संजय राऊत -कार्यकारी संपादक
देश की अपेक्षा प्रधानमंत्री का बड़ा होना, इसी को तानाशाही कहते हैं। आज देश में यही हो रहा है। भाजपा में गुलाम और डरपोक लोग एकत्र हुए हैं। ईडी, सीबीआई के भय से जो थरथराए, वो सीधे भाजपा में चले गए। यह देश कभी शूरवीरों और लड़ाकुओं का था। भाजपा की राजनीति ने इस देश को कायरों और डरपोकों का बना दिया!
लोकसभा चुनाव का प्रचार शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा के पास प्रचंड पैसा और सत्ता है। उस जोर पर वे कहते हैं, इस बार हम चार सौ के पार सांसदों को जिताएंगे। यह भयानक तानाशाही ही है। प्रधानमंत्री जीतनेवाली सीटों का आंकड़ा पहले ही देते हैं, जो एक तरह से `फिक्सिंग’ है। देश में भय और तनाव का माहौल है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन मोदी विरोधी हैं, इसलिए उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। जिनकी जगह वास्तव में जेल में होनी चाहिए, ऐसे कई भ्रष्टाचारी भाजपा में जाकर सुरक्षित हो गए हैं। ये सब रोकना है तो मतदाताओं को उत्साह दिखाना होगा। मतदान का अधिकार जिनके पास है, उन्हें मतदान अवश्य करना चाहिए। आम आदमी के हाथ में अब सिर्फ एक ही हथियार बचा है और वो है मतदान का अधिकार! आज हमारे प्रधानमंंत्री को लगता है कि मोदी नामक व्यक्ति देश से भी बड़ा है। मोदी के अंधभक्तों को भी यही लगता है। मोदी देश से भी बड़े हैं। मोदी ही न्यायालय, संसद और स्वतंत्रता। मोदी ही विष्णु और श्रीराम हैं, इस मानसिकता के भाजपा के लोग हैं। यह सोच खतरनाक है। देश के नेतृत्व के लिए जो सबसे बड़ा गुण जरूरी होता है, वह है उस परिस्थिति को समझनेवाले मन की उदारता। महाभारत की एक कहानी बहुत विदारक है। कुंती पुत्र ने कुंती से पूछा कि `महानता हासिल करने के लिए मैं क्या करूं? धनुर्विद्या का चमत्कार दिखाऊं? गदायुद्ध से आंखों को चकित करूं? ताकत से पर्वत को हिला दूं?’ कुंती ने जवाब दिया, `मन को बड़ा करो, बड़े हो जाओगे!’ मोदी-भाजपा ने ज्यादा से ज्यादा क्षुद्र मन का प्रदर्शन किया है और देशहित का रंचमात्र भी खयाल नहीं रखा। मोदी काल ये देश की बर्बादी का ही काल है। यह बर्बादी तीन देशद्रोही कर रहे हैं। विद्वेष की आग हर जगह लगानेवाले धर्मपिपासु, पैसे और सत्ता के मद में अंधे हो चुके मोदीभक्त, राजनेता, काले धन से देश चलानेवाले ठेकेदार, पूंजीपति और उनके दलाल बुद्धिमान। इन तीनों शत्रुओं ने देश पर संकट लाया है। इन तीनों शत्रुओं से अब साहस से और अंत तक लड़ना होगा।
घर में बैैठ गए
ईडी, सीबीआई से घबराकर कई लोग घर में बैठे हैं तो कई लोगों ने `दलबदल’ किया और मोदी की भजन मंडली में शामिल हो गए। जो देश को संकट में डालकर भाग गए वे सभी भगोड़े के रूप में इतिहास में दर्ज किए जाएंगे। विश्व विख्यात नाटककार शेक्सपियर ने जुलियस सीजर के मुंह से मर्दानगी का बहुत सुंदर संवाद बुलवाया है। सीजर की पत्नी कैलपर्निया को भयानक सपना आता है इसलिए वह सीजर से बार-बार आग्रह करती है कि `आप बाहर मत जाइए, क्योंकि आपकी हत्या होने का खतरा है। मेरे मन के देवता मुझसे कह रहे हैं, आप आज बाहर मत जाइए!’ सीजर उसके आग्रह को अनसुना कर देता है और कहता है-
`Cowards die many times before their deaths;
The valiant never taste of death but once.
Of all the wonders that I yet have heard,
It seems to me most strange the men should fear;
Seeing that death, a necessary end,
Will come when it will come.’
कायर लोग डर के कारण
मौत से पहले हजार बार मरते हैं
शूरवीर केवल एक बार ही
मौत का स्वाद चखते हैं
जन्म लिया वो मरेगा ही
जाना है तब जाएगा ही
सब जानकर भी इंसान
मृत्यु से क्यों डरता है?
चमत्कारों की अजीब दुनिया
सबसे विलक्षण की ये किमया
सब कुछ समझते हुए भी इंसान
मरने से क्यों डरता है?
आदमी आज मौत से कम और ईडी, सीबीआई से ज्यादा घबराता है। ऐसे सभी डरपोक लोग भाजपा में शामिल हो गए हैं, इसलिए भाजपा यह कायर लोगों का ‘गुट’ बन गया है। मृत्यु से, कैद से जो लोग घबरा गए, वे कभी राष्ट्र के नहीं हुए। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी मौत से कभी नहीं डरे। विरोधियों से भी नहीं डरे और डरकर विरोधियों को जेल में नहीं डाला। इमरजेंसी का कालखंड अपवाद था।
लड़नेवालों का स्मरण
भारत देश अखंड रहना चाहिए। देश उन लोगों को कभी नहीं भूलेगा, जो आज भारत में लोकतंत्र और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह ऐसी तगड़ी सुरक्षा घेरे में घूमते हैं, जैसे वे युद्ध करने जा रहे हों। लोकतांत्रिक देश में केवल तानाशाह को ही डर लगता है। महाराष्ट्र में जिसने दलबदल किया उन सभी को सरकार ने सुरक्षा के लिए गाड़ियां और शस्त्रधारी पुलिस मुहैया कराए। गली का उनका कार्यकर्ता भी दो हथियारबंद पुलिस लेकर घुमते हुए दिखता है, क्योंकि उसने पैसे लेकर दल बदला है। ये इतना डर किसलिए?
ऑपरेशन `ब्लू स्टार’ के बाद सिख समुदाय इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गया। एक कार्यक्रम में एक विदेशी पत्रकार ने इंदिरा गांधी से पूछा कि `सभी सिख आपके खिलाफ हैं न?’ इंदिराजी ने शांति से जवाब दिया, `मेरे पास रक्षक कौन हैं, ये क्या आपको नहीं दिखाई दे रहा है?’ उन्होंने उस विदेशी पत्रकार का ध्यान रक्षक की तरफ आकर्षित किया। वो रक्षक सिख था। यह सिख रक्षक यानी दूसरा-तीसरा कोई नहीं, बल्कि बियांत सिंह था, जिसने इंदिरा गांधी पर पहली गोली चलाई थी। सिख अंगरक्षक मत रखिए। खालिस्तानियों से खतरा है, गुप्तचरों के ऐसा कहने के बावजूद भी प्रधानमंत्री गांधी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। किसी समाज पर अविश्वास करना यानी देश की अखंडता को कमजोर करना है। सिख समाज खिलाफ में हो गया, फिर भी उन्होंने अपने सिख अंगरक्षक को नहीं बदला। इसी को कहते हैं ५६ इंच का सीना! मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी हिंसाग्रस्त मणिपुर में नहीं गए। लद्दाख के संघर्ष भूमि पर नहीं गए। भारत वीरों और शूरों को पूजनेवाला देश है। मोदी काल में `डरपोकों’ की पैदाइश अधिक हो गई है। ये सभी डरपोक भाजपा में शामिल हो गए।
ऐसे ये आदर्श नेता
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो गए। ईडी, सीबीआई के भय से घबरा गए और भाजपा में चले गए। ये आदर्श नेता दिल्ली जाकर सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के सामने रोए और `पार्टी छोड़ी नहीं तो जेल जाना पड़ेगा। जेल जाने की मेरी इच्छा नहीं है,’ ऐसा हाथ जोड़कर बोले और ये आदर्श नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। ऐसे कई `डरपोक’ लोगों को शामिल करके भाजपा ने क्या हासिल कर लिया? इस देश की गंदी राजनीति अब बंद होनी चाहिए। क्योंकि देश एक ऐसे पड़ाव पर आ गया है जहां बुनियादी क्रांतिकारी परिवर्तन की जरूरत है, व्यक्तिदोष की और बदले की राजनीति की नहीं। आंखों के सामने देश बेचे जाते समय डरपोकों के समूह में अब कोई भी शामिल नहीं होना चाहता। देश वैचारिक और एकात्मता की राजनीति का भूखा है। पंक्चर हुए टायर की तरह मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी दस साल से मंच फंसाकर घटिया भाषण दे रहे हैं। ये भाषण और उनके तर्क ऊबनभरे हैं। इन तर्कों को पूर्णविराम देनेवाला आज का चुनाव है। शूरों का देश डरपोकों का देश हुआ। पवित्र देश पापियों के हाथ में चला गया। हरिश्चंद्र का देश हरामखोरों का हो गया। इसके खिलाफ जो लड़ेंगे, उन्हें देश सलाम करेगा!