संजय राऊत -कार्यकारी संपादक
बीते वर्ष ने क्या दिया, यह हमेशा का ही सवाल है। सभी भय के साए में ही जी रहे हैं। लोकतंत्र का कुछ कहा नहीं जा सकता है, यह भावना दुखदायी है। सिर्फ सत्ता की ही राजनीति चल रही है। राहुल गांधी भारत जोड़ने के लिए चल रहे हैं। उनके कदमों को सफलता मिले। नए साल में देश भयमुक्त हो।
वर्ष २०२२ जो किसी भी तरह से अलग नहीं था बिना किसी शोरगुल के बीत गया। बीते वर्ष २०२२ ने महाराष्ट्र और देश को धोखे के अलावा और कुछ भी नहीं दिया। यह धोखाधड़ी सत्ताधारियों की ओर से हुई लेकिन उसी समय हाथ में सत्य और निर्भयता की मशाल लिए श्री राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ लेकर कन्याकुमारी से निकले। वे ढलते वर्ष में दिल्ली में पहुंच गए। करीब २,८०० किलोमीटर की यात्रा करके यह नेता दिल्ली पहुंचा, उस समय भी उनके साथ हजारों पदयात्री चल रहे थे और इस यात्रा को वैâसे रोका जा सकता है, इसके लिए दिल्ली में ही परदे के पीछे साजिश चल रही थी। बीते वर्ष ने राहुल गांधी के नेतृत्व में नया तेज और धमक निर्माण किया। कड़ाके की ठंड में राहुल गांधी सिर्फ टी-शर्ट पहनकर चलते हैं। ‘क्या राहुल गांधी को ठंड नहीं लगती?’ इस सवाल का इस नेता द्वारा दिया गया जवाब दिल को छूने वाला है, ‘यह सवाल वे मुझसे पूछते हैं, लेकिन यही सवाल वे देश के किसानों से क्यों नहीं पूछते?’ देश के मेहनतकशों, मजदूरों, गरीब बच्चों से क्यों नहीं पूछते? २,८०० किलोमीटर चल रहा हूं, इसमें बड़ा क्या है? पूरा देश चल रहा है, आजीवन चलता है। कारखाने का मजदूर चलता है, एक किसान अपने जीवन में हजारों किलोमीटर पैदल चलता है। उनसे ये प्रेसवाले सवाल क्यों नहीं पूछ रहे?’
राहुल गांधी को नया रूप बीतते साल ने दिया। वो २०२३ में वैसे ही रहे तो २०२४ में देश में राजनीतिक परिवर्तन हुआ दिखाई देगा।
संकुचित मानसिकता
संकुचित मानसिकता छोड़नी पड़ेगी, ऐसा हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने अब कहा है, वो सही ही है। लेकिन भाजपा के शासन में जितनी संकुचित मानसिकता बढ़ी, देश में उतनी कभी नहीं थी। आज के सत्ताधारी लोकतंत्र में विरोधी दलों के अधिकार और अस्तित्व को मानने को तैयार नहीं हैं। संसद में, विधानसभा में और बाहर भी विरोधियों को बोलने की स्वतंत्रता नहीं रही। इसलिए संकुचित मानसिकता वाले वास्तव में कौन हैं? नई दिल्ली में सिख धर्म के एक समारोह में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘औरंगजेब और उसके सैनिक तलवार के बल पर गुरु गोविंद सिंह के बेटों का धर्म परिवर्तन कराना चाहते थे। लेकिन औरंगजेब की इस दहशत के खिलाफ गुरु गोविंद सिंह पहाड़ की तरह खड़े रहे।’ मोदी जो बोले, सच ही है। गुरु गोविंद सिंह के सुपुत्रों ने बलिदान दिया। उनके सिर कलम कर दिए गए। आज लोकतंत्र, स्वतंत्रता के सिर को कलम करके राज चल रहा है। नए वर्ष में तो देश के लोकतंत्र और स्वतंत्रता के कवच कुंडल मजबूत हों, क्योंकि संकुचित मानसिकता के तमाम लक्षण वर्तमान शासकों में दिख रहे हैं। हर जगह जाति, धर्म और उसकी वजह से तनाव की तस्वीरें अनुकूल नहीं हैं। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हमेशा का बैर देश को एक नए विभाजन की ओर धकेल रहा है। दुनिया में कोई अमर नहीं है। इसे याद रखें और मोदी व शाह देश में द्वेष तथा विभाजन के बीज न बोएं। राम मंदिर का मुद्दा सुलझा लिया गया है, इस पर अब वोट नहीं मिलेंगे। तो ‘लव जिहाद’ के मुद्दे पर मोर्चे और आंदोलन शुरू किए गए। किसी भी जाति-धर्म की महिलाओं पर अत्याचार नहीं होना चाहिए। श्रद्धा वालकर नामक युवती की हत्या करनेवाला युवक मुस्लिम था। श्रद्धा के माता-पिता ने आफताब के साथ रिश्ता रखने का विरोध किया था और बेटी छोड़कर चली गई इस सदमे में उसकी मां का निधन हो गया। मुंबई की एक अभिनेत्री तुनिषा शर्मा ने प्रेम संबंध टूटने के कारण सेट पर ही आत्महत्या कर ली। उसका प्रेमी भी मुस्लिम है, ये सच है लेकिन सभी ही जाति-धर्मों में महिलाओं पर लगातार अत्याचार होते रहे हैं, ये भूला नहीं जा सकता और यह कोई ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं। महाराष्ट्र में इस दौरान ‘लव जिहाद’ के विरोध में बड़े मोर्चे निकाले गए। मूलत: ‘लव जिहाद’ की व्याख्या तय की जानी चाहिए। कल का चुनाव जीतने के लिए और हिंदू मतदाताओं में भय निर्माण करने के लिए ‘लव जिहाद’ के शस्त्र का कोई इस्तेमाल कर रहा है क्या?
महंगा हुआ जीना
हिंदुओं को जगाना, सत्ताधारी भाजपा का यही एकमात्र एजेंडा है। हिंदुओं को जगाना मतलब समाज में और धर्म में द्वेष पैâलाना ऐसा नहीं। महंगाई, बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे इससे पीछे छूट गए। ‘जब हिंदू सोए थे तब सिलिंडर ३८० रुपए था और जब हिंदू जागे तो सिलिंडर १,१७५ रुपए हो गया,’ ऐसा चटपटा तंज सोशल मीडिया पर कसा जा रहा है, जो कि सच है। देश में गरीबी और भूख ही असली समस्या है, यह मोदी सरकार ने अब मान ही लिया है। देश में ८१ करोड़ ३५ लाख लोगों को मुफ्त अनाज देने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है। यदि १३० करोड़ लोगों के देश में ८१ करोड़ लोगों को राशन पर मुफ्त अनाज देकर जिलाना पड़ रहा है तो यह प्रगति नहीं पतन और असफलता है। मुफ्त में रेवड़ियां बांटकर लोगों को अपंग मतदाता बनाने का यह धंधा है। बीते वर्ष से भूख और गरीबी का यह प्रवाह कम से कम नए साल में तो कम हो, यह कम हो इसके लिए शासकों और विपक्ष को एकमत होना चाहिए। विपक्ष देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, यह सत्ताधारियों को स्वीकार करना चाहिए।
न्याय तंत्र का क्या?
नया साल ऊर्जादायी और सकारात्मक बीते, ऐसी सभी की ही इच्छा है, लेकिन यह वैâसे संभव हो? ऐसे समय में बड़ी जिम्मेदारी हमारी न्याय व्यवस्था पर होती है। देश के सारे स्तंभ गिर भी जाएं तब भी चलेगा लेकिन अन्य स्तंभ, जैसे बड़े उद्योगपतियों ने सीधे खरीद लिए हैं, वैसे न्याय व्यवस्था के साथ घटित नहीं होना चाहिए। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ लेकर लाल किला पहुंचे राहुल गांधी बोले, ‘यह लाल किला भी अब राष्ट्रीय संपत्ति नहीं है। इसे उद्योगपतियों ने खरीद लिया। अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर उद्योगपतियों का स्वामित्व हो गया।’ ऐसे समय में न्याय देवता पर विश्वास रखना पड़ रहा है। लेकिन न्याय देवता को भी ‘सत्ताधारी’ अपने पक्ष में खींचने का प्रयास करते हैं, तब चिंता होती है। देश के कानून मंत्री रिजिजू ने न्यायाधीशों को चेताया, ‘आप हद में रहिए, हम आपकी स्वतंत्रता का अतिक्रमण नहीं करेंगे।’ इसका मतलब क्या? यह एक निहित चेतावनी है। न्यायालय को मर्यादा में रहने का मतलब इतना ही है कि सरकार चाहे जितनी भी मनमानी करे फिर भी कानून और संविधान का हंटर चलाकर लगाम न लगाई जाए। सरकार की सुविधा के अनुसार बर्ताव करें, अन्यथा अन्य देशों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास है, वही तानाशाही हम हिंदुस्थान में भी शुरू करेंगे। देश का न्याय तंत्र इतने खौफ के साए में कभी नहीं रहा। तनाव की वो तस्वीर न्यायालय में सभी स्तरों पर दिखाई दे रही है। मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ और उनके सहयोगी देश की स्वतंत्रता और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेंगे, ऐसी अपेक्षा जनता में है। देश की अदालतों को स्वतंत्र स्वाभिमान के साथ काम करना चाहिए तथा राजनीतिक शस्त्र बन चुकी पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों की मनमानी रोकी जाए। गुजरते वर्ष में न्यायालय ने मुझे और अनिल देशमुख को रिहा किया। झूठे प्रकरण और फर्जी सबूत तैयार करके निर्दोष लोगों और राजनीतिक विरोधियों को फंसाना यह लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लक्षण नहीं। बीते वर्ष में लोकतंत्र की हत्या ही कर दी गई। नया साल लोकतंत्र में नई जान फूंकने वाला सिद्ध हो।
नई आशा
महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार को गिरा दिया, यह राजनीतिक सीनाजोरी का ही एक रूप था। शिवसेना भी फोड़ दी गई। सत्ता के दुरुपयोग का यह उदाहरण है, ये सब बीते वर्ष में हुआ। गुजरे साल में महाराष्ट्र ने एक गैरकानूनी तख्ता परिवर्तन देखा। लोकतंत्र और भारतीय संविधान में किसी वैधानिक निषेध की परवाह किए बगैर राजनीति करनेवाले देश को अराजकता की ओर धकेल रहे हैं। १६ विधायकों को अयोग्य ठहराने से संबंधित मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है और सब कुछ कानून के मुताबिक ही हुआ तो विधायकों समेत मुख्यमंत्री शिंदे अयोग्य हो जाएंगे और नए साल में राज्य की गैरकानूनी सरकार घर में पहुंची नजर आएगी। नए साल में राज्य और देश में कुछ प्रेरणादायी घटित हो ऐसी उम्मीद में लोग हैं। तीन राज्यों के चुनावी नतीजों ने भाजपा की घुड़दौड़ पर लगाम लगा दी है। दिल्ली मनपा और हिमाचल राज्य भाजपा ने गवां दिए। इसलिए खुद के घर में यानी गुजरात में मिली जीत का महत्व नहीं है। फिर भी देश एक भय के साये में है। कोई तो हम पर नजर रख रहा है, सरकारी तंत्र हमारी बातें सुन रहा है, ऐसा सभी प्रमुख व्यक्तियों को लगता है। यह स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं है। नए साल में तो देश और जनता खुलकर सांस लेगी। हमारा देश मन से जुड़ा होगा, आइए ऐसी आशा रखते हैं!