मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : बारसू की जहरीली लड़ाई! ...प्रकृति की जीत होगा

रोखठोक : बारसू की जहरीली लड़ाई! …प्रकृति की जीत होगा

संजय राऊत – कार्यकारी संपादक 
रत्नागिरी के ‘बारसू’ में जहरीली रिफाइनरी के खिलाफ जनता की लड़ाई भड़क गई है। कोकण की प्रकृति पर जहरीली परियोजना थोपना यह विकास न होकर राजनीतिक व्यभिचार है। बारसू क्षेत्र में परप्रांतीयों ने, राजनेताओं ने, अधिकारियों ने बड़ी तादाद में जमीन खरीदी है। उस जमीन की कीमत कम न हो इसलिए परियोजना होनी ही चाहिए ऐसा जिन्हें लगता है, उन्हें विषैली परियोजना के कारण होनेवाली जनहानि का भी विचार क्यों नहीं करना चाहिए?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मंगलवार-बुधवार इस तरह से दो दिन के लिए अवकाश पर चले गए, ऐसी खबर प्रकाशित हुई, जो कि मजेदार है। मुख्यमंत्री शिंदे ये अवकाश लेकर सातारा स्थित अपने गांव गए और इस दौरान वे पूरी तरह से एकांतवास में हैं। उनके अवकाश और एकांतवास की खबर मीडिया ने प्रकाशित की, तब मुख्यमंत्री ने आनन-फानन में कुछ पत्रकारों को अपने घर में बुलाकर खेत का निरीक्षण करनेवाली तस्वीरें प्रसारित कराई। मुख्यमंत्री शिंदे अवकाश पर क्यों गए और छुट्टी किससे मंजूर कराई? मुख्यमंत्री सातारा स्थित अपने गांव कई बार जाते हैं और ‘अवकाश’ लिए बिना जाते रहते हैं। लेकिन इसी बार ‘छुट्टी’ पर हूं, ऐसा कहकर वे गांव चले गए और एक-दो दिन अदृश्य हो गए। ये संशयास्पद है। मुख्यमंत्री पद पर विराजमान व्यक्ति इंसान ही होता है और उसका मन व शरीर थकता है। उस पर मुख्यमंत्री की सरकार मतलब ४० सिरों वाला रावण है ये समझ लें तो मुख्यमंत्री विश्राम के लिए अवकाश पर क्यों गए, उसका खुलासा हो जाएगा। मुख्यमंत्री अवकाश पर गए उस दौरान महाराष्ट्र में वास्तव में क्या घटनाक्रम घटित हो रहा था? कोकण के ‘बारसू’ में रिफाइनरी विरोधी परिवार के साथ सड़कों पर उतर आए, जहां रिफाइनरी के लिए जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण का काम चल रहा है, वहां सभी प्रदर्शनकारी अपनी पत्नी-बच्चों के साथ घुस गए। जमीन हमारी है, छोड़ेंगे नहीं। ऐसी चेतावनी दी। तब पुलिस वाले अपनी बंदूकें तानकर उन्हें घसीटते हुए ले गए और लाशों की तरह उन्हें पुलिस वैन में फेंक दिया। रिफाइनरी का विरोध करनेवालों के खिलाफ तड़ीपारी और गिरफ्तारी चल रही है। पुलिस मुंबई में राजापुर-बारसूवासियों के घरों में घुस गई। ये दमनशाही शुरू रहने के दौरान मुख्यमंत्री शिंदे ही अवकाश पर चले जाते हैं? उपमुख्यमंत्री फडणवीस छत्रपति शिवराय की प्रतिमा के अनावरण के लिए मॉरीशस निकल गए और शिवराय की प्रजा यहां पुलिस बल के नीचे कुचल दी गई।

सब कुछ खत्म होगा!
रिफाइनरी से कोकण की भूमि, बाग, आम, मत्स्य उद्योग खत्म हो जाएगा। कोकण की प्रकृति ही मर जाएगी। बारसू परियोजना के इर्द-गिर्द पहले ही परप्रांतीयों ने बड़ी तादाद में जमीन खरीदकर रख ली है। बारसू परियोजना नहीं हुई, तो इन बाहरी लोगों का ‘निवेश’ बर्बाद हो जाएगा, लेकिन इसके लिए कोकणवासियों की भूमि और फल के बागों की बलि देना यह भ्रष्टाचार है। बारसू की प्रस्तावित परियोजना परिसर में विदर्भ के भाजपा विधायक ने ६० एकड़ जमीन खरीद ली है, ऐसी जानकारी विधायक जितेंद्र आव्हाड ने दी। महाराष्ट्र के कई राजनेताओं और अधिकारियों का भी वहां निवेश है। यह भ्रष्टाचार है। राजापुर की गंगा को भ्रष्टाचार अमान्य है। दुर्व्यवहार वह बर्दाश्त नहीं करती है। इस गंगा को अहंकार स्वीकार नहीं है। वर्ष १९०२ में जब यह गंगा अवतरित हुई तब किसी ने अपने पूर्वजों को स्वर्ग में सुखी रखने के लिए उनकी अस्थियों को कुंड में डाला। दूसरे दिन गंगा अंतर्धान हो गई, ऐसी एक सच्चाई है। सांगली के राजे श्रीमंत चिंतामणराव पटवर्धन ने इस गंगा अवतरण का समाचार सुना और स्नान के लिए निकले। उनके घाट पर पहुंचने तक गंगामाई अंतर्धान हो गई। ऐसा बार-बार हुआ। राजापुर की गंगा, समुद्र और प्रकृति को बिगाड़ने के लिए जो आए वे फिर कभी भी खड़े नहीं हो सके। रत्नागिरी के पालक मंत्री उदय सामंत को इस पर ध्यान देना चाहिए। कोकण के कातिलों के रूप में इतिहास में नाम दर्ज कराना है, तो ‘विष’ का विरोध करनेवालों पर डंडे चलाएं या गोली मारें। आपको भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

कोकण में विरोध नहीं!
पहले नाणार में रिफाइनरी लगनेवाली थी। उसका जनता ने विरोध किया। नाणार के विकल्प के रूप में बारसू, सोलगांव क्षेत्र में रिफाइनरी बनाई जा सकती है क्या? इसका परीक्षण महाराष्ट्र में ‘ठाकरे’ सरकार के समय किया गया, लेकिन इस तरह से कि यदि जनता का विरोध नहीं होगा तो, ऐसी उनकी भूमिका स्पष्ट थी। अब बारसू के लोग भी विरोध कर रहे हैं। ‘ऐसे में महाराष्ट्र का औद्योगिक विकास वैâसे होगा? उद्योगों का विरोध करना ठीक नहीं।’ ऐसे सवाल अब पूछे जा रहे हैं। ये सही है। लेकिन चिपलून स्थित एमआईडीसी और वहां के बड़े उद्योगों का किसी ने विरोध नहीं किया। रायगड़ जिले में बड़े उद्योग हैं। कई रासायनिक संयंत्र रायगड़ जिले में हैं। अलीबाग के थल में राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (Rण्इ) है और इसके लिए भी सैकड़ों एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। पातालगंगा में अंबानी की परियोजना है, उसके लिए भी लोगों ने जमीनें दी हैं। इसलिए कोकण की जनता परियोजनाओं का विरोध करती है यह प्रचार गलत है। वेदांता, फॉक्सकॉन, एयरबस जैसी परियोजनाएं महाराष्ट्र से क्यों गर्इं? वो कोई कोकण में नहीं थीं और उनका किसी ने विरोध नहीं किया था। ये परियोजनाएं क्यों चली गर्इं? इसका जवाब महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री को देना चाहिए। वैश्विक स्तर पर मुंबई के महत्व को कम करने की साजिश गुजरात की धरती से चल रही है। मुंबई इसके आगे देश की आर्थिक राजधानी न रहे, इसके लिए जो अथक साजिश दिल्ली के स्तर पर चल रही है, उसे रोकने की हिम्मत अवकाश पर चल रहे मुख्यमंत्री और उद्योग मंत्री के पास है क्या? ‘रिफाइनरी’ का क्या करना है इसका निर्णय अब कोकण की जनता लेगी। राजापुर-बारसू क्षेत्र में जिन्होंने पहले ही जमीन खरीद रखी हैं। उनके दलाल इस बारे में बात न करें। श्री विनायक राऊत कोकण के सांसद हैं। पहले नाणार और फिर बारसू इलाके में परप्रांतीयों ने बड़ी तादाद में भूमि का व्यवहार कर रखा है। रिफाइनरी नहीं हुई तो इन परप्रांतीयों को नुकसान होगा। फिर कई स्थानीय नेताओं और मंत्रियों की बेनामी जमीनें खरीदी गई हैं। ऐसे सभी जमींदारों की सूची श्री विनायक राऊत और विधायक रवींद्र वायकर ने मुझे दिखाई। ये सभी नाम झकझोरने वाले हैं। जनहित में, महाराष्ट्र के हित में इन लुटेरों के नाम अब सामने लाए जाने चाहिए। विकास के नाम पर जनता की जमीन-जायदाद को राख बनाना और अपना लाभ उठा लेना। कोकण के विधायक केसरकर कहते हैं, ‘रिफाइनरी से हजारों युवाओं को रोजगार मिलेगा। विरोध न करें!’ यह भी परप्रांतीय जमींदारों की खुशामद है। रिफाइनरी की तकनीक अत्याधुनिक होती है और उसमें कम-से-कम लोगों का इस्तेमाल होता है। इसलिए ‘हजारों लोगों के रोजगार का गुड़ न लगाएं। किसान खुद के हक की जमीन, फलों के बाग दे देगा और बाद में भीख मांगने को मजबूर हो जाएगा। मुंबई की तरह कोकण को भी त्यागने की नौबत भूमिपुत्रों पर आ जाएगी। बारसू की रिफाइनरी यह एक रासायनिक परियोजना है, पहले ये स्वीकार करो। यह रिफाइनरी कोकण के लिए फायदेमंद है, ऐसा जिन लोगों को लगता है, उन्हें मुंबई के माहुल-चेंबूर इलाके में जाकर वहां के लोगों की अवस्था और हाल देखना चाहिए। माहुल क्षेत्र में छोटा बच्चा पैदा होता है तो श्वसन और चर्म विकार के साथ। यहां के निवासी कई तरह की व्याधियों से त्रस्त हैं। कैंसर और दमा जैसी बीमारियों का प्रमाण बढ़ा है। मानव जीवन की जहां कोई गारंटी नहीं है, वहां इस जहरीले प्रकल्प से क्या करना है?

पत्रकार की हत्या!
कोकण में कृषि सीमित है। आम, काजू, कोकम जैसे उत्पादन हैं। मत्स्य पालन ये आय का एक स्रोत है। जहरीली परियोजना की वजह से हाथ में मौजूद रोजगार और व्यवसाय भी चला जाएगा। ये सभी बचाने के लिए रत्नागिरी के लोग एकत्र हुए। रिफाइनरी के विरोध में शशिकांत वारिशे नामक पत्रकार ने आवाज उठाई तब उसकी सरेआम हत्या कर दी गई। उस वारिशे का परिवार आज असहाय हो गया है और सरकारी मदद की घोषणा हवा में गुम हो गई। इसलिए ‘रिफाइनरी’ हजारों लोगों को रोजगार देगी, कम-से-कम कोकण के मंत्रियों को तो ऐसा झांसा देना बंद करना चाहिए। उपजाऊ जमीन देना और अविश्वसनीय परियोजना लाना, यह एक जुआ है। नौकरियों का झांसा नहीं चाहिए। हमारे बच्चे कमाकर खा लेंगे, ऐसा बारसू की महिलाएं चिल्लाकर कहती हैं तो पुलिस किसानों के घर में ऐसे ही घुसती है और उन्हें धमकाती, हमला करती है, जैसे किसी आतंकी के घर में घुसी हो। राजापुर में मानो पुलिस छावनियां ही लग गई हैं। ये तस्वीर दहशत पैदा करनेवाली है! विकास किसे नहीं चाहिए है? वो चाहिए ही है। लेकिन विनाश की नींव पर वो खड़ा नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी विकास की बातें करते हैं। वो विकास मतलब अंत में झूठा निकला। पसंदीदा लोगों की अमीरी बढ़ानेवाला विकास किस काम का?
कोकण को प्रकृति का वरदान प्राप्त है। शासकों द्वारा कोकण और पर्यटन की अनदेखी किए जाने के बाद भी कोकण सुंदर और मनोरम है। कोकण स्वादिष्ट और संस्कारी है। मनुष्य जुझारू, स्वाभिमानी लेकिन सीधे और भोले हैं। उन्हें अमीर बनने की भूख नहीं हैं। पद, बंगला नहीं चाहिए। कृषि, मछली, आम, मूली, काजू, चावल में ही वे प्रसन्न हैं। गणपति और होली उन्हें दिवाली से ज्यादा भारी लगती है। कृषि भूमि का एक टुकड़ा और पिता का घर यही उनकी पुश्तैनी संपत्ति है। उस पर विनाश का हल चलाना कोकणी लोगों को मंजूर नहीं है। कोकणी जनता के श्राप से स्वार्थी राजनेताओं का विनाश हो जाएगा। वहां विनाशकारी परियोजनाओं को क्या लेकर बैठे हो?
बारसू की लड़ाई में स्वार्थी राजनेताओं की पराजय होगी। प्रकृति जीते बिना नहीं रहेगी।

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