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रोखठोक: नेहरू वंश का ‘गांधी’, २०२४ की जीत का बिगुल

संजय राऊत
प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की मुट्ठी से सत्ता की रेत फिसल रही है। २०२४ तक उनकी मुट्ठी खाली हो जाएगी, यह अब स्पष्ट हो गया है। देश की महानता किसमें होती है, यह देश की जनसंख्या, ऊंची इमारतों, महंगी गाड़ियों के आधार पर तय नहीं होती। ये शासकों के चरित्र व स्वतंत्रता के संबंध में उनके मन में कितना सम्मानजनक स्थान है, इस पर निर्भर करता है। आज वह महानता नहीं रही है। श्री राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी ने संसद से बाहर निकाल दिया। इसके लिए गुजरात की धरती पर न्याय व्यवस्था व कानून का दुरुपयोग किया। वही राहुल गांधी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में पहुंच गए। किसी वीर की तरह उनका स्वागत हुआ। अविश्वास प्रस्ताव पर वे जोरदार बोले। उस दौरान भाजपा सदस्यों ने सिर्फ हंगामा करने का ही काम किया। राहुल गांधी अगले दिन संसद के मध्यवर्ती सभागार में पहुंचे। साथ में सोनिया गांधी थीं। मध्यवर्ती सभागार में बैठे भाजपाई सदस्य तब भाग गए। राहुल गांधी पास आ गए और उन्होंने हाथ-मिलाया तो ‘ऊपर’ तक खबर पैदल जाएगी और उन्हें नौकरी गंवानी पड़ेगी, ये भय आज दिल्ली में सर्वत्र है।
गांधी का भाषण
राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में भाषण दिया। इसे पूरे देश ने देखा। ‘अध्यक्ष महोदय, मेरे भाजपाई मित्र तनाव में हैं, लेकिन उन्हें ‘टेंशन’ नहीं लेना चाहिए। आज मैं उनके अजीज अडानी पर नहीं बोलूंगा।’ ऐसा प्रारंभ में ही बोलकर गांधी ने भाजपा को आउट कर दिया। अगले घंटे भर तक गांधी गरजते रहे और बरसते रहे। ९ अगस्त यह क्रांति दिन का, ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का, महात्मा गांधीकृत घोषणा का दिन है। उसी दिन नेहरू वंश के एक गांधी ने भारत की संसद में मोदी सरकार को ‘चले जाओ’ का संदेश दिया। देश का माहौल आज ऐसा ही है। जिनका ‘चले जाओ’ आंदोलन से और स्वतंत्रता संग्राम से तिल के बराबर भी संबंध नहीं है, वो लोग आज सत्ता में हैं और वो राहुल गांधी के खिलाफ ‘चले जाओ’ का नारा लगा रहे थे। मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान से गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा ९ अगस्त, १९४२ को दिया था। गांधी के परपोते तुषार गांधी उस क्रांति स्तंभ पर फूल चढ़ाने पहुंचे। उन्हें पुलिस ने रोक दिया; क्योंकि मुख्यमंत्री शिंदे, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार वहां आनेवाले थे और उन्हें वहां सबसे पहले फूल चढ़ाना था। जिन्होंने जीवनभर गांधी से नफरत की, वे सभी लोग ‘भारत छोड़ो’ ैंल्ग्ू घ्ह्ग्a के नारे लगा रहे थे। श्री राहुल गांधी ने विचलित हुए बिना अपना भाषण जारी रखा। राहुल गांधी को जवाब देने के लिए स्मृति ईरानी बेहद ताव में खड़ी हुर्इं; लेकिन उनकी तरफ एक कटाक्षभरी मुस्कराहट के साथ देखते हुए राहुल गांधी सदन से बाहर चले गए। राहुल गांधी को पराजित करके स्मृति ईरानी वर्ष २०१९ में निर्वाचित हुई थीं, लेकिन वर्ष २०२४ में अमेठी की जनता गलती सुधारेगी। श्रीमती प्रियंका गांधी को वाराणसी से चुनाव लड़ना चाहिए, ऐसा आज कई लोगों का मत है। प्रियंका गांधी से मोदी को मुकाबला करना होगा और नतीजा क्या होगा ये कोई नहीं बता सकता। श्री मोदी गुजरात और वाराणसी ऐसे दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन वाराणसी उनके लिए आसान नहीं होगी। देश का माहौल और हवाएं पूरी तरह से बदल रही हैं।
महाराष्ट्र सदन में मोदी
प्रधानमंत्री मोदी फिलहाल दिल्ली में विभिन्न राज्यों के ‘एनडीए’ सांसदों के साथ मीटिंग कर रहे हैं। एक बैठक में उन्होंने कहा, ‘अब सिर्फ मेरे नाम पर वोट मत मांगो। अपने काम के बूते वोट हासिल करो।’ इसका अर्थ यही है कि सिर्फ मोदी के नाम पर वोट नहीं मिलेगा, उन्होंने यह स्वीकार कर लिया है। महाराष्ट्र सदन में उन्होंने महाराष्ट्र के ‘एनडीए’ सांसदों की बैठक ली। उस बैठक में शिवसेना और राकांपा के फोड़े गए सांसद भी उपस्थित थे। उनके सामने मोदी ने कहा, ‘शिवसेना से युति हमने नहीं तोड़ी। उन्होंने ही तोड़ी।’ ‘सामना’ मेरी आलोचना करता है, ऐसा दुख उन्होंने व्यक्त किया। मोदी ने अधूरी जानकारी के आधार पर उक्त बातें कहीं। शिवसेना-भाजपा युति की ‘मित्रता का काल’ २५ वर्षों तक था और उस मैत्रीपूर्ण काल में मोदी-शाह कहीं भी नहीं थे। वर्ष २०१४ में गुजरात की यह जोड़ी दिल्ली की राजनीति में अवतरित हुई और ‘मित्रकाल’ की युति तोड़ दी। मोदी २०१९ का हवाला देते हैं, लेकिन मूलरूप से भाजपा ने वर्ष २०१४ में ही ‘युति’ तोड़ दी थी। विधानसभा की एक सीट पर भाजपा ने युति तोड़ी थी। एकनाथ खडसे तब भाजपा में थे। वे युति तोड़ रहे हैं, ऐसा उद्धव ठाकरे को अधिकृत रूप से कहने की जिम्मेदारी पार्टी ने श्री खडसे को सौंपी थी। खडसे ने उद्धव ठाकरे को फोन करके, ‘युति तोड़ रहे हैं’, ऐसा कहा था। श्री मोदी को ये पता नहीं होगा? वे गलत जानकारी किसे दे रहे हैं? वर्ष २०१९ में उन्होंने दिए गए वचन का पालन नहीं किया इसलिए दूसरी बार युति टूटी। तब भाजपा ने एकनाथ शिंदे को ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने से इनकार कर दिया था, इसलिए युति टूट गई। अब उसी शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया। मोदी को इन घटनाक्रमों पर टिप्पणी करनी चाहिए और सच बोलना चाहिए।
आरोप किसने लगाए?
‘सामना’ मुझ पर लगातार टिप्पणी करता है, ऐसा नाराजगी भरा सुर प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र सदन में अलापा। जो कि तनिक भी सही नहीं है। श्री फडणवीस जैसे लोग हमेशा कहते हैं, ‘हम ‘सामना’ नहीं पढ़ते।’ लेकिन उनके सर्वोच्च बॉस ‘सामना’ को गंभीरता से लेते हैं, वे उस पर टिप्पणी करते हैं, ये अच्छे नेता की निशानी है। आलोचकों के विचारों को समझना चाहिए। यही वास्तविक लोकतंत्र है। मोदी के खिलाफ ‘सामना’ ने कभी व्यक्तिगत अथवा निम्न स्तर की टिप्पणी नहीं की है। भाजपा के ‘नंगे पोपटलाल’ शिवसेना नेताओं पर करते हैं, उस तरह से ‘सामना’ ने कमर के नीचे वार नहीं किया व झूठे आरोप नहीं लगाए। मोदी मंत्रिमंडल में महाराष्ट्र के एक मंत्री नारायण राणे द्वारा अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में दिया गया भाषण मोदी को सुनना चाहिए। वो भाषण महाराष्ट्र की महान संस्कृति को शर्मसार करनेवाला था। ‘सामना’ ने कभी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। नीतियों की आलोचना करना, अलग बात है और निचले स्तर पर जाकर व्यक्तिगत आलोचना करना अलग है। एकनाथ शिंदे के सुपुत्र उद्धव ठाकरे की कृपा से दो बार सांसद बने। उनके द्वारा संसद में इस्तेमाल की गई भाषा, भाजपा की नई संस्कृति को शोभा देनेवाली है और यही लोग अब भाजपा के अधोपतन का कारण बनेंगे। वर्ष २०२४ की जीत के लिए मोदी-शाह को दूसरों की पार्टियों को तोड़ना पड़ रहा है और भ्रष्टचारियों से गठजोड़ करके उनकी अथाह स्तुति करनी पड़ रही है। यही उनकी पराजय है! २०२४ की बड़ी पराजय की यह शुरुआत है। सोचनेवाले इंसान की सोचने की आदत ही छूट जाएगी, ऐसे भ्रम के दौर में फिलहाल हम अब जी रहे हैं। देश की समस्याओं के बुनियादी समाधान कौन-से हैं, इस बारे में विचार करने के लिए प्रधानमंत्री के पास समय ही नहीं है। जलते मणिपुर पर राहुल गांधी जबरदस्त बोले। उनका स्पष्ट बोलना भाजपा को नहीं जंचेगा। राहुल गांधी अब दूसरी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा पर निकले हैं। यह गांधी की भूमि गुजरात से शुरू होगी व ईशान्य की ओर जाएगी। इसमें मणिपुर है ही। उसके बाद मोदी-शाह ने करवाए तो आम चुनाव होंगे। देश इसी की प्रतीक्षा कर रहा है। मोदी को इतिहास रचने का मौका नियति ने दिया। मोदी ने कुछ नहीं बनाया। एक नया संसद भवन खड़ा किया, वो शुरू होने से पहले ही बारिश में रिसने लगा है। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से निर्माण हुई स्वतंत्रता की सुबह जिस संसद भवन में हुई, वह संसद भवन मोदी को नागवार हो गया। फिर भी वे ‘भारत छोड़ो’ का नारा अपने विरोधियों के खिलाफ देते हैं, ऐसा उसी ऐतिहासिक संसद ने देखा।
देश परिवर्तन की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है!
२०२४ की विजय की लड़ाई का बिगुल फूंका जा चुका है।

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