संजय राऊत- कार्यकारी संपादक
महाराष्ट्र की राजनीति में जोड़-तोड़ का ‘सीजन-२’ आनेवाला है क्या? इस पर बहस चल रही है। शिंदे गुट के १६ विधायक अपात्र होंगे। इसकी भरपाई के तौर पर राष्ट्रवादी के विधायक फोड़े जाएंगे। अजीत पवार से लेकर हसन मुश्रीफ तक ‘ईडी’ का झमेला लगाया गया है। इसका अंत क्या होगा?
‘बिग बॉस’, ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों का ‘सीजन-१’, ‘सीजन-२’ टीवी पर चलता ही रहता है। वैसे ही अब महाराष्ट्र की राजनीति में जोड़-तोड़ का सीजन चल रहा है। शिवसेना को तोड़ा यह ‘सीजन-१’, अब राष्ट्रवादी तोड़ने का ‘सीजन-२’ आ गया है, ऐसी चर्चा जोरों पर है। जोड़-तोड़ का ही मतलब लोकतंत्र है ये अब कुछ लोगों ने तय कर लिया है। हिंदुस्थानी लोकतंत्र को किस तरह मिट्टी में मिलाया जा रहा है, यह अब हर दिन दिख रहा है। कल तक लोगों के वोट खरीदे जा रहे थे। अब जनता द्वारा वोट देकर जिताए गए विधायक-सांसदों को सहज खरीदने पर आज के सत्ताधारी उतर गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अंजलि दमानिया ने सोशल मीडिया पर एक जानकारी बुधवार को प्रसारित की। वे कहती हैं, ‘आज काम के सिलसिले में मंत्रालय गई। वहां एक शख्स ने मुझे रोका और कुछ मजेदार जानकारी दी। उनके कहे अनुसार, शिंदे गुट के १५ विधायक अयोग्य होनेवाले हैं और अजीत पवार, राष्ट्रवादी के १५ विधायकों के साथ तुरंत भाजपा के साथ जानेवाले हैं।’ देखते हैं, महाराष्ट्र की राजनीति की और कितनी दुर्दशा होती है! श्रीमती दमानिया मंत्रालय में गर्इं और उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली, यह दिलचस्प बात है। जिस खबर की महाराष्ट्र और देश को लंबे समय से जानकारी है, सिर्फ यह ‘फेक न्यूज’ है या कुछ और इस सत्य को कैसे ढूंढ़ा जाए? भाई बंदी यह मानव जाति को दिया गया एक श्राप हो सकता है लेकिन सत्ता के लिए इंसान किस हद तक जाते हैं, इसके कई सबक इतिहास में और वर्तमान में हम देखते रहते हैं। महाराष्ट्र और मराठों को बिगड़ने का श्राप है और वह बिगाड़ घर से ही शुरू होता है। शिव छत्रपति ने शून्य से हिंदवी स्वराज की स्थापना की। अतुलनीय पराक्रम से पूरे देश में धमक निर्माण किया। उनके सुपुत्र संभाजीराजे भी पराक्रमी थे, शूरवीर थे। दुर्भाग्य से वे एक विषम हालात में मुगलों को मिल गए, लेकिन उन्हीं संभाजीराजे ने अंतत: स्वराज्य और धर्म के लिए बलिदान दे दिया। उनका वो बलिदान आज भी प्रेरणादायी ही है।
एक ही चर्चा
महाराष्ट्र की राजनीति में फिलहाल इतनी ही चर्चा चल रही है। विपक्ष के नेता अजीत पवार भविष्य में क्या करेंगे? १५ विधायकों के साथ वे भाजपा में शामिल होंगे, ऐसा अयोध्या में गए शिंदे और भाजपा के विधायक छाती ठोककर कह रहे थे। इन सब पर स्पष्ट खुलासा श्री अजीत पवार को ही करना चाहिए। ईडी और अन्य जांच एजेंसियों का झमेला अजीत पवार, उनके परिवार के पीछे लगा ही है। उनके जरंडेश्वर सहकारी चीनी कारखानों पर ईडी का छापा पड़ा और कारखाना जब्त कर लिया गया, लेकिन अब इस संबंध में ईडी ने जो चार्जशीट दायर की है, उसमें श्री पवार अथवा उनके परिजनों का नाम नहीं है। फिर जरंडेश्वर खरीदी के लेन-देन में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का क्या हुआ? या वो तमाम आरोप और छापे राजनीतिक दबाव के लिए ही थे? ऐसी दहशत और दबाव की राजनीति महाराष्ट्र में कभी नहीं हुई थी। बाबा आमटे के जीवित रहने के दौरान एक वरिष्ठ पत्रकार उनसे मिलने गए। उनमें गपशप हुई। ‘देश की एक भी समस्या सुलझती है, ऐसा लगता नहीं है…’ ऐसा उस पत्रकार ने कहा। उस पर बाबा ने जवाब दिया, ‘कैसे लगेगा? राजनीतिक दल किसी भी समस्या का समाधान तो कर नहीं रहे हैं, उल्टे वे ही नई-नई समस्या पैदा कर रहे हैं।’ आज महाराष्ट्र में वही चल रहा है। सत्ता पर आज कौन है? जिन्हें होना चाहिए था वे नहीं। समस्याएं बढ़ाने का काम करनेवालों से ही समस्याएं हल करो, ऐसा कहना है?
राष्ट्रवादी के कौन?
शिवसेना के ४० विधायक तोड़कर भाजपा ने महाराष्ट्र में सत्ता स्थापित की। यह अनैतिक है। उनमें से १६ लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोग्य घोषित होंगे, इसलिए सत्ता बचाने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस के उतने ही विधायक ईडी, सीबीआई की मदद से फोड़ने की साजिश चली है। वे १६ कौन? जिन पर किसी-न-किसी कारण से मामले हैं उन्हें धमकाना है। श्री हसन मुश्रीफ और उनके परिवार पर भाजपा ने हमला शुरू कर दिया है। ‘सरसेनापति संताजी घोरपड़े चीनी कारखाने’ के लेन-देन का यह मामला। मुश्रीफ प्रताड़ित होकर भाजपा में जाएं, ऐसी कुल मिलाकर साजिश है। मुश्रीफ श्री शरद पवार के विश्वसनीय हैं, लेकिन जेल में किसी को भी नहीं जाना है। श्री एकनाथ शिंदे को भी जेल में नहीं जाना था। इसलिए उन्होंने भाजपा का मार्ग स्वीकार किया। वे सीधे बेईमानों के सरदार बन गए। मंगलवार की शाम श्री उद्धव ठाकरे के साथ श्री शरद पवार से मिला। उन्होंने कहा, किसी को भी मन से छोड़कर नहीं जाना है, लेकिन परिवार को टार्गेट किया जा रहा है। किसी को कोई व्यक्तिगत निर्णय लेना होगा तो वो उनकी समस्या है, लेकिन ‘पार्टी’ के तौर पर हम भाजपा के साथ जाने का निर्णय नहीं लेंगे। वर्तमान में महाराष्ट्र के लोगों में सरकार के प्रति जबरदस्त नाराजगी है। जो अब भाजपा के साथ जाएगा, वो राजनीतिक आत्महत्या करेंगे, ऐसा पवार-ठाकरे का मत आया है। ईडी के खौफ से लोगों को तोड़ना ये सभ्य लोगों की राजनीति नहीं है। राजनीति में रहकर लोगों ने अपार संपत्ति अर्जित की। इसे बनाए रखने के लिए उन्हें सत्ता के कवच-कुंडल की जरूरत होती ही है। इससे थोक में दलबदल होते हैं। श्री पवार ने एक अच्छा मुद्दा रखा, ‘आज जो डर से पार्टी छोड़ रहे हैं, मैं उनसे कहता हूं, आपके भाजपा में जाने से टेबल पर रखी फाइल कपाट में जाएगी, लेकिन ये ईडी-सीबीआई की फाइलें कभी बंद नहीं होतीं!’ शिंदियों के साथ गए ११ विधायक और १६ सांसदों की फाइल फिलहाल टेबल पर से कपाट में गई हैं। शिंदे गुट की तरह कांग्रेस-राष्ट्रवादी के विधायकों की ऐसी कितनी फाइलें कपाट में जाएंगी, ये देखना होगा। आज राज्य की तस्वीर क्या है? शिंदे सरकार के मंत्री मंत्रालय में नहीं जाते। देवेंद्र फडणवीस ‘सागर’ बंगले से काम करते हैं। ‘वर्षा’ समेत तीन सरकारी बंगले शिंदे के कब्जे में हैं। शिंदे के सुपुत्र प्रशासन में सीधे हुल्लड़बाजी करते हैं। इसलिए मंत्रालय से लेकर सर्वत्र अस्वस्थता है। सरकार कहां जा रही है? वो मंत्रालय में ही सोई हुई है।
अमीर कैसे होते हैं?
सत्ता में आते ही लोग ‘अमीर’ हो जाते हैं। अमीर राजनेताओं के ‘पीए’ बड़े से बड़े सौदे करते हैं। खुद का विमान और हेलिकॉप्टर लेकर घूमनेवाले राजनेता आज महाराष्ट्र में हैं। कई मंत्रियों के फॉर्म हाउस पर आज ‘हेलिपैड्स’ हैं। इन सभी की कमाई कितनी है? सार्वजनिक जीवन को स्वच्छ करने के लिए केवल बातें होती हैं। प्रत्यक्ष में कुछ घटित नहीं होता है। अडाणी प्रकरण में प्रधानमंत्री मोदी का सीधे तौर पर नाम जुड़ा। वे उस पर बात नहीं करते। कनाडा में एक मंत्री किसी के लिए पुलिस थाने में गया तो उसे इस्तीफा देना पड़ा। पुलिस के कामकाज में उसने हस्तक्षेप किया, ऐसा माना गया। जापान में एक मंत्री सरकारी वाहन से दौरे पर गया, लेकिन रविवार आते ही वही वाहन लेकर पिकनिक पर चला गया इसलिए उसे इस्तीफा देना पड़ा। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने एक पोर्न स्टार को सुलह-सफाई के लिए पैसे दिए, इसलिए गिरफ्तार हुए। अमेरिका व जापान में व्यक्तिगत जीवन में अनैतिक मामला सार्वजनिक होते ही कोई भी सत्ता में नहीं रह सकता। वहां अखबार ही इन कामों को प्रमुखता से करते हैं, लेकिन वे विपक्ष का काम कर रहे हैं, ऐसा कोई नहीं कहता है। हमारे यहां सत्ताधारियों ने अखबारों को ही कब्जे में ले लिया है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का पहले ही निजीकरण हो चुका है। किसी ने कुछ भी अनैतिक काम किया तो अब घबराने की कोई वजह नहीं है। उन्हें सीधे दलबदल करना है और सत्ताधारियों के दल में शामिल होना है!
लोकतंत्र को खुलेतौर पर मिट्टी में मिलाया जा रहा है!