संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
गौतम अडानी का आर्थिक साम्राज्य खोखली बुनियाद पर खड़ा था। हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट के कारण उनका साम्राज्य ध्वस्त हो गया। अडानी का मतलब भारत कहना भारत का अपमान है। अडानी और मोदी, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। क्या भाजपा के मुख्य आर्थिक स्रोत को रोकने के लिए ही अडानी पर हमला हुआ है? अडानी पर हमला भाजपा के रिजर्व बैंक पर हमला है।
गौतम अडानी मामले से देश में हड़कंप मच गया है और भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। एक-दो उद्योगपतियों की तर्जनी उंगलियों पर किसी महान देश की अर्थव्यवस्था टिकी हो, यह हास्यास्पद था, परंतु पिछले सात-आठ वर्षों में यह खोखला बुर्ज खड़ा हुआ। यह तर्जनीr उंगली श्री अडानी की थी या प्रत्यक्ष हमारे प्रधानमंत्री मोदी की, यही शोध का विषय है।
मूलत: गौतम अडानी और उनका औद्योगिक साम्राज्य खोखली बुनियाद पर खड़ा था। अमेरिका स्थित ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ की एक फूंक से वो ढह गया। इसका झटका देश को लगा है। अडानी के वित्तीय साम्राज्य का पर्दाफाश करना, देश पर हमला है, ऐसा अब कहा जा रहा है। अडानी का मतलब ही हिंदुस्थान है, ऐसा हाल ही में कहा गया। यह है भारत माता का अपमान। सवाल क्या है? २०२४ का लोकसभा चुनाव करीब आने के दौरान अडानी के साम्राज्य पर हमला क्यों किया गया? इसकी वजह एक ही है, अडानी और मोदी। अडानी और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था की इतनी बड़ी लूट का खुलासा होने के बाद भी भाजपा चुप है। इससे यह सिद्ध हो ही गया है। अडानी यानी भाजपा का मतलब स्पष्ट है। अडानी के पास भाजपा का पैसा लगा है। वही भाजपा के मुख्य वित्तीय आपूर्तिकर्ता हैं। भाजपा की आर्थिक आपूर्ति रोकने के लिए ही अडानी पर हमला किया गया था! अडानी पर हमला भाजपा के रिजर्व बैंक पर हमला है।
आपातकाल के दौरान ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा दिया गया था। फिलहाल ‘मोदी का मतलब भारत’ ऐसा कहे जाने के दौरान ही कारोबारी गौतम अडानी ने खुद की तुलना भारत से की और अपने फर्जीवाड़े पर हुए हमले को भारत पर हमला है, ऐसा दावा किया है। इसलिए भारत कितना और भारत किसका? ऐसा सवाल उठ रहा है। गौतम अडानी कौन हैं? यह अब नए से कहने की जरूरत नहीं है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अडानी और उनके व्यापारिक साम्राज्य की संपत्ति में वृद्धि हुई है। अडानी हवाई अड्डों से लेकर बंदरगाहों तक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के मालिक बन गए। उद्योग के सभी क्षेत्रों में वे घुस गए और कुछ ही समय में शीर्ष पर पहुंच गए। अंतत: उन्होंने मुंबई स्थित ‘धारावी’ पुनर्वास परियोजना को भी अपने साये में ले लिया। देश के विकास की हर ईंट और मिट्टी के कण पर अडानी का नाम हो, इस बात का खयाल मोदी सरकार रखती रही और अडानी की अमीरी बढ़े इसके लिए देश के सार्वजनिक बैंक और बीमा कंपनियां अडानी को हजारों करोड़ रुपए देती रहीं। लेकिन यह साम्राज्य खोखली बुनियाद पर खड़ा था और अमेरिका की ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ संस्था के एक शोध पत्र से अडानी का साम्राज्य ताश के पत्तों से बने बंगले की तरह धराशायी हो गया। देश का अब तक का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला इसके माध्यम से सामने आया और विपक्ष के घर ५-१० लाख के लेन-देन के लिए ईडी, सीबीआई की टीमें भेजनेवाली भाजपा सरकार इतने बड़े घोटाले पर खामोश है!
वे क्यों भागे?
विजय माल्या भारतीय बैंकों का ४,००० करोड़ रुपए का कर्ज नहीं चुका पाए और केंद्रीय एजेंसियां माल्या के पीछे हाथ धोकर लग गईं। इस वजह से माल्या ने देश छोड़ दिया। माल्या के ४,००० करोड़ के बदले उनकी हिंदुस्थान में करीब १० हजार करोड़ की संपत्ति केंद्रीय एजेंसियों ने जब्त कर ली थी। फिर भी माल्या आज भी गुनहगार हैं। बैंकों का कर्ज डुबाने के मामले में नीरव मोदी लंदन की जेल में हैं, जबकि मेहुल चोकसी फरार हैं। चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत को भी इसी तरह के मामले में गिरफ्तार किया गया था। ईडी और सीबीआई ने पांच-पच्चीस करोड़ के व्यवहार के मामले में कई प्रतिष्ठित उद्योगपतियों को मुंबई और दिल्ली की जेलों में ठूंस रखा है। उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग, फर्जी कंपनियां बनाकर कारोबार करने का आरोप है। तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले को ईडी ने सिर्फ १० लाख के ‘क्राउड फंडिंग’ मामले में गिरफ्तार किया था। इस सारी पृष्ठभूमि में श्री गौतम अडानी और उनकी कंपनियों द्वारा किए गए लेन-देन झकझोरने वाले हैं। मनी लॉन्ड्रिंग, शेल कंपनियों की डीलिंग इसमें है। अडानी समूह पर भारतीय बैंकों का दो लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। इसमें सबसे बड़ा कर्ज भारतीय स्टेट बैंक का है। अपनी संपत्तियों के मूल्य बढ़ा-चढ़ाकर अडानी समूह ने ये ऋण पाया और ऋण प्राप्त करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए गए। एलआईसी में मध्यम वर्ग का सर्वाधिक पैसा लगा है। इसी एलआईसी ने ५५ हजार करोड़ अडानी समूह में निवेश किया और अब वो फंस गया है। इस पैसे का क्या होगा?
सिर्फ दिखावा
गौतम अडानी और उनके साम्राज्य की नींव प्रधानमंत्री मोदी ने रखी थी, इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा। उद्योगपति और उनका साम्राज्यों के विस्तार करने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन ये साम्राज्य ही देश है ऐसा आभास कराना अपराध है। टाटा, बिड़ला, बजाज, हिंदुजा ने कभी भी खुद को ‘राष्ट्र’ नहीं माना। उनके कारोबार में भी उतार-चढ़ाव आया तो यह राष्ट्र पर हमला है, ऐसा नहीं कहा। अडानी ने खुद को राष्ट्र माना। मोदी और अडानी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, ऐसा लोगों ने तय किया। इसलिए अडानी की वजह से फिलहाल देश का जो नुकसान हो रहा है, इसकी जिम्मेदारी मोदी सरकार को लेनी चाहिए। अडानी की सभी कंपनियां कर्ज में डूबी हुई हैं, ऐसा ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ ने सबूत के साथ सामने लाया है। एक अन्य आरोप यह है कि अडानी समूह स्टॉक एक्सचेंज शेयर बाजार में हेरफेर करके अपने शेयर की कीमतों को बढ़ाता है। अडानी समूह एक बुलबुला है। सब कुछ नकली है, ऐसा इस ‘रिसर्च’ कंपनी का कहना है। तिरंगे के पीछे छिपकर, राष्ट्रवाद के नाम पर अडानी ग्रुप देश को लूट रहा है, ऐसा हिंडनबर्ग कह रहा है। यह सब झूठ और मनगढ़ंत है। हैरानी की बात यह है कि ऐसा कहने के लिए भाजपा का एक भी पोपटलाल अभी तक आगे नहीं आया। अडानी समूह ने खुद को तिरंगे में लपेटकर अपने बचाव का प्रयास किया। लेकिन इस देश का कोई भी उद्योगपति मतलब भारत नहीं है। अधिक-से-अधिक यही कह सकते हैं कि अडानी का मतलब मोदी या शाह है। अडानी की संपत्ति बीते आठ वर्षों में कई गुना बढ़ी है। वे अमीर हो गए, लेकिन देश की जनता गरीब और बेरोजगार ही रही। इसलिए अडानी का मतलब भारत यह सूत्र सही नहीं है और ऐसा कहना मोदी के साथ-साथ भारत माता का भी अपमान सिद्ध होता है।
गांधी का हमला
अडानी की अमीरी फर्जी है, इस पर सबसे पहले राहुल गांधी ने हमला किया था। ‘दो बेचते हैं और दो खरीदते हैं!’ ऐसा श्री गांधी ने बार-बार कहा। देश के बैंक और वित्तीय संस्थान एक-दो उद्योगपतियों के गुलाम बन गए हैं। सरकारी संपत्तियां भाजपा के पसंदीदा उद्योगपतियों को कौड़ियों के मोल बेची गर्इं। मानो यह देश अडानी और अंबानी की जागीर हो गया है और लोकतंत्र बचा ही नहीं है। देश में अडानी के स्वामित्व वाले बोर्ड सर्वत्र दिखने लगे। क्या यह लोगों को पसंद आता? तो इसका जवाब नहीं ही है। लोकतंत्र का और सार्वजनिक संपत्ति के इस अधोपतन को हम खुली आंखों से देखते रहे हैं। श्री अडानी, अंबानी की संपत्ति बढ़ना कोई अपराध नहीं है, लेकिन देश की संपत्ति को मुफ्त में उनकी जेब में डालना देशद्रोह है। यह पिछले सात वर्षों में हुआ है। अडानी भाजपा की सरकार में सबसे बड़े लाभार्थी सिद्ध हुए! अडानी के मामले में जो हुआ, यदि वह कांग्रेस के शासन में हुआ होता तो भाजपा की भूमिका क्या होती? अडानी भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े फाइनेंसर हैं। भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने के लिए भारी मात्रा में खर्च करती है। उनकी राजनीति व्यापार और पैसे पर टिकी है। किसी अन्य दल को राजनीति और चुनाव लड़ने के लिए धन प्राप्त न हो इसके लिए विपक्ष को पैसा देनेवाले उद्योगपतियों, बिल्डरों, व्यापारियों पर जांच एजेंसियों से हमला कराकर विपक्ष के वित्तीय रसद को तोड़ने का काम भाजपा ने लगातार किया है। राजनीति में पैसा सिर्फ हमारे पास रहे और उसमें अडानी का बड़ा हिस्सा हो, यही उनकी नीति थी। अडानी का मतलब ‘रिजर्व बैंक ऑफ भाजपा’ था। भाजपा के उसी रिजर्व बैंक पर सबसे बड़ा हमला हुआ। इसके पीछे देश के उद्योगपति नहीं हैं। दुनिया की प्रमुख शक्तियों ने भाजपा के रिजर्व बैंक पर हमला करके एक तरह से नरेंद्र मोदी को चेताया है।
अडानी प्रकरण जैसा दिख रहा है, उतना सहज नहीं है। यह सिर्फ एक कॉर्पोरेट युद्ध नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी, उसके वित्तीय व्यवहार, लोकतंत्र का गला घोंटकर धन-बल के सहारे सत्ता को बनाए रखने की प्रवृत्ति पर हुआ यह हमला है।
भविष्य में ऐसे और हमले होंगे। इसके परिणाम २०२४ में देखने को मिलेंगे। भारत मां की कोख में क्या छुपा है, इसी की ये एक झलक है!