मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : श्री गणपति का लोकतंत्र!

रोखठोक : श्री गणपति का लोकतंत्र!

संजय राऊत 
संसद के विशेष सत्र की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी, गणेश पूजन से करेंगे। गणपति लोकतंत्र के देवता हैं, ये शायद मोदी भूल गए हैं, ऐसा लग रहा है। प्राचीन भारत में संघीय शासन प्रणाली थी। वह एक संघराज्य पद्धति थी। उन संघराज्यों के ‘सेनापति’ गणपति थे। लोकतंत्र वहां चल रहा था। अब संघराज्य पद्धति नष्ट की जा रही है। गणपति उत्सव में इस पर चर्चा होनी चाहिए।
दिल्ली में नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह गणेश पूजन से शुरू होगा। ऐन गणपति में प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में राजनीतिक गणेश उत्सव मनाने का निर्णय लिया है। संसद का विशेष सत्र इसीलिए है। लोकसभा चुनाव जीतने के लिए लोगों की समस्याएं कम व सार्वजनिक, धार्मिक उत्सव अधिक मनाए जा रहे हैं। संसद में गणेश पूजन किए जाने के बाद भी वर्ष २०२४ में भाजपा की संसद में पुनर्स्थापना नहीं होगी, ये श्री गणपति के मन में है। दिल्ली में ‘जी-२०’ का उत्सव मनाया गया। कुछ वैश्विक नेताओं ने ये सवाल पूछा कि दिल्ली में इतने बड़े नेताओं को बुलाकर भारत के प्रधानमंत्री ने क्या साध्य किया? हमारा समय बर्बाद किया। सर्वाधिक समय ‘फोटोबाजी’ में ही बर्बाद किया। सभी वैश्विक नेताओं को लेकर प्रधानमंत्री मोदी राजघाट पर गांधी के चरणों में पहुंचे। ५२ मिनट के उस कार्यक्रम में ४७ मिनट फोटोबाजी में ही बीत गए। बीस देशों के राष्ट्रप्रमुख दिल्ली आए, लेकिन मोदी ने उनके निवासस्थान पर ‘डिनर’ पार्टी आयोजित की अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए। इसलिए अन्य १९ लोग उस दिन अपने-अपने होटलों में खाली ही बैठे थे, ऐसी चर्चा दिल्ली के गलियारों में है। ‘गणपति आला आणि नाचून गेला’ ऐसा पारंपरिक गीत है। उसी तरह देश-देश के राजा-महाराजा दिल्ली में आकर चले गए। इन सभी के आने से हमारा देश विश्व में तीसरे क्रमांक की महासत्ता बना होगा तो आनंद ही है।

खुलापन है क्या?
गणपति लोकतंत्र के देवता हैं, श्री मोदी को शायद यह स्मरण नहीं होगा। अंग्रेजों की तानाशाही को पलटने के लिए लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की योजना बनाई। लोग एक साथ इकट्ठा हों। देश के बारे में विचार करें, निर्णय लिया जाए। लोगों को गुलामी और जुल्म के खिलाफ खुले तौर पर बोलने का मौका मिले, इसलिए सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरू हुआ। उसी गणपति के समारोहों से उस समय वीर चापेकर बंधु तैयार हुए। उसी गणेश का पूजन प्रधानमंत्री मोदी नए संसद भवन में करनेवाले हैं, लेकिन इस वास्तु के पहले उद्घाटन के समय उन्होंने महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया। क्योंकि वो आदिवासी हैं और आज भाजपा के लोग सनातन धर्म पर बोल रहे हैं। गणपति लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रतीक हैं। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के राष्ट्रपति का महत्व है। उसी तरह प्राचीन भारत में संघीय व्यवस्था थी और उस व्यवस्था के प्रमुख गणपति थे। जो राजा अथवा सम्राट थे उन्हें गणपति (गण) यानी प्रजापति बोलते थे। वो एक संघराज्य पद्धति (Federal Structure) थी और लोकतांत्रिक पद्धति से काम चलता रहा होगा। आज संसद में गणेश पूजन होगा, लेकिन संघराज्य व्यवस्था पर रोज हमला हो रहा है, उसका क्या? संसद के विशेष सत्र में चुनाव आयोग की नियुक्ति के तमाम अधिकार सरकार अपने हाथ में ले लेगी, ऐसा एक तानाशाही पद्धति का विधेयक लाया गया है। ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ यह विचार गणपति के संघराज्य की संकल्पना के विरोध में है। ऐन गणपति में लोकतंत्र के साथ यह ऐसा खिलवाड़ होते हुए हम सभी चुपचाप देखेंगे।

चंद्र पर क्या?
गणपति प्रतिभावानों के देवता हैं। महाराष्ट्र में गणपति उत्सव सर्वाधिक धूमधाम से मनाया जाता है, तो लोकमान्य तिलक के कारण। गणपति विज्ञान के भी पक्षधर हैं। इसलिए चंद्रमा पर हमारा ‘यान’ उतरा वो गणपति के भूमि पर। चंद्रमा पर उतरे यान में इंसान नहीं थे, लेकिन यान के कैमरों ने चंद्रमा असल में कैसा है, यह भारत समेत दुनिया को दिखाया। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा दिल्ली में ‘जी-२०’ के लिए आए। वे बोले ‘भारत के चंद्रयान के चंद्रमा पर उतरने के दौरान का दृश्य मैं देख रहा था। आंखों की पलकों को झपकाए बिना देख रहा था। पूरा भारत देश जब वह अनुभव ले रहा था, तब आखिरी क्षणों में चंद्रमा पर पहुंचा हमारा यान टीवी के पर्दे से गायब हो गया और उसकी जगह महान वैज्ञानिक श्री नरेंद्र मोदी ने ले ली। इसलिए स्वर्ग में रहनेवाले गणपति ने भी चंद्रमा पर मौजूद स्वर्ग में सिर पीट लिया होगा। लोगों को उस समय असली चांद देखना था, लेकिन हुआ कुछ अलग ही। इसके बावजूद हमने स्वर्ग के असली रूप के तौर पर चंद्रमा को देखा। हमारी कल्पना का चांद वह नहीं था। प्रभु श्रीराम को खेलने के लिए चंद्रकोर चाहिए थी। वह चंद्र अयोध्या के उस राजकुमार को भी नहीं मिला। उस चंद्र-माधवी खेल यह नहीं था। चंद्र मोहक नहीं था वह ऊबड़-खाबड़ था। दागदार, निर्जीव जैसा, दमघोंटू था। चांद ऐसा क्यों? इसका उत्तर फिर गणपति की पौराणिक कथा में है। एक बार गणपति मूषक पर बैठकर जल्दबाजी में जाने के दौरान फिसलकर डगमगा गए। इन्हें देखकर चंद्रमा उपहास स्वरूप हंसने लगे। गणपति चिढ़ गए। नाराज हुए गणपति ने चंद्रमा को श्राप दिया कि ‘आज से कोई भी तुम्हारा मुंह नहीं देखेगा, जो कोई तुम्हारा मुंह देखेगा, उस पर झूठा लांछन लगेगा’ आगे यह श्राप सिर्फ एक दिन के लिए हो गया। चंद्रमा पर ‘दाग’ की यही वजह है। चंद्रयान ने सभी गड्ढे दिखाए। चंद्रमा पर स्वर्ग नहीं है। स्वर्ग मोदी का आशीर्वाद प्राप्त मुट्ठीभर लोगों के महलों में है। अलग-अलग धर्मों में स्वर्ग की कथा और जिक्र है। जिन-जिन बातों का धर्म विरोध करता है, वह सब कुछ स्वर्ग में है। वहां जैसे स्वादिष्ट मदिरा की नदी बह रही है। अप्सराओं की नृत्य की महफिल है। अमीरी है। महान ऋषि नीचे तप करके ऊपर स्वर्ग पहुंचे हैं। पृथ्वी के कई महान लोग ‘स्वर्गीय’ होकर यहां मजे में हैं। सभी का स्वर्ग अलग है, लेकिन ‘यान’ चंद्रमा पर अर्थात् स्वर्ग में पहुंचा तो इनमें से कुछ भी नहीं मिला और अब स्वर्ग के गणपति भारत में अवतरित हो रहे हैं।

स्वर्ग और नर्क
चांद पर स्वर्ग नहीं हैं। नर्क भी नहीं है। सब कुछ यहीं है। भारत में नर्क बना लोकतंत्र हम देख रहे हैं। एक सज्जन व्यक्ति ने ओशो से पूछा, ‘ऐसे कितने नर्क होते हैं?’ ओशो बोले,‘ जितने चाहें उतने नर्क बना सकते हैं। किसी का एक नर्क से पूरा हो जाता है। किसी को दो भी पूरा नहीं पड़ता। किसी को तीन भी कम पड़ते हैं। यह व्यक्ति के अनुसार बदलते रहता है। आपका अहंकार, आपकी चाहत के अनुसार जितना बड़ा होता है, उतने नर्क बनाने पड़ते हैं। नर्क का मतलब क्या है? यह अहंकार और हवस की बुनियाद है।’ फिलहाल, भारत में हम सब इसी नींव पर खड़े हैं। चांद पर स्वर्ग नहीं है। इसलिए भक्तों द्वारा बनाए गए पंडालों के स्वर्ग में गणपति महाराज अवतरित होनेवाले हैं। गणपति के लोकतंत्र वाली धरती पर नर्क बन गया है। इसे ठीक करके वह जाएं, बस इतनी ही प्रार्थना।

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