संजय राऊत- कार्यकारी संपादक
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में आज प्रत्यक्ष श्री बजरंगबली का आह्वान किया गया। प्रधानमंत्री के पास मुद्दे न होने का ये उदाहरण है। कर्नाटक में भाजपा व कांग्रेस पार्टियों के बीच भीषण जंग छिड़ी हुई है। प्रधानमंत्री प्रचार में धर्म को लाए, सरकारी तंत्र का इस्तेमाल किया। भाजपा ने पूरे देश की कैबिनेट को कर्नाटक में उतार दिया, लेकिन उनका पूरा जोर ‘हिंदू-मुस्लिम’ पर ही है।
१० मई को कर्नाटक विधानसभा के लिए मतदान होने जा रहा है। दक्षिण के इस इकलौते राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है। यह सत्ता अब डगमगाती दिखाई दे रही है। बुधवार को मैं बेलगांव में था। एयरपोर्ट पर उतरे तो भारतीय वायुसेना के विमान खड़े थे। ‘प्रधानमंत्री मोदी यहां प्रचार के लिए आए हैं। इसलिए हवाई अड्डा ही ‘एस.पी.जी.’ के कब्जे में है’, ऐसी जानकारी अधिकारियों ने दी। प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति पूरे सरकारी लाव-लश्कर के साथ पार्टी के प्रचार के लिए उतर गया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें राजनीतिक प्रचार के लिए तमाम सरकारी सुविधाएं मिलती हैं। करोड़ों के उस खर्च को पार्टी और उम्मीदवारों के खर्च में नहीं जोड़ा जाता है। लेकिन विरोधियों को पाई-पाई का हिसाब देना होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के प्रचार में इस बार बजरंगबली को उतार दिया। जय बजरंगबली का नाम लें और भाजपा के लिए मतदान का बटन दबाएं। यह धार्मिक प्रचार है। ऐसा धार्मिक प्रचार किए जाने पर शिवसेनाप्रमुख को छह साल के लिए मतदान करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इंदिरा गांधी ने उनके चुनाव में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल किया इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को ही रद्द कर दिया। यहां प्रधानमंत्री से लेकर उनकी पूरी वैâबिनेट सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर प्रचार में लगी हुई है। प्रधानमंत्री द्वारा विधानसभा चुनाव में हिंदू-मुस्लिम का कार्ड निकालना अपेक्षित था। दिल्ली का बाटला हाउस एनकाउंटर मामला यह कोई कर्नाटक चुनाव के लिए प्रचार का मुद्दा नहीं था, लेकिन चुनाव के अंतिम चरण में मोदी ने बाटला हाउस मुठभेड़ नए से शुरू कर दिया। वो चला नहीं तो महाबली हनुमान को प्रचार में लाए। श्री अमित शाह ने कहा, ‘कर्नाटक में भाजपा जीती नहीं तो दंगे होंगे।’ देश इस समय अराजकता की परिस्थिति में है और वह वैसे ही रखी जाएगी। शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ये ‘शुद्ध’ हिंदूहृदयसम्राट थे। उनकी हिंदुत्ववादी सोच में कोई मिलावट नहीं थी। उस समय धर्मांध खुमैनी ने लोकतांत्रिक शासन को हटाकर ईरान का नेतृत्व संभाला और आधुनिकता की तरफ बढ़ रहे ईरान के विकास में बाधा डाली। ईरान को फिर से धर्म की बेड़ियों में जकड़ लिया। बालासाहेब ठाकरे से मैंने तब खुमैनी के बारे में उनकी राय पूछी। बालासाहेब ने तपाक से कहा, ‘मुझे हिंदुओं का खुमैनी नहीं बनना। बिल्कुल नहीं, लेकिन आज देश में जो नए हिंदुत्व का (उद्धव ठाकरे की भाषा में गोमूत्रधारी हिंदुत्व) का माहौल बनाया गया है, उससे देश में दो खुमैनी का निर्माण हुआ ही है और उससे अनगिनत खुमैनी निर्माण कर देश ईरान, सीरिया अफगानिस्तान शैली में चलाया जाएगा।
सत्यपाल मलिक
देश की राजनीतिक घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में दिल्ली में श्री सत्यपाल मलिक से २७ तारीख को मुलाकात की। दिल्ली के आर.के. पुरम स्थित एक हाउसिंग सोसाइटी में वे किराए के मकान में रहते हैं। किसी मध्यमवर्गीय परिवार की तरह वे जीते हैं। जम्मू-कश्मीर समेत चार राज्यों के राज्यपाल के पद पर वे रहे। मोदी सरकार ने उन्हें जम्मू-कश्मीर में नियुक्त किया और अब ‘पुलवामा’ जवान हत्याकांड को लेकर उनके द्वारा कुछ सवाल उठाते ही ‘श्री मलिक पाकिस्तान के एजेंट हैं’, ऐसा भाजपा के लोग कहने लगे हैं। यह गलत है। श्री अमित शाह ने जब धारा-३७० को हटाया तब मलिक ही वहां के राज्यपाल थे। मतलब मोदी के वे विश्वासपात्र थे। श्री मलिक की तबीयत उस दिन ठीक नहीं थी और पैर में चोट के कारण वे व्हीलचेयर पर थे। इसी अवस्था में वे कुछ घंटे पहले जंतर-मंतर रोड पर आंदोलन करनेवाले पहलवानों से मिलकर आए। सत्यपाल मलिक का कहना ऐसा है कि ‘देश में तानाशाही शुरू हो गई है और सभी को मिलकर लड़ना चाहिए।’
मैंने कहा, ‘आपके पीछे जांच एजेंसियों को लगा सकते हैं।’
‘मैं डरता नहीं। मैं समाजवादी विचारों का कट्टर लोहियावादी हूं। मेरे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।’ श्री मलिक ने कहा।
‘२०२४ में क्या होगा?’
‘एक के विरोध में एक उम्मीदवार इस फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया जाता है, तो मोदी की दयनीय पराजय होगी।’ मलिक।
‘आप सिर्फ दिल्ली और हरियाणा में ही घूमते हो।’
‘नहीं। मैं पूरे देश में जानेवाला हूं। मुझे घूमने और बोलने से कोई नहीं रोक सकता। संविधान की रक्षा के लिए बाहर निकलना होगा।’ मलिक।
श्री मलिक से और भी कई मुद्दों पर चर्चा हुई। जल्द ही महाराष्ट्र में आऊंगा, ऐसा उन्होंने कहा। महत्वपूर्ण बात यह है कि उद्धव ठाकरे से उन्होंने फोन पर चर्चा की। सत्यपाल मलिक को जयप्रकाश नारायण की भूमिका निभानी चाहिए, ऐसा कई लोगों को लगता है। लेकिन देश के विपक्षी दलों को किसी का एकछत्र नेतृत्व नहीं चाहिए। सत्यपाल मलिक ने सीधे-सीधे केंद्र सरकार से ही बैर मोल ले लिया है। वे साहसी हैं। किसानों और जाट समाज के वे नेता हैं। जाट एक लड़ाकू समाज है। ‘मुझे कुछ किया तो मेरा समाज चुप नहीं बैठेगा यह केंद्र सरकार को पता है’, ऐसा श्री मलिक ने कहा। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में मलिक को सरकार द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरूरत थी। लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए एक सामान्य सिपाही है। परंतु सत्यपाल मलिक लड़ रहे हैं, संविधान बचाने के लिए।
पार्टी फोड़ना आसान!
मोदी राज्य में आज पार्टी को फोड़ना और उससे सत्ता लाना आसान हो गया है। क्योंकि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था उनके पक्ष में है। ‘चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे के साथ अन्याय किया’, ऐसा श्री सत्यपाल मलिक ने कहा। राजनीतिक दलों को टिकने नहीं देना और पूरा शासन एक-दो लोगों के पास रहे, ऐसी सोच मतलब ही घोटाला है। देश में घास की तरह बढ़ने वाले और फूटनेवाले राजनीतिक दलों और नेताओं के चंगुल से देश को मुक्त कराने की जरूरत होने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जोड़-तोड़ को बढ़ावा दे रहे हैं। डॉ. आंबेडकर ने भारतीय संविधान के बारे में कहा था, ‘संविधान में भेदभाव नहीं होगा। झ्दत्ग्ूग्म्ग्aहे म्aह ां ैग्त््! राजनेता बिगड़ेंगे और उससे सब कुछ बिगड़ेगा। डॉ. आंबेडकर के कथन को मोदी और शाह ने सत्य साबित कर दिया है। धर्म की राजनीति, वोट बैंक की राजनीति संविधान नहीं रोक सकता। देश में आज के संभ्रम को दूर करने के लिए यह संविधान नाकाम साबित हो रहा है। सरकार के लिए मुश्किल साबित होनेवाले निर्णय सुप्रीम कोर्ट नहीं लेता है और तारीखों का सिलसिला जारी रखता है। मुंबई समेत १४ मनपाओं के चुनाव रोकने का कोई कारण नहीं था और कोर्ट चुनाव नहीं होने दे रहा है। सरकार और भाजपा को यही चाहिए। महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा मुद्दे पर पिछले १५ वर्षों से तारीखों के अलावा कुछ नहीं घटित हो रहा। महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष पर पैâसला अधर में है। सब कुछ संविधान के अनुसार होगा, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। श्री राहुल गांधी ने मोदी की बदनामी की इस बात को लेकर उन्हें दो साल की सजा सुनाकर उनकी सांसदी रद्द कर दी। उनके घर को खाली करा लिया। उनकी सजा पर रोक लगाने से गुजरात हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया। फांसी की सजा स्थगित होती है। गौतम अडानी पर लगे आरोपों की जांच नहीं होती है। हत्यारे-लुटेरे लोकतंत्र के मंदिर में सिर उठाकर घूम रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी को एक छोटे से मामले में गुजरात का न्यायालय राहत देने को तैयार नहीं। यह एक तरह से दहशत है। संविधान नहीं तो श्aह म्aह ां ैग्त््! डॉ. आंबेडकर का कथन ऐसे समय में सच साबित हो रहा है। संसदीय लोकतंत्र के मुखौटे की आड़ में तानाशाही चल रही है और तानाशाह की सहूलियत के अनुसार हिंदुत्व कार्ड चलाया जा रहा है। आम मतदाताओं के लिए ये सोचने का समय है। हम सार्वभौम हैं। यह गलतफहमी भी यदि इस समय दूर हो जाए तो भी काफी है!
नौ वर्षों तक शासन करके भी प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव जीतने के लिए श्रीराम से लेकर बजरंगबली तक सभी हिंदू देवताओं की जरूरत पड़ती है। लोगों को धर्म में मदहोश करके नशेड़ी बनाना और चुनाव जीतना। हिटलर और खुमैनी का ये मिश्रण है। देश के लिए ये उचित नहीं है। ऐसे में देश खत्म हो जाएगा और फिर से किसी का तो गुलाम बन जाएगा। इस एक ही विचार से लोगों को अब एकजुट हो जाना चाहिए।
निर्भय होना चाहिए!