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रोखठोक: ‘कलंक’ शब्द की महाभारत!

संजय राऊत

देवेंद्र फडणवीस और उनके समर्थक ‘कलंक’ शब्द पर चिढ़े हुए हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र में जो कलंकित राजनीति चल रही है, श्री फडणवीस भी मोदी-शाह के जितने ही उसके सूत्रधार हैं। महाराष्ट्र की परंपरा और संस्कृति का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि मन दुखी होता है। महाराष्ट्र पहले शिवराय की राह पर जा रहा था, वो अब मोदी-शाह की राह पर जाता दिख रहा है। इसका जिम्मेदार कौन? ‘कलंक’ शब्द के कारण वर्तमान में महाराष्ट्र का राजनीतिक माहौल गरमा गया है। हर तरह के कलंक को धोने की योजना फिलहाल भारतीय जनता पार्टी चला रही है। हमारे साथ शामिल हो जाओ और ‘दाग’ धो लो, ऐसी यह योजना है। फिर भी ‘कलंक’ शब्द का कितना बड़ा खौफ भाजपा ने ले लिया है, ये महाराष्ट्र ने देखा। विदर्भ दौरे के समय उद्धव ठाकरे नागपुर पहुंचे और समारोह में उन्होंने कह दिया कि श्री देवेंद्र फडणवीस नागपुर को लगा कलंक हैं। इस पर भारतीय जनता पार्टी में फडणवीस के समर्थक उबल पड़े। देवेंद्र फडणवीस ने ‘कलंक’ उपाधि को बेहद व्यक्तिगत तौर पर ले लिया। महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति राज्य की प्रतिष्ठा को कलंकित करनेवाली है और इसका सूत्र संचालन खुद फडणवीस कर रहे हैं, इस तात्पर्य से श्री ठाकरे बोले। ‘कलंक’ यह भाषा अच्छी नहीं, महाराष्ट्र की संस्कृति के लिए शोभनीय नहीं, ऐसा इस पर कहा गया, लेकिन श्री फडणवीस ने जिन्हें राजनीति में पोसा और बड़ा किया ऐसे पडलकर, बावनकुले, सदाभाऊ खोत जैसे लोग शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे तक के लिए किन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं? कलंक प्रकरण से दो दिन पहले सदाभाऊ खोत ने वरिष्ठ नेता शरद पवार को ‘शैतान’ कहकर संबोधित किया, लेकिन खोत की भाषा परंपरा और संस्कृति के अनुरूप नहीं है, ऐसी आवाज फडणवीस अथवा उनके समर्थकों ने नहीं उठाई। महाराष्ट्र की संस्कृति, भाषा, परंपरा को पूरी तरह से कलंकित करने का कार्य भारतीय जनता पार्टी बीते ढाई वर्षों से कर रही है और उसके भीष्म पितामह नागपुर में बैठे हैं।
‘सिंहासन’ आगे का
मोदी से लेकर फडणवीस तक हर कोई राजनीतिक विरोधियों को व्यक्तिगत शत्रु मानकर कीचड़ उछाल रहा है। इसलिए ‘फड़तूस’, ‘कलंक’ जैसे शब्दों का उपयोग महाराष्ट्र में जोरदार ढंग से किया जा रहा है। शिंदे गुट और नए आए अजीत पवार के गुट के बीच शीतयुद्ध चल रहा है और निजी तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ किन शब्दों का उपयोग हो रहा है, यह किसी को वेशभूषा बदलकर जाकर सुनना चाहिए। फिर दूसरी तरफ श्री देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के संबंध भी अच्छे नहीं हैं। उनमें संवाद ऊपरी है। उसी में अब अजीत पवार और उनके चालीस लोग आ गए। इसलिए शिंदे गुट की हवा ही निकल गई। ‘एकनाथ शिंदे के हाथ के नीचे काम नहीं करेंगे।’ ढाई साल पहले ऐसा कहनेवाले अजीत पवार अब शिंदे के जूनियर सहकर्मी बन गए। अर्थात यह व्यवस्था थोड़े ही दिनों में बदलेगी और महाराष्ट्र में जल्द ही नई ‘सिंहासन’ फिल्म देखने को मिलेगी, ऐसा अजीत पवार गुट के लोग खुले तौर पर बोल रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति को सभी ने मिलकर कलंकित करने की ठान ली है। राजनीति में कटुता खत्म होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए पहल कौन करे? विरोधियों पर स्तरहीन टिप्पणी करने के मामले इससे पहले भी महाराष्ट्र में सामने आए और इससे यशवंतराव चव्हाण भी नहीं बचे। बै. अंतुले, महाराष्ट्र में इंदिरा गांधी द्वारा नियुक्त मुख्यमंत्री थे और वे धैर्य रखने को तैयार नहीं थे। १९८० के दशक के बीच बै. अंतुले ने सातारा में सार्वजनिक सभा में भाषण दिया। ‘छत्रपति के सातारा की पवित्र भूमि पर यशवंतराव के रूप में एक कलंक पैदा हुआ है,’ ऐसा उद्गार मुख्यमंत्री अंतुले ने सार्वजनिक सभा में व्यक्त किया। श्री यशवंतराव चव्हाण ने सातारा को कलंक लगाया ये बयान तमाम ‘मराठा’ समाज को उनके खिलाफ एक साथ आने के लिए पर्याप्त था। श्री चव्हाण में कुछ कमियां होंगी। उन्होंने जोड़-तोड़ अथवा बाड़े की राजनीति की, लेकिन उन्हें कलंक कहना किसी ने भी बर्दाश्त नहीं किया। परंतु श्री फडणवीस कोई यशवंतराव नहीं हैं और महाराष्ट्र के लिए अभी तक कुछ खास नहीं किया है। यशवंतराव चव्हाण ने महाराष्ट्र के लिए जो असंख्य बातें की उसे महाराष्ट्र भूल नहीं सकता। नागपुर के फडणवीस को मोदी ने मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तो वे कहां होते? मुख्यमंत्री पद पर एकनाथ खडसे और उसके बाद श्री गडकरी का ही अधिकार था। गोपीनाथ मुंडे के असामयिक निधन ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। उसमें केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करके फडणवीस ने पार्टी और बाहरी विरोधियों को वैâद कर लिया तथा महाराष्ट्र के सुसंस्कृतिपन को सबसे बड़ा दाग लगाया। उन्होंने राजनीति के स्तर को गिरा दिया। सत्ताधारी और विरोधियों में संवाद खत्म हो गया और जो विरोधी थे, उन्हें उनके कलंक के साथ फडणवीस ने स्वीकार कर लिया तथा अब उनकी कलंकित राजनीति पर तंज कसनेवालों पर वे बरसते है। राधाकृष्ण विखे-पाटील की संस्था के खाते में जाकिर नाईक के मार्फत कुछ करोड़ रुपए आए। उसकी जांच कब होगी? ऐसा सवाल पूछते ही फडणवीस बिफर उठते हैं। चिढ़ने वाले होंगे तो पहले गृह विभाग छोड़ो। राधाकृष्ण विखे और नवाब मलिक पर लगे आरोपों का स्वरूप एक जैसा ही होने के बावजूद उनमें से एक फडणवीस की जांघ से जांघ सटाकर मंत्रिमंडल में बैठते हैं व दूसरे जेल में हैं। यह तस्वीर कानून और समान न्याय के सिद्धांत को कलंकित करने वाली है। महाराष्ट्र राज्य में कौन कलंकित है, किसे शर्म आएगी, कौन बेशर्म है इसकी सत्यता अंतत: जनता परखेगी। अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल न करें, ये सही लेकिन अशोभनीय राजनीति करनेवालों को भी पहले इस नियम का पालन करना चाहिए। ‘महाराष्ट्र’ राज्य के नाम में ही साधारण राष्ट्र नहीं है, बल्कि ‘महा’राष्ट्र है। महाराष्ट्र के शासक ही रोज असभ्य भाषा का प्रयोग करते हैं, इस पर मुझ जैसों को शर्म आती है।’ उच्चता, सभ्य भाषा, अनुदारता का अभाव यह एक शासक के पहले लक्षण होने चाहिए। जिनके पास दूसरों का फोड़ा हुआ पूर्ण बहुमत है। उनके पास ये अधिक होना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र आज शिवराय के नहीं, बल्कि मोदी-शाह के पदचिह्नों पर चल रहा है। महाराष्ट्र ने क्षुद्रता, बेशुमार गुरूर और ओछी भाषा की कभी परवाह नहीं की। यही महाराष्ट्र का गुण है।
भाग्य ही अधिक
श्री फडणवीस के साथ व्यक्तिगत बैर होने की कोई वजह नहीं है। वे अच्छे गृहस्थ हैं। लेकिन राजनीतिक उपलब्धि की बजाय उन्हें सब कुछ भाग्य से ही मिला है। परंतु उन्होंने महाराष्ट्र के लिए क्या किया? यह सवाल ही है। महाराष्ट्र के कई उद्योगों को उनकी आंखों के सामने गुजरात में खींचकर ले जाया गया। महाराष्ट्र के शिखर पर से सोने का कलश आपकी आंखों के सामने काटकर ले गए। कोरोना काल में महाराष्ट्र की जरूरत के वक्त भाजपा विधायकों-सांसदों के मानधन की निधि फडणवीस ने गैर सरकारी निजी स्वरूप के ‘पीएम केयर फंड’ में घुमा दिया। महाराष्ट्र का पैसा महाराष्ट्र में नहीं रहना चाहिए, ऐसा जिन्हें लगता है, उन्हें महाराष्ट्र का स्वाभिमानी वैâसे मानें?
औरंगजेब के नाम पर महाराष्ट्र में सियासी टिप्पणी की जा रही है। सत्ता प्राप्ति के लिए औरंगजेब ने अपने जन्मदाता पिता को जेल में रखा और सगे भाई की हत्या भी की। महाराष्ट्र ने शिवराय का मार्ग छोड़ दिया। वो अलग मार्ग पर निकल चुका है। यह मार्ग दिल्ली के ‘शाहों’ का और औरंगजेब का न हो, बस इतना ही!

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