सामना संवाददाता / गोरखपुर
गोरखपुर डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक महेश चंद्र ने कहा कि बस में सिर्फ यात्री ही सामान ले जा सकते हैं, अगर चालक और परिचालक बिना यात्री के सामान बसों में लाद रहे हैं तो यह गलत हैं। इसकी जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन अगर किसी भी अवैध या वैध सामान को कम खर्च पर कहीं पहुंचाना है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसके लिए रोडवेज की बसों में महज ७० रुपए खर्च करने होंगे। यह भी तय है कि सामान की जांच भी नहीं होगी। उसमें गांजा है या वास्तव में घरेलू सामान, इससे भी जिम्मेदारों को कोई मतलब नहीं है। जब इसकी पड़ताल की गई तो यह पूरी तरह से सच पाया गया। महज ७० रुपए में पडरौना तक का एक गत्ता लेकर जाने को रोडवेज का परिचालक तैयार हो जात है और उसने यह भी जानने की कोशिश नहीं करता कि पैक गत्ते में क्या है?
मोटी कमाई का जरिया बन सकता है हादसा
बता दें कि सामान को ढोने में रोडवेज का सीधा नुकसान तो कुछ नहीं है, लेकिन अगर कोई बदमाश घटना करना चाहे तो उसे रोका नहीं जा सकता है। क्योंकि महज ७० रुपए से ही रोडवेज के जिम्मेदारों को मतलब है, इससे कोई लेना देना नहीं है कि उसमें रखा क्या जा रहा है? दूसरे इससे मोटी कमाई भी होती है। ७० रुपए तो कम दूरी के होते हैं। अगर दूरी अधिक होती है तो फिर रुपए भी ज्यादा देने होते हैं।
खुद के धंधे के लिए फेल कर दिया सिस्टम
जानकार बताते हैं कि रोडवेज में पार्सल भी लागू किया गया था। कुछ साल पहले कार्गो नाम कंपनी को काम दिया गया था, तब बाकायदा सामानों की बुकिंग होती थी और तय रेट पर सामान भेजे जाते थे। बुकिंग के पहले सामानों की जांच भी होती थी। इस सिस्टम से सरकार को तो फायदा था, लेकिन अफसरों की जेब नहीं भर पाती थी। इस वजह से ही इतनी जांच पड़ताल की जाती थी कि लोग इससे दूरी बनाने लगे। फिर इसे घाटे का सौदा बताकर शासन को रिपोर्ट भेजी गई और इस सिस्टम को बंद कर अवैध धंधे का पनपा दिया गया है।