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रोखठोक : प्रधानमंत्री का ‘इंडिया’ पर हमला! … ऐसी थी ईस्ट इंडिया

संजय राऊत

राजनीतिक विरोधियों के ‘इंडिया’ पर प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरकार हमला बोल ही दिया है। ‘इंडिया’, ईस्ट इंडिया कंपनी है, ऐसा उन्होंने कहा। ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने आई और शासक बन गई। आज के शासक व्यापार ही कर रहे हैं!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने विरोधियों में आतंकी, दहशतगर्द नजर आने लगे हैं। ये उनकी हताशा के संकेत हैं। देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी गलतियों पर गलतियां करने लगे हैं।
पटना, बंगलुरु में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एक साथ आकर ‘इंडिया’ नामक आघाड़ी (संयुक्त मोर्चा) का गठन किया। ये भाजपा के लिए झटका ही है। ‘इंडिया’ प्रकरण में प्रधानमंत्री मोदी का तो संयम ही टूट गया है! उन्होंने ‘इंडिया’ नाम पर बेहद सख्त और गंदी टिप्पणी की है। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘इंडिया’ की तुलना ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘इंडियन मुजाहिदीन’ से कर दी। मोदी की टिप्पणी का श्री राहुल गांधी ने बड़े संयम के साथ जवाब दिया। श्री गांधी ने कहा,
‘call us whatever you want Mr Modi, we are India.’ आप हमें किसी भी नाम से बुलाएं, लेकिन हम ‘इंडिया’ हैं। भारत हैं। हम मणिपुर के आंसू पोंछने की चुनौती स्वीकार करेंगे। मणिपुर की हर लड़की और महिला की मदद करेंगे। वहां के लोगों को प्यार और शांति का संदेश पहुंचाएंगे।’ हम मणिपुर के लोगों के मन में ‘इंडिया’ को पुनर्स्थापित करेंगे। we will rebuild the idea of India in Manipur. ऐसा उन्होंने कहा।

महाबलेश्वर का ‘मैल्कम’
श्री मोदी ने ‘इंडिया’ गठबंधन को ईस्ट इंडिया कंपनी की उपमा दी। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेजों की एक व्यापारिक कंपनी थी और वे व्यापारी बनकर आए थे लेकिन शासक बन गए। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह दिल्ली के गुजराती शासक भी व्यापारी हैं। हम व्यापारी हैं, ऐसा खुद प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार किया है। व्यापारी होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन व्यापार देश और जनता के हित में होना चाहिए। ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर व्यापार के माध्यम से ही स्वामित्व हासिल किया था। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार और उसे करनेवाले लोग आज के राजनीतिक व्यापारियों जितने क्रूर नहीं रहे होंगे, अब ऐसा लगने लगा है। आज भी हमारे महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में एक मंडी है और इसे ‘मैल्कम मार्केट’ के नाम से जाना जाता है। इसका नाम अब बदल गया है, लेकिन उस बाजार को आज भी ‘मैल्कम’ के नाम से ही जाना जाता है। एक ब्रिटिश गवर्नर सर जॉन मैल्कम ने इस बाजार की स्थापना की थी। इस बाजार से स्थानीय लोगों को आजीविका का साधन मिला। यह बात वहां के लोगों को आज भी याद है। मुझे किसी ने बताया कि आज भी हर रविवार को हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी सहित तमाम स्थानीय लोग बाजार में स्थित मैल्कम स्तंभ पर आते हैं और फूल तथा नारियल चढ़ाते हैं। यह मैल्कम कौन था? तो मोदी जिस ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाते हैं, उस कंपनी का प्रतिनिधि था। मैल्कम तेरह साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी पर लगे थे। वह बेहद महत्वाकांक्षी, खुशमिजाज और विलासी वृत्ति वाले थे। उन्होंने इंग्लैंड में कई बड़े हाकिमों का विश्वास जीता और उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी में बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलती गर्इं। गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने शिंदे सरदारों आदि से सामंजस्य स्थापित किया। पेशवाओं से भी तालमेल बैठाया। इसी तरह लड़ाइयां भी लड़ीं। उन्होंने फारसी और हिंदुस्थानी भाषाओं को आत्मसात किया। वे वाकपटु थे और लोगों के साथ विनम्रता से पेश आते थे। मैल्कम हाजिरजवाब थे। उनकी हाजिरजवाबी के कई किस्से उपलब्ध हैं। एक बार एक भील उन्हें बहुत देर तक अपनी व्यथा सुनाता रहा और फिर जल्दी फैसला करो, ऐसी जिद करने लगा।’ तब मैल्कम ने उससे कहा, ‘मुझे ईश्वर ने दो कान क्यों दिए हैं? एक कान से तुम्हारी सुन ली, अब दूसरे कान से दूसरे पक्ष की बात सुननी चाहिए। भील को यह बात उचित लगी। मैल्कम बाद में मुंबई के गवर्नर बने। प्रजा की शिकायतों को स्वयं सुनने के बाद वे उनका समाधान करते थे। कृषि आदि के मामलों में उनकी भूमिका न्याय की थी। वे अहंकारी या दुष्प्रवृत्ति वाले नहीं थे। अपनी पत्नी को लंदन लिखे पत्र में मैल्कम लिखते हैं, ‘यहां के दीन-गरीब लोग मेरे पास आते हैं और अपने सुख-दुख बताते हैं। जब मैं अपने स्तर पर उनकी समस्याओं का समाधान करता हूं तो वे मुझे दुआ देते हैं। इस खुशी में हिस्सेदार बनने के लिए तुम्हें यहां होना चाहिए था। इन लोगों ने कभी समृद्धि, सुख, आनंद नहीं देखा। इनके जीवन में आनंद, सुख देखने का सौभाग्य मुझे मिला, इसका मुझे सर्वाधिक हर्ष होता है। मैल्कम ईस्ट कंपनी का शासक थे, लेकिन जनता को वे अपना संरक्षक और हितैषी लगते थे। यदि आज के शासकों ने उस ईस्ट इंडिया कंपनी के इन गुणों को भी देखा होता तो वे विरोधियों पर कीचड़ नहीं उछालते!

तब संघ कहां था?
ईस्ट इंडिया कंपनी से लड़ने के दौरान आज का संघ परिवार कहीं भी नहीं था। आजादी के लिए खून की एक बूंद भी बहाए बिना आज यह टोली आजादी के सारे फल चख रही है। विभाजन के समय जब बंगाल के नोआखाली में हिंसा का दावानल भड़का था, तब महात्मा गांधी निडर होकर उस आग में घुस गए थे। आज मणिपुर जलने के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी न तो वहां जा रहे हैं और न ही बात करने को तैयार हैं। भाजपा ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नीति का अनुभव कहां से लिया? वर्तमान ‘इंडिया’ बनाने की योजना में तो वे कहीं थे ही नहीं। ‘भारत छोड़ो’, ‘चले जाओ’ आंदोलन के संदर्भ में पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमिका अलग ही थी। इस आंदोलन को उनका समर्थन नहीं था और उन्होंने ब्रिटिश यानी ईस्ट इंडिया कंपनी को ऐसा पत्र लिखा था, ऐसा जानकार कहते हैं। इसलिए अपने विरोधियों पर ईस्ट इंडिया कंपनी होने का आरोप लगाना मतलब अपने आप पर आरोप लगाने जैसा ही है। ‘इंडिया’ मतलब दहशतगर्द, ऐसा श्री मोदी कहते हैं, लेकिन उनके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में कम से कम पांच दलों के पास ‘इंडिया’ है। ऑल इंडिया डीएमके, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले), फिर अब ये ‘इंडिया’ वाले क्या करेंगे!

सत्ता का भोगी
ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारी वृत्तिवाली शासक थी और इसी का प्रतिबिंब देश के वर्तमान राजकाज में भी पड़ा है, ऐसा झलकता है। मौजूदा शासक सत्ता का भरपूर उपयोग और दुरुपयोग कर रहे हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक नौकरशाह इंडिया में आकर सारे सुख भोगते थे और मुखौटा मानवता, समाज सेवा व सुधार का लगाते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों का वेतन अधिक नहीं था। इसलिए वे व्यापारियों, जमींदारों और अन्य अमीर लोगों से सांठ-गांठ करके अपनी जरूरतों को पूरा करते थे। हम सत्ता के स्वामी हैं और इसलिए जैसा भी चाहें बर्ताव करने का लाइसेंस हमें प्राप्त है, ऐसा ही वे मानते थे। १७६१ में हेनरी वैनसिटार्ट ईस्ट इंडिया कंपनी में बंगाल के गवर्नर थे। उन्हें रिश्वत, नजराना आदि लेने में कोई झिझक महसूस नहीं होती थी। वे रंगीन मिजाज थे। इंग्लैंड में एक मित्र को लिखे पत्र में वे कहते हैं, ‘मित्र, आप कहते हैं कि हम सत्ता में रहनेवाले लोग हैं और हम लाभ उठाते हैं। लेकिन मित्र, यदि हमें लाभ नहीं लेना है तो हम सत्ता में क्यों रहें?’ वर्तमान भाजपा की मानसिकता इसी ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी है। बेशक, उस ईस्ट इंडिया कंपनी में मैल्कम जैसे लोग थे और वैनसिटार्ट जैसे सत्ताभोगी और लुटेरे भी। आजाद हिंदुस्थान में भी मैल्कम हैं तो उसी तरह वैनसिटार्ट्स भी हैं। इनमें से हम किसके उत्तराधिकारी हैं, यह भाजपा को तय करना है। यदि आप विरोधियों को ईस्ट इंडिया कंपनी कहते हैं तो अपने चरित्र की जांच करने का साहस भी रखें!

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