संजय राऊत -कार्यकारी संपादक
छत्रपति शिवाजी महाराज के अपमान पर चुप रहनेवाले छत्रपति संभाजी राजे के कथित अपमान पर अजीत पवार के खिलाफ हंगामा कर रहे हैं। उसी दौरान राकांपा के एक विधायक को ऐसा अहसास हुआ कि औरंगजेब क्रूर नहीं था और औरंगजेब सम्माननीय है, ऐसा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने मान लिया। महाराष्ट्र में धार्मिक गड़बड़ी का यह नया इतिहास।
छत्रपति शिवाजी महाराज के अपमान का मामला पीछे छूट गया है। अब भारतीय जनता पार्टी पिता के अपमान के निचोड़ के तौर पर पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के अपमान का प्रकरण सामने ले आई। शिवराय का अपमान करनेवाले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी राजभवन में बैठे हैं और संभाजी राजे के अपमान के कारण अजीत पवार नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दें, ऐसी मांग भाजपा ने शुरू की है। महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीति की ऐसी अवस्था है! शिवाजी महाराज के अपमान का मामला सर्वाधिक गंभीर होने के बाद भी भाजपा ने इस पर आवाज नहीं उठाई, यह इतिहास में दर्ज रहेगा। दिनांक ४ जनवरी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुंबई में आगमन हुआ। राजभवन में योगी से मिलने मुख्यमंत्री शिंदे और उपमुख्यमंत्री फडणवीस पहुंचे। उस मुलाकात के दौरान गर्व से मुस्कुराते हुए खड़े राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की तस्वीरें प्रकाशित हुई हैं। शिवराय का अपमान करनेवाले राज्यपाल के साथ महाराष्ट्र के ‘पॉलिटिकल कपल’ को बेहद शालीनता से पेश आते टीवी न्यूज चैनलों पर जनता ने देखा। प्यार अंधा होता है लेकिन इन्हें सत्ता ने अंधा कर दिया है और उस अंधेरे में शिवराय का मान-सम्मान खो गया!
अपमान किसका?
राज्यपाल ने शिवराय का अपमान किया। संभाजी राजे का अपमान अजीत पवार ने किया, ऐसा भाजपा का दावा है। ‘संभाजी राजे ये स्वराज रक्षक ही हैं, धर्मवीर नहीं’, पवार के इस बयान पर अब भाजपा ने बवाल किया, परंतु संभाजी राजे धर्मवीर के तौर पर स्वीकार किए गए तो औरंगजेब द्वारा उनके साथ किए गए क्रूर अत्याचारों के कारण। उस औरंगजेब का अत्यंत आदरपूर्वक ‘मा. औरंगजेबजी’ ऐसा उल्लेख कल चंद्रशेखर बावनकुले ने किया। इन्हीं ‘औरंगजेबजी’ ने धर्मवीर संभाजी राजे को गिरफ्तार किया, उनका जुलूस निकाला, उन्हें एक जोकर की पोशाक पहनाई और उनकी नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी। उनकी आंखें भी फोड़ दीं, लेकिन संभाजी राजे ने धर्म के प्रति अपना अभिमान और स्वाभिमान नहीं छोड़ा। ये सभी जिस क्रूरकर्मी औरंगजेब की वजह से हुआ, वो ‘औरंगजेबजी’ क्या साधारण असामी था? भाजपा के बावनकुले को यही कहना है। राष्ट्रवादी के नेता जितेंद्र आव्हाड ने इतिहास को नया मोड़ देने का काम इसी दौरान किया। ‘औरंगजेब क्रूर नहीं था’, ऐसी नई जानकारी आव्हाड सामने लाए। औरंगजेब का माहात्म्य बताते हुए श्री आव्हाड ने कहा, ‘विष्णु मंदिर के सामने से संभाजी राजे को गिरफ्तार किया, लेकिन औरंगजेब ने विष्णु मंदिर को नहीं तोड़ा।’ इस एक प्रमाण से औरंगजेब को क्रूर न होने और महान मानवतावादी होने का प्रमाण पत्र आव्हाड ने दिया और बहुधा इसी वजह से चंद्रशेखर बावनकुले ने आव्हाड को आड़े हाथों लेते हुए औरंगजेब का उल्लेख ‘औरंगजेबजी’ ऐसा कहकर किया। लेकिन मुझे वही एकमात्र कारण नहीं दिख रहा। औरंगजेब को ‘माननीय’ अथवा ‘औरंगजेबजी’ ठहराने के पीछे भाजपा नेताओं की मानसिकता ऐसी है कि औरंगजेबजी का जन्म गुजरात के दाहोद में हुआ था। जन्म के समय औरंगजेब के ‘पिताश्री’ गुजरात के सूबेदार थे। औरंगजेब के इस गुजरात कनेक्शन के कारण ही बावनकुले ने उसका उल्लेख ‘औरंगजेबजी’ के तौर पर किया होगा! इससे पहले एक बार कांग्रेस के एक नेता द्वारा अफजल गुरु का उल्लेख ‘अफजल गुरुजी’ कहते ही इसी भाजपा ने राष्ट्रवाद के नाम पर हंगामा किया।
क्रूर शासक
औरंगजेब एक क्रूर शासक था, ऐसा महाराष्ट्र का मानना है। सिंहासन पर बैठने के लिए उसने अपने भाई और पिता की हत्या कर दी। महाराष्ट्र में उसने कई मंदिरों को तोड़ा। उसने छत्रपति शिवाजी महाराज को छलपूर्वक बंदी बना लिया। लाखों हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण किया गया और उनका कत्लेआम किया गया। ऐसा क्रूर शासक ‘क्रूर’ नहीं था, आव्हाड के इस बयान पर भाजपा विधायक राम कदम ने औरंगजेब की क्रूरता की जानकारी प्रस्तुत की। उसी औरंगजेब को ‘सम्माननीय औरंगजेबजी’ ऐसा उल्लेख भाजपा अध्यक्ष ने किया।
मोदी क्या बोले?
औरंगजेबजी के बारे में हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी ने एक जोरदार भाषण लाल किले से दिया। इसे १५ दिन भी नहीं हुआ। मोदी ने २६ दिसंबर को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में भाषण दिया था। सिखों के सर्वोच्च गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों की शहादत के उपलक्ष्य में वीर बाल दिवस का आयोजन किया गया। इस मौके पर मोदी द्वारा दिए गए भाषण को आव्हाड और बावनकुले को समझना चाहिए। मोदी ने औरंगजेब पर अदृश्य तलवार चलाई। ‘औरंगजेब भारत के इतिहास को बदलना चाहता था। औरंगजेब की आतंकशाही के खिलाफ गुरु गोविंद सिंह पहाड़ की तरह खड़े हो गए। औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह और उनके पुत्रों का जबरन धर्म परिवर्तन कराना चाहते थे। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह के साहबजादों ने शहादत स्वीकार की लेकिन औरंगजेब की तलवार के आगे समर्पण नहीं किया। एक तरफ औरंगजेब का आतंकवाद और दूसरी तरफ गुरु गोविंद सिंह का अध्यात्मवाद ऐसी यह लड़ाई थी। एक तरफ कट्टर धर्मांधता और दूसरी तरफ मानवतावाद, उदारवाद। एक तरफ लाखों की फौज, दूसरी तरफ गुरु गोविंद सिंह के साहेबजादे अपने निश्चय से जरा भी डिगे नहीं और उन्होंने देश-धर्म के लिए बलिदान को स्वीकार किया।’ औरंगजेब और उसकी आक्रामक फौज के सामने न झुकने की प्रेरणा गुरु गोविंद सिंह और उनके वीर पुत्रों ने दी। गुरु गोविंद सिंह के चारों पुत्र शहीद हो गए। औरंगजेब के आदेश पर मुगल सेना ने इन वीर सपूतों को मात्र छह और नौ वर्ष की अल्पायु में शहीद कर दिया, यह इतिहास है। उस समय औरंगजेब क्रूर शासक नहीं था, ऐसा वैâसे कह सकते हैं? उस पर बावनकुले का ‘सम्माननीय औरंगजेबजी’ मामला प्रधानमंत्री मोदीजी को भी न जंचने वाला है। छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान सहन करनेवाले ही ‘औरंगजेबजी’ का सम्मान कर सकते हैं!
महाराष्ट्र में यही घटित हुआ!