‘मोदी-अडानी युति पर राहुल गांधी ने संसद में तोपखाना ही छोड़ दिया। सरकारी सांसदों ने उनके भाषण में व्यवधान उत्पन्न किया। लेकिन मोदी संसद में आकर इधर-उधर की और सब असंबद्ध ही बोले। राहुल गांधी के सवालों का जवाब देने से पलायन कर गए। उसमें ‘पी.एम. केयर्स’ फंड का मामला उफान मारकर बाहर आ गया। देश बेचा जा रहा है!
गौतम अडानी को लेकर मचा तूफान इतनी जल्दी थम जाएगा, ऐसा लग नहीं रहा है। अडानी की जेब में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पूरे देश को डाल दिया। मोदी ने अडानी को देश बेच दिया, ऐसा विरोधियों का कहना है। भाजपा और वित्त मंत्री अडानी की पैरवी करते दिख रहे हैं। यह आश्चर्य है।
श्री मोदी और उनकी पार्टी के विपक्ष में रहने के दौरान कांग्रेस और गांधी परिवार देश बेच रहा है, ऐसे आरोप भाजपा लगा रही थी और इसमें नरेंद्र मोदी सबसे आगे थे। उस समय जनसभाओं में गांधी परिवार और कांग्रेस के खिलाफ तोप दागते हुए मोदी लय के साथ एक कविता पढ़ते थे। वह कविता इस प्रकार है- (कांग्रेस लक्षित)
वे लूट रहे हैं सपनों को
मैं चैन से कैसे सो जाऊं
वो बेच रहे हैं भारत को
खामोश मैं कैसे हो जाऊं
हां मैंने कसम उठाई है,
मैं देश नहीं बिकने दूंगा
सौगंध मुझे इस मिट्टी की
मैं देश नहीं मिटने दूंगा।
– इति मोदी
अब यही कविता प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के बारे में सार्वजनिक रूप से पढ़ने का समय आ गया है। अडानी ये देश के एक उद्योगपति हैं। उनका औद्योगिक साम्राज्य बढ़ रहा है, तो इसमें आक्षेप लें, ऐसा कुछ नहीं। लेकिन सरकार की खास मेहरबानी से खुद का साम्राज्य बढ़ाना और सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करना, यह लोकतंत्र और राष्ट्र के हित में नहीं है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ठीक यही किया था और इसी से देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा गया।
राहुल गांधी का हमला
मंगलवार, दिनांक ७-२-२०२३ को राहुल गांधी ने लोकसभा में भाषण दिया। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के बाद उनमें पैदा हुई गहराई की झलक इस भाषण में दिखी। ‘मोदी-अडानी’ गठजोड़ से देश एकाधिकार पूंजीवाद की ओर जा रहा है। ये श्री गांधी ने मुद्दों के साथ सामने रखा और किसी तरह का कोई झूठापन इस पूरे भाषण में नहीं था। राहुल गांधी, अडानी के मुद्दे पर सरकार की धज्जियां उड़ाएंगे। इससे अवगत होने के कारण प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित एक भी वरिष्ठ नेता या मंत्री सभागृह में मौजूद नहीं थे। श्री गांधी ने अडानी-मोदी गठबंधन पर जो भाषण दिया वह महत्वपूर्ण है।
• २०१४ में अमीरों की सूची में अडानी ६०९वें क्रमांक पर थे। लेकिन न जाने क्या जादू हुआ, वे कुछ ही वर्षों में दूसरे नंबर पर पहुंच गए… ऐसा कैसे?
• प्रधानमंत्री मोदी जिस देश में जाते हैं, उस देश में ‘ठेके’ अडानी को ही मिलते हैं। यह हिंदुस्थान की विदेश नीति न होकर अडानी की विदेश नीति है।
• पहले मोदी जी अडानी के विमानों में भ्रमण करते थे। अब मोदी जी के विमान में अडानी उड़ान भरते हैं।
• प्रधानमंत्री मोदी इजराइल के दौरे पर जाते हैं और तुरंत ‘रक्षा क्षेत्र’ में सभी टेंडर्स अडानी को मंजूर कर लिए जाते हैं। रक्षा क्षेत्र के जिस क्षेत्र में अडानी की कंपनियों को किसी तरह का अनुभव नहीं है।
•अडानी के लिए भारत सरकार ने सीबीआई, ईडी के दबाव तंत्र का इस्तेमाल किया। उन्हीं जांच एजेंसियों का दबाव डालकर मुंबई समेत छह एयरपोर्ट का काम ‘जीवीके’ से छीनकर अडानी को दे दिया गया।
• प्रधानमंत्री ऑस्ट्रेलिया जाते हैं और स्टेट बैंक अडानी को एक बिलियन डॉलर के ऋण की तुरंत स्वीकृति दे देता है। प्रधानमंत्री बांग्लादेश गए और १,५०० मेगावाट बिजली का ठेका अडानी को मिल गया।
• अडानी ने दस वर्षों में भारतीय जनता पार्टी को कितने पैसे दिए?
• अडानी की संपत्ति केवल आठ साल में आठ बिलियन डॉलर्स से १४० बिलियन डॉलर्स कैसे हुई?
• श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति राजपक्षे पर दबाव डालकर श्रीलंका में विंड पॉवर प्रोजेक्ट अडानी को देने को कहा।
राहुल गांधी द्वारा संसद में उठाए गए सवालों का प्रधानमंत्री मोदी जवाब देंगे, ऐसा लगा था। लेकिन अडानी के बारे में मोदी एक शब्द भी नहीं बोले, वे कांग्रेस की आलोचना करते रहे।
मोदी ने कहा, ‘मुझे आनंद है। ‘ईडी’ की वजह से पूरा विपक्ष एक साथ आ गया।’ मोदी ने एक तरह ‘ईडी’ की फर्जी कार्रवाइयों का समर्थन किया, लेकिन मोदी एक बात भूल गए। वह मतलब वर्ष १९७५ में इंदिरा गांधी ने ‘मीसा’ कानून का दुरुपयोग किया और अपने विरोधियों को जेल में डाल दिया। उस ‘मीसा’ की वजह से पूरा विपक्ष एक हो गया और इस वजह से इंदिरा गांधी के साथ-साथ कांग्रेस की हार हुई। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में Rise and down fall of Indian National Congress पर एक शोध शुरू होने की असंगत जानकारी मोदी ने अपने भाषण में दी। लेकिन एलआईसी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पैसे अडानी की कंपनी में क्यों निवेश किए, इस बात पर प्रकाश नहीं डाला। विपक्ष के सवालों का जवाब देने की हिम्मत सरकार में नहीं है। सरकार मतलब दूसरा कौन? तो एकमेव मोदी!
‘पी.एम. केयर्स’ का घोटाला
अडानी के माध्यम से पूरे देश के उद्योग और अर्थव्यवस्था को नियंत्रण में रखने का विचार घृणास्पद है। राष्ट्रभक्ति की परिभाषा में नहीं बैठनेवाला है। मोदी की सत्ता राष्ट्रभक्ति और हिंदुत्व की बुनियाद पर नहीं, बल्कि झूठ पर टिकी है। इसका और एक उदाहरण मतलब ‘पी.एम. केयर्स फंड’। कोरोना काल में लोगों की मदद हो, इस नेक इरादे से यह योजना प्रधानमंत्री ने शुरू की। प्रधानमंत्री कार्यालय का पता, सरकारी चिह्न, सरकारी प्रसार माध्यमों का इस्तेमाल कर हजारों करोड़ रुपए इस फंड में जमा किए गए। सरकारी कर्मचारियों के वेतन से पैसे काटकर इस पी.एम. केयर्स फंड में डाले गए। इसके लिए इंटरनेट के ‘gov.in’ ये सरकारी डोमेन भी प्राप्त किया। इस केयर फंड के ट्रस्ट पर वरिष्ठ सरकारी अधिकारी को नियुक्त करके उद्योगपति, व्यापारी, विदेशी संस्थाओं से अकूत धन बेहिसाब तरीकों से जुटाया। इस पूरे लेन-देन का हिसाब देने और
ऑडिट करने से प्रधानमंत्री कार्यालय ने इनकार कर दिया। इस पूरे मामले को कुछ निडर लोग सुप्रीम कोर्ट में ले गए। तब मोदी सरकार ने कहा, ‘पी.एम. केयर्स फंड सरकारी नहीं है और इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है!’ यह पूरा मामला झकझोरनेवाला है। खुद श्री मोदी ने अधिकृत प्रधानमंत्री पद का इस्तेमाल करके इस ‘फंड’ के सरकारी होने का आभास कराकर धन जुटाया और उसका कोई हिसाब नहीं दिया। यह वित्तीय अपराध नहीं है क्या? तीस्ता सितलवाड और साकेत गोखले ये दो पत्रकार और स्वयंसेवी संस्था चलाने वालों को ऐसे ही अपराधों के तहत (Crowd funding) ईडी ने गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया। गोखले सिर्फ १० लाख के ऐसे ही व्यवहार के लिए तिहाड़ जेल में हैं। पी.एम. केयर फंड में जमा हुई राशि, यह उसी तरह का अपराध है।
बै. अ.र. अंतुले ने मुख्यमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान को स्थापित किया। इस प्रतिष्ठान के सरकारी होने का आभास कराया। इंदिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। कई चीनी मिलों के मालिक, बिल्डरों, उद्योगपतियों से प्रतिष्ठान के लिए चेक से रकम स्वीकार की गई। यह संस्था सरकारी है और पैसा सरकारी खजाने में जा रहा है, ऐसा उस समय लोगों को लगता था। लेकिन वास्तव में यह एक निजी ट्रस्ट निकला। उस समय श्री अंतुले को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और धोखाधड़ी के मुकदमे का सामना करना पड़ा। पी.एम. केयर्स फंड और इंदिरा प्रतिष्ठान की मोडस ऑपरेंडी एक ही है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में सीधे-सीधे धोखाधड़ी की है। लेकिन उनसे कौन पूछेगा? अमेरिका में वहां की एफबीआई जैसी जांच एजेंसी ने राष्ट्रपति बाइडेन के घर पर ही छापा मारकर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए। लोकतंत्र का यही मूल है। राष्ट्र से प्रधानमंत्री बड़े नहीं और प्रधानमंत्री मतलब हिंदुस्थान नहीं। वहां अडानी जैसे उद्योगपति का मतलब देश कैसे हो सकता है? अडानी के मामले की जांच नहीं होगी और पी.एम. केयर्स फंड में ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ जांचने की हिम्मत ईडी और सीबीआई में नहीं। राहुल गांधी ने लोकसभा में ‘मोदी-अडानी’ गठबंधन पर और सरकार के झूठेपन पर सर्जिकल स्ट्राइक किया।
राहुल गांधी का भाषण समाप्त होने के बाद कई भाजपाई सांसदों के चेहरे पर संतोष दिखाई दे रहा था। उनके मन में आनंद की लहरें उफान मार रही थीं लेकिन चेहरे पर नहीं दिखा पा रहे थे।
२०२४ के लिए आशादायी तस्वीर है।
भारत किसकी जेब में जा रहा है, यह राहुल गांधी ने बैखौफ होकर संसद में कह डाला। मोदी ने इसका जवाब देना टाल दिया।
२०१४ से पहले मोदी ने गांधी परिवार को लक्षित करते हुए कहा था, ‘मैं देश नहीं मिटने दूंगा।’ आज वही गांधी, मोदी की ओर देखकर कह रहे हैं, ‘मैं देश नहीं बिकने दूंगा!’
लेकिन आठ वर्षों में देश काफी हद तक बेच दिया गया है!