संजय राऊत -कार्यकारी संपादक
नई मुंबई के खारघर में १४ साधक मारे गए। ये बलि सरकार द्वारा तपती धूप में ली गई। वर्ष २०१९ में ‘पुलवामा’ हमले में ४० जवान सरकार की मेहरबानी से शहीद हुए थे, ऐसा धमाका जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किया है। ‘पुलवामा’ पीड़ित भी गैर इरादतन मानव वध हैं और पालघर के तीन साधुओं की हत्या भी एक गैर इरादतन मानव वध ही है! फिर अलग-अलग न्याय क्यों?
वर्तमान में इंसानी जीवन का किसी के लिए कोई महत्व नहीं रह गया है और निम्न स्तर की राजनीति ने वर्तमान समय में मृत्यु को सबसे सस्ता बना दिया है। चिलचिलाती धूप में ‘महाराष्ट्र भूषण’ पुरस्कार समारोह संपन्न हुआ। राजनेताओं और अमीरों के निकटवर्तियों के लिए ठंडे पंडाल और छायादार मंच बनाए गए और लाखों लोगों का जनसागर धूप में था। उनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग आदि खुले में ४२ डिग्री तापमान में थे। उस पर अमीरों के भाषण लंबे होते गए तथा लू और भगदड़ के कारण १४ लोगों की जान चली गई। यह संख्या सही नहीं है। ये सरकारी उदासीनता के शिकार हैं, लेकिन सरकार अभी भगवान बन गई है। क्योंकि गरीबों को सरकार देती है। इसलिए मौत भी सरकार ने दी है। अत: १४ बेगुनाहों की मौत के लिए सरकार पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया जाना चाहिए? यह सीधा सवाल है। पिछले पंद्रह दिनों में सरकार प्रायोजित गैर इरादतन हत्याओं के दो मामले सामने आए हैं। वर्ष २०१९ में पुलवामा में हुए नरसंहार में ४० जवानों की हत्या मोदी सरकार की निष्क्रियता का परिणाम थी। भारतीय जनता पार्टी ने ‘पुलवामा’ नरसंहार का इस्तेमाल सियासी लाभ के लिए किया, ये पहली बात। खारघर में ‘महाराष्ट्र भूषण’ समारोह के उपलक्ष्य में लाखों लोगों को एकत्रित करके गृहमंत्री अमित शाह से शाबाशी पाना, ऐसा मुख्यमंत्री शिंदे का राजनीतिक स्वार्थ था, ये दूसरी बात। पुलवामा और खारघर दोनों हादसों में बेगुनाह लोग मारे गए। दोनों मामलों में सरकार द्वारा गैर इरादतन हत्या का अपराध किया गया था। अब भारतीय जनता पार्टी का दोमुंहापन कैसे है, ये देखिए। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहने के दौरान पालघर में भीड़ के हाथों तीन साधुओं की हत्या कर दी गई थी। इसलिए ठाकरे के राज में हिंदुत्व की हत्या कर दी गई, ऐसा शोर मचाकर पूरे देश में माहौल बनाया गया। तब प्रतिपक्ष के नेता श्री देवेंद्र फडणवीस थे और उन्होंने साधुओं की हत्या के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की। डहाणू के गढ़चिंचले गांव में जहां साधुओं की हत्या हुई थी, वहां श्री फडणवीस सहित पूरी भाजपा पार्टी का मेला लगा था, लेकिन अब खारघर में जो १४ श्री सेवक मारे गए वे भीड़ के ही शिकार थे। ये १४ लोग हिंदुत्व के कार्य के लिए ही खारघर आए थे और सरकारी उदासीनता के शिकार बन गए। लेकिन इस हत्याकांड पर श्री फडणवीस और उनकी भाजपा की पूरी ‘तीर्थयात्रा’ चुप्पी साधे है।
१४ हिंदू एक धार्मिक कार्यक्रम में मारे गए। पैसे बांटकर इस पूरे प्रकरण पर पर्दा डालने के लिए अस्पताल में और मृतकों के घर किसके लोग पहुंचे? गृहमंत्री फडणवीस, कृपया जांच करें!
खारघर का हत्याकांड
पालघर साधु हत्याकांड और खारघर के श्री सेवक हत्याकांड में अंतर नहीं किया जा सकता है। पुलवामा का हत्याकांड इन सबसे ऊपर है। पुलवामा मामले में सत्यपाल मलिक का नाम फिलहाल घर-घर में पहुंच गया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक का एक सनसनीखेज इंटरव्यू प्रसारित हुआ। तब से टीवी, न्यूज चैनलों और अखबारों के पसीने छूट रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मलिक के बयानों को प्रमुखता से प्रसारित करने के बजाय उनकी खबरों को कैसे दबाया जाए, इसी को लेकर उनकी कसरत चल रही है। गुलाम नबी आजाद से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक, महाराष्ट्र में शिंदे-अजीत पवार की सियासी बगावत पर दिनभर चर्चा करानेवाली मीडिया ने मलिक द्वारा पुलवामा हत्याकांड को लेकर किए गए खुलासों पर ‘प्रतिबंध’ ही लगा दिया। उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर अतीक अहमद के हत्याकांड को उसी समय अंजाम देकर मलिक द्वारा किए गए ४० जवानों की हत्या से संबंधित धमाके को दबाने का प्रयास किया गया। श्री मलिक ने क्या धमाका किया? १४ फरवरी, २०१९ को पुलवामा में ४० जवानों को ले जा रहे वाहनों पर आतंकियों ने हमला किया था। आरडीएक्स नामक विस्फोटकों का इस्तेमाल करके जवानों को ले जा रहे वाहनों को उड़ा दिया गया। इसमें ४० जवान शहीद हो गए थे। जवानों के जिस्म के परखच्चे उड़ गए थे। सत्यपाल मलिक ने अब करण थापर को इंटरव्यू दिया और कहा कि जवानों की ये बलि सरकार की गलती से चढ़ी। मलिक ने प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को तुरंत खबर दी, लेकिन पहले प्रधानमंत्री मोदी और फिर श्री अजीत डोभाल ने राज्यपाल मलिक से इस मुद्दे पर चुप रहने को कहा। इस हमले का ठीकरा पाकिस्तान पर फोड़कर लोकसभा चुनाव में उतरने का ‘प्लान’ उनके दिमाग में रहा होगा, ऐसा श्री मलिक ने उस समय महसूस किया और वही हुआ। ‘आइए ४० जवानों की शहादत का बदला लेंगे, पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे’। ऐसा प्रचार तब भाजपा की ओर से शुरू हुआ। मतदाताओं से भावनात्मक अपील की गई। सत्यपाल मलिक तब जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल थे और उन्हें मोदी और डोभाल दोनों ने नियुक्त किया था। तो मलिक के हालिया धमाके से ‘मीडिया’ में सनसनी पैदा होनी चाहिए थी, लेकिन मीडिया में एक तरह से सन्नाटा छा गया। यह सरकार द्वारा प्रायोजित खामोशी ही होनी चाहिए, इतना तय है।
पुलवामा की साजिश
पुलवामा हमला सरकार द्वारा प्रायोजित था क्या? क्या यह २०१९ का चुनाव जीतने के लिए सुनियोजित ढंग से रची गई राजनीतिक साजिश थी? ऐसी आशंका अब सामने आई है। सत्यपाल मलिक को अपना मुंह बंद रखने के लिए कहा गया, लेकिन ‘पुलवामा’ शैली के हमले की प्रबल आशंका है, ऐसी चेतावनी खुफिया विभाग द्वारा दी गई थी। ‘फ्रंटलाइन’ पत्रिका के फरवरी २०२१ के अंक में किए गए खुलासे को भाजपा के अंधभक्तों को चश्मे से देखना चाहिए। सरकारी खुफिया विभाग ने स्पष्ट संदेश दिया था कि विस्फोटकों का इस्तेमाल करके जवानों के वाहनों पर हमला किया जाएगा, यह जानकारी खुफिया विभाग ने केंद्रीय गृह विभाग को कम-से-कम बारह बार भेजी थी। ‘फ्रंटलाइन’ द्वारा सबूतों के साथ प्रकाशित इस विस्फोटक जानकारी की तह में जाकर केंद्रीय गृह मंत्रालय को जांच करनी चाहिए थी। ऐसा क्यों नहीं हुआ? ९ फरवरी को पक्की खबर थी कि जैश-ए-मोहम्मद बड़े हमले की तैयारी कर रहा है। अवंतीपोरा और पंपोरा इलाके में हमले का प्रदर्शन, प्रशिक्षण चल रहा है।
पुलवामा हमले से दो दिन पहले खुफिया एजेंसियों ने हमले का पूरा ‘प्लान’ केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया था।
१२ फरवरी को, आईबी (केंद्रीय गुप्तचर एजेंसी) के मल्टी-एजेंसी सेंटर को एक गुप्त सूचना मिली कि जैश-ए-मोहम्मद के पाकिस्तानी हैंडलर ने हमले की तैयारी पूरी कर ली है और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के लोग जिन-जिन सड़कों का उपयोग करते हैं, उन सड़कों पर आईईडी विस्फोटक लगाने की तैयारी चल रही है और फिर, हमले से २४ घंटे पहले, अर्थात अंत में ग्यारहवीं ‘चेतावनी’ मिली कि जैश-ए-मोहम्मद सुरक्षा बलों के मार्ग में आईईडी विस्फोटकों का इस्तेमाल करके सैनिकों के वाहनों को उड़ा सकता है। सावधान रहें! इन तमाम चेतावनियों और खतरे से संबंधित सुझावों के बावजूद अगले ही दिन १४ फरवरी को सीआरपीएफ के २,५०० से ज्यादा जवानों को उसी खतरनाक मार्ग से भेजा गया। इसी सड़क पर विस्फोटक लगाए जाने की सूचना पहले ही मिल चुकी थी। सीआरपीएफ की ‘कमांड’ को भी खतरे को लेकर अलर्ट कर दिया गया था। इसलिए सैनिकों को सड़क से ले जाना खतरनाक होने की सूचना देकर विमान से भेजने की मांग की गई थी। गृह मंत्रालय ने विमानों की मांग को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, उस रूट की सभी सुरक्षा चौकियों का भी ध्यान नहीं रखा गया। सब नाके खुले ही छोड़ दिए। इस वजह से जिसका डर था, वही हुआ। गुप्तचरों द्वारा सरकार को दी गई जानकारी सच निकली। वही जैश-ए-मोहम्मद के बारे में। उनके माध्यम से उसी मुदस्सिर खान के नेतृत्व में उसी पुलवामा, अवंतीपोरा क्षेत्र में आईईडी विस्फोट करके ४० जवानों को मार डाला। ये इसी तरह से हुआ ऐसी जानकारी आईबी ने गृह मंत्रालय को दे दी थी।
सरकार ने अक्षम्य उपेक्षा दिखाई और ४० जवानों ने अपनी जान गंवाई। इसे देशद्रोह और गैर इरादतन हत्या कहते हैं।
‘चुप रहो’ नीति!
‘आईबी’ मतलब केंद्रीय खुफिया विभाग ने पुलवामा हमले के बारे में पहले ही विश्वसनीय जानकारी पहुंचा दी थी। सरकार ने इसकी अनदेखी की और जवान मारे गए। लिहाजा, अब सत्यपाल मलिक के धमाके को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश के रक्षामंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस पर खामोश हैं। वैसे तो लंबी-लंबी ‘फेंककर’ भाषण देनेवाले भाजपाई चुप हैं। अतीक अहमद की हत्या का श्रेय लेनेवाले, माफिया राज को खत्म कर दिया और पूरी तरह धूल में मिला दिया, ऐसा कहनेवाले भाजपाई और उनकी सरकार सत्यपाल मलिक के खुलासों पर एक शब्द नहीं बोल रही है। शायद वे सभी मलिक को मारने, पागल, भ्रष्ट या देशद्रोही ठहराकर जेल में डालने की साजिश रचने में व्यस्त होंगे। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी गौतम अडानी की लूट पर खामोश रहे और अब ४० जवानों के नरसंहार पर सत्यपाल मलिक के खुलासे पर खामोश हैं। पालघर के तीन साधुओं की हत्या पर जो ‘भाजपा’ और उसके मंत्री उबल उठे थे, वे खारघर के ‘साधकों’ की बलि पर खामोश हैं। पुलवामा के खुलासे पर बोलती बंद हो गई है। हमारे प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी की विफलता और कतार में सैकड़ों पीड़ितों की मौत के बारे में बात नहीं करते, मोदी अडानी घोटाले के बारे में बात नहीं करते और जो मोदी जनसभाओं में सर्जिकल स्ट्राइक पर आतिशबाजी की तर्ज पर बात करते रहे, वही मोदी पुलवामा हत्याकांड पर सत्यपाल मलिक ने जो धमाका किया, उस पर भी बात तक नहीं कर रहे!
मोदी निश्चित तौर पर मौनी बाबा क्यों बन गए? उनकी जिह्वा को इस तरह से खामोशी का ऐसा रोग क्यों हो गया? लोग मरें, जीएं, सैनिक बम धमाकों में मरते हैं, लोग कुचलकर मरें, इससे हमें क्या? सरकार उसी भूमिका में है!