वास्थ्य की जरूरतों को पूरा करना सरकार की जिम्मेदारी है। स्वास्थ्य का अधिकार कानून पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए, तभी देश का विकास बेहतर तरीके से होगा। रोटी, कपड़ा और मकान की तरह स्वास्थ्य भी मूलभूत आवश्यकता है। देश के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार प्राप्त होना चाहिए, ताकि गरीब, कमजोर व हाशिए पर खड़ा व्यक्ति बिना किसी चिंता और हिचकिचाहट स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले पाने में सक्षम हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहा है और वर्तमान में यहां के स्वास्थ्य क्षेत्र के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। इनमें स्वास्थ्य के स्तर में सुधार लाना, जनता को बीमारियों से बचाना, जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाना तथा इनकी गुणवत्ता, निरंतरता व स्थिरता को सुनिश्चित करना प्रमुख है।
देश में बढ़ती आर्थिक असमानता का मुख्य कारण स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का खर्चीला होना भी है। अधिकांश लोग स्वास्थ्य सुविधाओं पर अत्यधिक व्यय करने के कारण गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाते हैं। किसी भी देश की तरक्की तभी संभव है, जब उसके नागरिक सेहतमंद हों। जनता स्वस्थ हो, इसके लिए देश में चिकित्सा सुविधाएं दुरुस्त होनी चाहिए, लेकिन भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति निराशाजनक है। नागरिकों का शरीर स्वस्थ होगा, तभी तो स्वस्थ व मजबूत राष्ट्र बनेगा। स्वास्थ्य सेवाएं तो हर सरकार का मौलिक दायित्व होना चाहिए। जैसे जीवन के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार स्वास्थ्य भी आवश्यक हैं। मन-मस्तिष्क स्वस्थ होंगे, तभी तो शरीर स्वस्थ होगा और शरीर स्वस्थ होगा तो राष्ट्र मजबूत होगा। राइट टू हेल्थ के अधिकार का कानून पूरे देश में प्राथमिकता से लागू करने के लिए केंद्र सरकार को उचित पहल करनी चाहिए, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को राहत मिल सके।
(लेखक उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)