संजय राऊत
दिल्ली में मराठी साहित्य सम्मेलन और महाराष्ट्र में मराठी भाषा गौरव दिवस मनाया गया, लेकिन इन सबमें मराठी लोगों का स्वाभिमान, गुरूर खो गया। महाराष्ट्र के सूत्र पूरी तरह से दिल्ली के हाथ में हैं और महाराष्ट्र के नेता अमित शाह से मिलने के लिए सुबह चार बजे तक टकटकी लगाए खड़े हैं। शिंदे-शाह के बीच उस दिन ‘सुबह’ क्या हुआ?
इतिहास लगातार खुद को दोहराता है ये साबित करने वाला दौर अभी महाराष्ट्र में चल रहा है। मराठों में दो फाड़ और घर के ही लोग जब राज्य का दुश्मन बन बैठे, ऐसी स्थिति से व्यथित होकर शिवाजी महाराज ने रायगढ़ में अपना शरीर त्याग दिया। हम उनकी जयंती और पुण्य तिथि मनाते हैं। १९ फरवरी को शिवनेरी पर शिवराय का जन्मोत्सव मनाया गया। वहां भी इस फूट के दर्शन हो गए। मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे के बीच कड़वाहट के दर्शन शिवनेरी किले पर हुए और दूसरे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार इन सबका आनंद लेते रहे। छत्रपति संभाजी पर बनी फिल्म ‘छावा’ फिलहाल चल रही है। दिल्ली के मराठी साहित्य सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने ‘छावा’ फिल्म का विशेष उल्लेख किया कि मुगलों ने वैâसे संभाजी राजा को मार डाला, ये देखें और भाजपा को वोट दें’ परोक्ष रूप से ऐसा कहने के लिए। यदि हम मान लें कि जिन फितूरों ने संभाजी राजा को पकड़वाया और स्वराज्य की दुर्गति की, वे हमारे ही थे और दिल्ली के वरदहस्त थे तो आज महाराष्ट्र के नसीब में फिर वही दुर्भाग्य आ गया है। महाराष्ट्र मानसिक रूप से जाति-पांति में बंट गया है और इसका फायदा दिल्ली उठा रही है। अपने स्वाभिमान के लिए जाना जाने वाला महाराष्ट्र राज्य आज राजनीति की मोहमाया के कारण शरणागत होता स्पष्ट नजर आ रहा है।
प्रतिष्ठा पर घाव
महाराष्ट्र की संपत्ति और उद्योग गुजरात जा रहे हैं, ये अब आम बात हो गई है। ‘पेटेंट’ का मुख्यालय मुंबई में था। आठ दिन पहले खबर आई कि ये ‘पेटेंट’ का कार्यालय भी दिल्ली शिफ्ट हो गया है। अगर सीधे अहमदाबाद ले गए तो हल्ला हो जाएगा इसलिए इसे पहले दिल्ली और फिर अहमदाबाद ले जाया जाएगा। बेलगाम में मराठी लोगों पर फिर से हमले हो रहे हैं और फडणवीस, शिंदे, पवार की तिकड़ी इस पर बोलने को तैयार नहीं है। ऐसे में मराठी भाषा दिन और पुरस्कार वितरण जैसे समारोह बेकार हैं। मुख्यमंत्री फडणवीस ने एक बार फिर नया फरमान जारी किया है कि मंत्रालय का कामकाज पूरी तरह से मराठी में ही संचालित होना चाहिए। उससे क्या होगा? एकनाथ शिंदे ने ठाणे मनपा के उन कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने का आदेश दिया है, जिन्होंने मराठी भाषा में डिग्री हासिल की है। गुलामी के दौर में राज्यभाषा न होने पर भी मराठी भाषा के प्रति प्रेम यहां के निवासियों के हृदय में कूट-कूटकर भरा था। स्वराज और स्वतंत्रता के वातावरण में स्वभाषा के सर्वांगीण विकास की पर्याप्त गुंजाइश है, लेकिन संघर्ष के समय में इसके प्रति प्रेम और अभिमान कड़वा हो जाता है, जैसा कि हमने संयुक्त महाराष्ट्र संघर्ष और शिवसेना के गठन के समय में देखा। मराठी माणुस को प्रतिष्ठा मिले बिना मराठी भाषा को प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी यह शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की भूमिका थी और उन्होंने इसके लिए वैसा कार्य किया, लेकिन आज मराठी माणुस की प्रतिष्ठा ही नहीं रही। मराठी माणुस की प्रतिष्ठा के लिए बनी शिवसेना पर ही दिल्ली ने प्रहार किया है। शिर्वेâ सिर्फ संभाजी राजा के समय ही नहीं थे, आज भी हैं, बल्कि सरदेसाई के वाड़ा के अनाजीपंत और फितूर करनेवाले ‘सरकारकून’ आज भी महाराष्ट्र में हैं और राजनीतिक लाभ के लिए दिल्ली के तलवे चाट रहे हैं। ये तस्वीर महाराष्ट्र के लिए अच्छी नहीं है!
‘वतनदारी’ की लड़ाई;
शिंदे-शाह संवाद
वतनदारी पाने के लिए आज मराठी अस्मिता से बेईमानी करने वालों की फौज महाराष्ट्र में खड़ी हो गई है। छत्रपति शिवराय और संभाजी राजा के समय वतन के लिए युद्ध और गद्दारी अपनों ने ही की। आज भी उसी तरह वतन के लिए बेईमान दिल्ली की जी-हुजूरी करते हैं। उद्धव ठाकरे से विवाद शुरू करते समय एकनाथ शिंदे के अंदर का ‘मराठा’ जाग उठा। आत्मसम्मान के लिए ‘बगावत’ करने का हल्ला उन्होंने मचाया। वही मराठा आज दिल्ली के शाह के चरणों में लोटते हुए दिखाई देता है। शिंदे की अब नई दुनिया में भी पटरी नहीं खा रही है। एकनाथ शिंदे ने शनिवार, २२ फरवरी की सुबह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। यह मुलाकात पुणे के कोरेगांव पार्क स्थित ‘वेस्टइन’ होटल में हुई। ५७ विधायकों का नेता अमित शाह से मिलने के लिए सुबह चार बजे तक जागता रहा। ‘सरकार में मेरी कोई इज्जत नहीं है, कल तक मैं मुख्यमंत्री था। आज मेरे सारे पैâसले पलट दिए जा रहे हैं’, यह बताने के लिए शिंदे ने सुबह चार बजे अमित शाह से मुलाकात की। ‘बेलगाम में मराठी लोगों पर हो रहे हमलों को रोकें, केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए’ यह कहने के लिए तो शिंदे भला इतनी सुबह शाह से निश्चित नहीं मिले होंगे। क्योंकि मराठी लोगों पर हमले तो अब भी जारी हैं। शाह से मुलाकात के बाद जब शिंदे बाहर निकले तो उनका चेहरा उतरा हुआ था। गृहमंत्री अमित शाह और शिंदे के बीच चर्चा हुई और उसमें शिंदे का फडणवीस को लेकर शिकायत का स्वर था। उस चर्चा का जो ब्यौरा बाहर आया वो कुछ इस प्रकार है। इन दोनों के बीच हुई बातचीत को लेकर जो कयास लगाए गए, वह यही है।
अमित शाह: क्या शिंदे जी, सुबह के चार बज रहे हैं, इतना क्या अर्जेंट है?
शिंदे: आपको सब मालूम है, यहां क्या हो रहा है।
शाह: क्या हो रहा है?
शिंदे: मुझे और मेरे लोगों की घेराबंदी करने की कोशिशें खुलेआम चल रही हैं।
शाह: ऐसा कैसे हो सकता है? मैं देवेंद्र से बात करता हूं।
शिंदे: मुझे दबाने की, खतम करने की पूरी कोशिश हो रही है। आपके भरोसे हम आपके साथ आए। आपका वादा था, चुनाव के बाद भी मैं ही मुख्यमंत्री रहूंगा।
शाह: हमारे १२५ लोग चुनकर आए… तो आप वैâसा क्लेम कर सकते हो?
शिंदे: मेरे नेतृत्व में चुनाव हुआ।
शाह: नहीं, मोदीजी के चेहरे पर चुनाव हुआ। आपको क्या चाहिए बोलो… मैं कोशिश करूंगा।
शिंदे: मुख्यमंत्री।
शाह: देखो भाई, ये ठीक नहीं है। अभी नहीं हो सकता। पार्टी का ही मुख्यमंत्री होगा।
शिंदे: मैं क्या करूं?
शाह: आप बीजेपी में मर्ज हो जाओ। आपका क्लेम सीएम पद पर तब रहेगा। बाहर का आदमी अब महाराष्ट्र का सीएम नहीं बनेगा। आपका रिस्पेक्ट हमने रखा है।
शिंदे: फिर हमारे पार्टी का क्या?
इस पर ‘वो हमारे पे छोड़ दो। वो पार्टी हमने ही बनाई। आप चिंता मत करो।’ ऐसा श्री. शाह ने कहा और सुबह की यह बैठक समाप्त कर दी। ऐसा बतानेवाले भाजपा के ही लोग हैं। महाराष्ट्र की राजनीति कुछ इस तरह की चल रही है। प्रयागराज का कुंभ खत्म हो गया, लेकिन महाराष्ट्र के सियासी कुंभ में दलबदल की भगदड़ जारी ही है।
इधर-उधर दौड़-भाग
शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता जयंत पाटील ने भाजपा के चंद्रशेखर बावनकुले से मुलाकात की। ऐसे में पवार के आखिरी मालुसरे भी चल दिए की अफवाहें तेज हो गर्इं। हर दिन कोई न कोई इधर से उधर जा रहा है। शिवाजी महाराज के समय में मराठा सरदार इस शाही से उस शाही तक चाकरी के लिए जाते थे। वतनदारी मिले यही उनका मुख्य उद्देश्य होता था। आज भी अलग क्या हो रहा है? शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के नाम पर राजनीति करना। आज के मराठा नेता, जो शिवाजी महाराज पर गर्व करते हैं, यह नहीं सोचते कि हमें वैसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हमने शिवाजी महाराज के समय में किया था। फूट और विश्वासघात की राजनीति उस काल में भी चली। आज भी चल रही है। सभी एक ही माला के मोती हैं। पिछले तीन वर्षों में हमारे ही नेताओं द्वारा पूरे महाराष्ट्र की उपेक्षा की गई, जिस पर कलश चढ़ाने का काम अब तो रोज होने लगा है। उनको एक बार कहना चाहते हैं कि आपको शिवाजी महाराज, संभाजी राजा की जयंती और पुण्य तिथि मनाने और उनकी मूर्तियां लगाने का कोई अधिकार नहीं है। चंद्रराव मोरे, गणोजी शिर्के की राजनीति अभी भी जारी है। दिल्ली के जिस औरंगजेब के दरबार में सिर नहीं झुकाएंगे, स्वाभिमान के केवल इस एक मुद्दे को लेकर शिव छत्रपति ने मुगलों के भरे दरबार में अपनी जान की परवाह किए बिना मराठों की अस्मिता का शानदार परचम लहराया, उसी दिल्ली के आगे महाराष्ट्र सुबह चार बजे तक टकटकी लगाए खड़ा रहता है और सिर झुकाता है, इसका दिल्ली को भलि-भांति एहसास है। जो कार्यकर्ता और नेता व्यक्तिगत स्वार्थ, सत्तालोलुपता से ग्रस्त हैं, मानो सत्ता के बिना देश सेवा संभव ही नहीं, वे सब इधर-उधर भाग रहे हैं और मुख्य रूप से एक ही पार्टी के तंबू में घुस रहे हैं। मुगलों में सभी मराठों के शामिल होने का ही यह प्रकार है। महाराष्ट्र और मराठी लोगों के लिए स्थापित की गई बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को अमित शाह ने तोड़ दिया। इसे शिंदे के हाथ पर रख दिया। आज शिंदे पुन: मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं इसलिए वे उस चुराई गई शिवसेना का भाजपा में विलय कराने निकल पड़े।
महाराष्ट्र की इज्जत की मौजूदा दिल्लीश्वरों द्वारा उड़ाई गई धज्जियों से बड़ा कुछ और हो सकता है!