संजय राउत
प्रधानमंत्री मोदी, अंधभक्तों के विश्वगुरु हैं, लेकिन देश में चल रहे आंतरिक सुरक्षा के मामलों से आंख नहीं फेरी जा सकती है। कश्मीर में पंडितों की हत्या जारी ही है और अब पंजाब में खालिस्तानी असंतोष फिर से उफान मार रहा है। अंधभक्तों के विश्वगुरु इस पर कुछ नहीं बोलते!
हमारे जैसा देशभक्त और कोई भी नहीं है, ऐसा ढोल रोज पीटने वालों के राज में हम जी रहे हैं। लेकिन देश में क्या चल रहा है? यह लेख लिखने के दौरान पुलवामा से एक और कश्मीरी पंडित की दिनदहाड़े हत्या किए जाने की खबर सामने आई है। इस घटना के बाद कश्मीरी पंडितों के आक्रोश और संताप की तस्वीर जम्मू से दिल्ली तक हर ओर दिखी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया की गिरफ्तारी का खेल दो दिनों तक भुनाकर कश्मीरी पंडितों के आक्रोश पर पानी फेरने का प्रयास किया। ऐसा करना मतलब अपने ही विचारों के साथ बेईमानी है। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान जम्मू में छह महीने से धरना आंदोलन कर रहे कश्मीरी पंडितों से मिला। ‘मोदी-शाह की सरकार हमें जबरन कश्मीर घाटी भेज रही है, लेकिन हमारे जीवन की रक्षा की गारंटी देने को वे तैयार नहीं हैं। उनकी राजनीति के लिए हम कितनी बार खून बहाएं?’ ऐसा सवाल इसमें शामिल महिलाओं ने किया, जो कि सही है।
दि. २६ फरवरी की सुबह पुलवामा जिले में पत्नी के साथ बाजार गए संजय शर्मा नामक पंडित की हत्या हुई। अपने पति को आतंकवादियों द्वारा गोलियों से छलनी करते हुए पत्नी ने देखा। उसके बाद क्रंदन करते हुए उसकी तस्वीर सभी जगह प्रसारित हुई। अनुच्छेद-३७० हटाया गया, जो कि केवल कागजों पर और भाजपा की सियासी सहूलियत के लिए। कश्मीर हिंदुस्थान का हिस्सा था और है ही। अनुच्छेद-३७० से कश्मीर को विशेष अधिकार मिला था। इसे हटा दिया गया, लेकिन अनुच्छेद-३७० हटाने से कश्मीरी पंडितों को उनका अधिकार मिला क्या? इसका जवाब भाजपा का एक भी बड़ा नेता नहीं दे सका है। अनुच्छेद-३७० हटाने के बाद भी मोदी-शाह पंडितों की रक्षा नहीं कर सके। महबूबा मुफ्ती ने इस पर कहा, ‘कश्मीरी पंडितों की हत्याएं होती रहें और वे असुरक्षित ही रहें, यही भाजपा की इच्छा है, क्योंकि पंडितों के बलिदान पर ही उनकी राजनीति चल रही है।’
महबूबा मुफ्ती से मतभेद रखनेवालों को भी उनके द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब तलाशना होगा।
पुलवामा में जान गंवाने वाले संजय शर्मा की पत्नी का आक्रोश शायद यही सवाल पूछ रहा होगा।
पंडितों की हत्या की राजनीति
महबूबा मुफ्ती के साथ भाजपा ने सत्ता का खेल जम्मू-कश्मीर में रचाया तब उनकी देशभक्ति उफान मारकर ऊपर नहीं आई थी। आज वही महबूबा कहती हैं, ‘कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने में भाजपा पूरी तरह से विफल रही है।’ पुलवामा में पंडितों की हत्या हुई। हालांकि, ऐसी घटनाएं घटित होने पर मुस्लिमों को निशाना बनाया जाता है और इसका लाभ भाजपा को पूरे देश में होता है।’ कश्मीर में अल्पसंख्यकों का जीवन खतरे में डालने का आरोप मुफ्ती लगाती हैं तो इन अल्पसंख्यकों का मतलब हिंदू पंडित हैं और जम्मू के हिंदुओं ने भाजपा के पाले में जमकर वोट डाले, लेकिन कश्मीर के हिंदुओं के विषय पर कोई भी बात नहीं करता और भाजपा का एक भी नेता जम्मू में छह महीने से धरने पर बैठे पंडितों का हालचाल पूछने नहीं गया। बल्कि ऐसा हुआ कि जम्मू से भाजपाई नेता और वर्तमान केंद्रीय मंत्री से मिलने के लिए कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल गया। उन्होंने कहा, ‘साहेब, हम पंडितों ने आपको खुलकर वोट दिया है और आप हमारे लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं। हम अपने बाल-बच्चों के साथ जम्मू की सड़कों पर हैं। अब ऐसा लगता है कि आपको वोट देकर हमने गलती कर दी।’ इस पर उक्त मंत्री महोदय बहुत ही उद्दंडता और उतने ही निर्विकार भाव से बोले, ‘ऐसा है तो फिर दोबारा वो गलती मत करना!’
भारतीय जनता पार्टी अहंकार और उद्दंडता के शिखर पर पहुंच चुकी है और उस ऊंचाई से अब उन्हें देश की असली समस्याएं दिखाई नहीं देती हैं। अडानी के भ्रष्टाचार का समर्थन करके उन्हें बचानेवाली सरकार कश्मीरी पंडितों को नहीं बचा रही, ये ध्यान देने योग्य बात है। महाराष्ट्र सहित हर जगह भाजपा प्रायोजित सकल हिंदू आक्रोश मोर्चा ‘लव जिहाद’ के खिलाफ निकाले जा रहे हैं। ऐसे सकल हिंदुओं का आक्रोश मोर्चा कश्मीरी पंडितों की हत्या के खिलाफ क्यों नहीं निकलने चाहिए? इस सकल मोर्चा वालों ने जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं की दुर्दशा को नहीं समझा। पुलवामा के बाजार में संजय शर्मा की हत्या उनकी पत्नी के सामने हुई। वहां हिंदू मोर्चा निकला होता तो अच्छा होता, लेकिन वहां दुम दबाना और महाराष्ट्र में ‘हिंदू घरों में’ कहकर छाती पीटना। ये सियासत समाज को बिगाड़ रही है।
कैदखाना ही बन गया
कश्मीर आज भी अशांत है। सेना की बंदूकों की वजह से वहां ऊपरी शांति नजर आ रही है। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के अंत में राहुल गांधी श्रीनगर पहुंचे और तिरंगा फहराया, तब कई महीनों के बाद सभी प्रतिबंधों को तोड़कर कश्मीरी जनता एक साथ आई और किसी तरह का खून-खराबा नहीं हुआ। राहुल गांधी को बाद में अपने सहयोगियों के साथ बर्फ में खेलते हुए देश ने देखा। कश्मीर को कैदखाना बनाकर लोगों को मानो वैâद कर रखा है, ऐसा अब लगता है। सैनिकों की बंदूकों की परवाह न करते हुए कश्मीरी पंडितों पर हमले होते हैं, उसी तरह से मुसलमान, पुलिस और सुरक्षा रक्षक भी मारे जा रहे हैं। कश्मीर में ऐसा वातावरण होने के दौरान पड़ोसी पंजाब में एक बार फिर खालिस्तान का झंडा फहराया जाना, झकझोरने वाली बात है। एक आरोपी को रिहा कराने के लिए ‘खालिस्तान’ के नारे लगाते हुए भारी भीड़ पुलिस स्टेशन की ओर कूच करती है, यह केंद्र सरकार के लिए खतरे की घंटी है। खालिस्तान का दफन किया गया भूत, वहां फिर से जिंदा होता नजर आ रहा है। अमृतपाल सिंह खालिस्तानी आंदोलन का नेतृत्व करता है और हिंसा करवाता है। उसके आंदोलन को पैसा कहां से आ रहा है, इसकी जांच करने की हिम्मत मोदी-शाह की चहेती ‘ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स’ को दिखानी चाहिए। ऐसी हिम्मत वे अडानी के मामले में नहीं दिखा सके और पंजाब के खालिस्तानियों के मामले में भी नहीं दिखाएंगे। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। वैसी फांस पंजाब में खालिस्तान का नारा लगाने वालों पर क्यों नहीं कसा गया? सीधे-सीधे विदेशी पैसा इस आंदोलन में फिर से आने लगा व मोदी-शाह इस पर चुप हैं। पंजाब के ‘मोगा’ में सरकारी कार्यालय की दीवार पर खालिस्तान समर्थन में नारे लिखे गए। यह मुद्दा देश की आंतरिक सुरक्षा का है। इसलिए राज्य सरकार पर यह सब थोपने से नहीं चलेगा। आप देश के शासक हैं और वर्तमान में ‘बादशाही’ शैली में शासन कर रहे हैं। कश्मीर और पंजाब की घटनाओं से आप भाग नहीं सकते। दोनों सीमावर्ती राज्य अब विस्फोटक स्थिति से गुजर रहे हैं। कभी भी आग लगेगी ऐसी अवस्था होने के बावजूद दिल्ली के ‘नीरो’ सिर्फ देशभक्ति की बांसुरी बजा रहे हैं।
जाते-जाते एक हालिया समाचार का जिक्र करता हूं और विषय को विराम देता हूं। एन.आई.ए. यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मुंबई पर हमला करने के लिए आए एक ‘अदृश्य’ लेकिन संदिग्ध आतंकी के बारे में जानकारी दी है। यह आतंकी पाकिस्तान और चीन में आतंकवाद का प्रशिक्षण लेकर आया है, ऐसी जानकारी एनआईए दे रही है। इस आरोपी के बारे में पूरी जानकारी उन्होंने पुलिस को दी। सवाल इतना ही है कि कश्मीर में पंडितों पर हमला करने की कोशिश कर रहे आतंकवादियों की सूचना इन एजेंसियों को क्यों नहीं मिलती और पंजाब में नए सिरे से शुरू हुए खालिस्तानी आंदोलन की असली जानकारी सामने क्यों नहीं आई?
एक संदिग्ध आतंकी ‘अदृश्य’ स्वरूप में मुंबई में घूमता है।
उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?
लेकिन अंधभक्तों की देशभक्ति पर संशय पैदा करना, यह देशद्रोह जैसा अपराध बन जाता है। देश में भयानक भ्रम की स्थिति है। ये सब कब रुकेगा?