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रोखठोक : केवल १० वर्षों का नया भारत … उसमें लोकतंत्र का नरसंहार!

संजय राऊत
कार्यकारी संपादक

संसद के दोनों सदनों में मिलाकर १४६ सांसदों का सिर कलम कर दिया। उनका निलंबन यानी लोकतंत्र का सामुदायिक नरसंहार है। स्वतंत्रता का हनन शुरू है और उपराष्ट्रपति की किसी ने नकल की इसलिए भाजपा और उनके नेता रो रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी पर संसद में नहीं बोलने दिया जा रहा है। उस पर जरा आंसू बहाओ।

श्री. नरेंद्र मोदी के भारत देश का जन्म २०१४ के बाद हुआ। ऐसा उनके भक्त मानते हैं। इसलिए उनका भारत बमुश्किल से दस साल का है। उन्हें पुराना अनुभव पसंद नहीं है। ऐसे नव भारत के बारे में वास्तव में क्या बोलें? दिल्ली में कड़ाके की ठंडी में दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम घटित हुआ। लंबे अरसे के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक और एक ही समय में संसद से १४६ सांसदों का निलंबन। ये दोनों ही घटनाएं लोकतंत्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। १४६ सांसदों का एक ही समय निलंबन यानी लोकतंत्र को संसद के सदन में ही वध स्तंभ पर चढ़ाने का मामला मोदी ने किया। मोदी दस साल पहले संसद की सीढ़ियों पर सिर रख रोए और प्रवेश किया। वे आंसू और वह माथा टेकना असली नहीं था, ये अब सिद्ध हो गया। अब लोकतंत्र रोते हुए दिख रहा है। उसी समय बगल के अशोक होटल में ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक संपन्न हुई। देश में तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ने का दृढ़ निश्चय इस बैठक में किया गया। लेकिन इस दृढ़ निश्चय को प्रत्यक्ष में वैâसे साकार करेंगे, इस पर कई लोगों के मन में आज भी भ्रम की स्थिति है। लोकतंत्र बचाना चाहिए और हर स्तर पर स्वतंत्रता का जो हनन हो रहा है उसे रोका जाना चाहिए, ऐसा उस बैठक में कहा गया। पर स्वतंत्रता बचाने के लिए त्याग करने के लिए कोई तैयार नहीं है। अपनी सत्ता को संभालकर सभी प्रादेशिक सूबेदार बैठे हैं। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सर्वाधिक त्याग करने वाली कांग्रेस आज खुद के अस्तित्व के लिए ही संघर्ष कर रही है और अपने सूबेदारी में कांग्रेस को साथ में रखने के लिए कोई तैयार नहीं। इसीलिए तानाशाही के खिलाफ दूसरी स्वतंत्रता की लड़ाई में भी त्याग करने की जिम्मेदारी कांग्रेस पर ही आ गई है।

सिर कलम कर दिया
१४६ सांसदों का सिर कलम करके प्रधानमंत्री मोदी लोकतंत्र की माला वैâसे जप सकते हैं? लोकसभा और राज्यसभा ऐसे दोनों सदनों को खाली करके राज करना यानी शरीर पर राख पोतकर श्मशान पर राज करने के जैसा है। उस राख से भी लोकतंत्र का फिनिक्स पक्षी का जन्म होगा और फलेगा-फूलेगा ऐसा ये देश है। लोकतंत्र को मानने वाले दुनिया के किसी भी देश में ऐसा घृणास्पद मामला नहीं घटा है। मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की कल्पना रखी। लेकिन उन्हें ‘विरोधी पक्ष मुक्त भारत’ बनाना है और वह भारत आज केवल १० वर्षों का है। भारत की महान परंपरा उन्हें मंजूर नहीं है। २०१४ के बाद जो बनाया वही भारत। इसके लिए नया संसद भवन इन्हीं लोगों ने बनाया। उस संसद की वास्तु ऐसी है जहां कइयों को जाने का मन नहीं करता। राजा ने खुद की मर्जी से एक महल का निर्माण किया और उस महल में गुलामों के लिए वैâदखाना होना चाहिए, इस तरह की अंदरूनी तस्वीर है। उस नए महल में १४६ सांसदों का सिर कलम करके लोकतंत्र पर तानाशाही का अभिषेक ही कर दिया। अब के लोकतंत्र की खाली दहलीज में बैठे कौन? उद्योगपति अडानी के लोग या मोदी सरकार के संरक्षक ईडी, सीबीआई वगैरह के लोग? संसद में घुसपैठ हुई और उस पर विरोधी बेंच के सदस्यों ने सवाल पूछे। गृहमंत्री शाह संसद में आकर खुलासा करें, यह मांग करने पर इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को अयोग्य किया जाता है और वहां महाराष्ट्र में विधायक अयोग्यता पर विधानसभा के अध्यक्ष डेढ़ सालों के बाद भी पैâसला नहीं कर रहे हैं। जिन विधायकों और सांसदों को दल बदल प्रतिबंधित कानून के तहत ‘अयोग्य’ ठहराया जाना चाहिए वे सदन में हैं और उन सांसदों और विधायकों को कोई बाहर नहीं निकाल रहा। एक संपूर्ण असंवैधानिक सरकार डेढ़ सालों से महाराष्ट्र पर शासन कर रही है। विधानसभा अध्यक्ष को दल बदल की परवाह नहीं है और सुप्रीम कोर्ट अप्रत्यक्ष तौर पर असंवैधानिक सरकार को सुरक्षा दे रहा है। हालांकि, संसद में कानूनी तरीके से राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल पूछने वाले १४६ सांसदों पर हमला हुआ। यह लोकतंत्र नहीं है।

‘इंडिया’ क्यों?
लोकतंत्र के दमन को रोकने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन की स्थापना हुई। लेकिन चौथी बैठक के बाद भी पालने की डोरी किसके पास ये तय नहीं है। ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, कोई पद नहीं चाहिए, मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं,’ ऐसा उस बैठक में सभी लोग कहते हैं। लेकिन प्रत्यक्ष में एक-दूसरे का विरोध होता है, ये तस्वीर अब बदलेगी। सुश्री ममता बनर्जी, श्री अरविंद केजरीवाल, श्री नीतिश कुमार ने कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा, ‘लोकतंत्र को बचाना है। हमें पद की लालसा नहीं।’ ये दिल्ली की बैठक में भी हुआ, लेकिन प्रत्यक्ष में तस्वीर वैसी नहीं है। इसलिए ‘इंडिया’ गठबंधन की गठरी नहीं बंधेगी और फिर मोदी की ही विजय होगी ऐसा कहा जाता है, पर यह उतना सही नहीं है। साल १९७८ में कांग्रेसी तानाशाही की खिलाफत करने के लिए ‘जनता दल’ स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई, तब शुरुआत में सभी दलों में ऐसा ही मतभेद था। जनसंघ मतभेद का केंद्रबिंदु था, लेकिन विभिन्न विचारों के दल और नेता एक साथ आए। उसमें बाबू जगजीवनराम जैसे दलित नेता शामिल हुए और उसी मतभेद से जर्जर होने के बावजूद जनता दल ने बलशाली इंदिरा गांधी और कांग्रेस को पराजित किया। जनता पार्टी सत्ता में आई। गठबंधन में मतभेद होते हैं। खुद भारतीय जनता पार्टी में आज बेहद मतभेद हैंै। जिन्होंने श्रीराम जन्मभूमि की लड़ाई लड़ी और रथयात्रा निकालकर राम मंदिर का आंदोलन किया, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक भाग्योदय हुआ, वह लालकृष्ण आडवाणी २२ जनवरी के राम मंदिर उद्घाटन समारोह में उपस्थित न रहें, ऐसा फरमान पार्टी से ही निकला। ये मतभेद का आखिरी छोर है। कांग्रेस के स्थापना दिवस समारोह में गांधी को ही न बुलाने जैसा यह मामला है। जिनका पार्टी में ही लोकतंत्र और व्यक्ति स्वतंत्रता का सम्मान नहीं, उनकी ओर से १४६ सांसदों का सिर कलम किया गया। लोकतंत्र के इस नरसंहार को रोकने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन खड़ा है। ‘इंडिया’ के लोग एक साथ नहीं आए तो उसमें से हर एक को स्वतंत्र रूप से वध स्तंभ पर चढ़ाया जाएगा, ऐसी अवस्था आज देश की है।

नेहरू का पछतावा
मोदी का भारत देश दस वर्ष का है। इसलिए सौ सालों के भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा पर इन लोगों को विश्वास नहीं है। गांधी और नेहरू के अस्तित्व उन्हें मंजूर नहीं हैं। जरूरत के अनुसार सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस के नामों का इस्तेमाल ये करते हैं। अब वीर सावरकर भी उनके लिए मुसीबत बनेंगे। नेहरू के जीवन का एक प्रसंग पुणे का है। नेहरू को गिरफ्तार करके गाड़ी पुणे आई। गाड़ी बगल के प्लेटफॉर्म पर रुकी। वह पूरी तरह से खाली थी, लेकिन फिर भी कुछ लोग इकट्ठा हुए थे। उन्होंने ‘जिंदाबाद’ के नारे लगाए तब पुलिस उनके पीछे लाठियां लेकर दौड़ी। नेहरू ने वह देखा, उस समय डिब्बे का दरवाजा बंद था। इसलिए उन्होंने खिड़की से छलांग लगाई और पुलिस के पीछे दौड़े और अधिकारियों को उन्होंने फटकार लगाई। इसके लिए हिम्मत और मन में देशभक्ति होनी चाहिए। ये सभी उस समय अनायास घटता गया, लेकिन पुलिस आ रही है इसलिए ‘जिंदाबाद’ के नारे लगाने वाले कार्यकर्ता चहुंओर दौड़े, इस पर भी नेहरू को गुस्सा आया और पछतावा महसूस हुआ। जिन्हें तानाशाही के खिलाफ लड़ना है, उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए। भागकर क्यों जाएं? ‘इंडिया’ गठबंधन के कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई। आगे भी होगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। ‘इंडिया’ की बैठक खत्म होते ही श्री लालू यादव और तेजस्वी यादव को ‘ईडी’ का बुलावा आया। ऐसा कितने समय तक चलेगा? श्रीराम प्रभु भारत देश को बचाएंगे क्या? नहीं तो ‘रामभरोसे’ इस शब्द पर से भी विश्वास उठ जाएगा!

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