मुख्यपृष्ठसंपादकीयरोखठोकरोकठोक: दिलदार ‘इंडिया’ का नया पौधा बंगलुरु में बना, दिल्ली में बिगड़ा!

रोकठोक: दिलदार ‘इंडिया’ का नया पौधा बंगलुरु में बना, दिल्ली में बिगड़ा!

संजय राऊत

बंगलुरु में ‘इंडिया’ आघाड़ी (गठबंधन) की स्थापना होते ही मोदी-शाह ने दिल्ली में ‘एनडीए’ का जीर्णोद्धार किया। यही ‘इंडिया’ आघाड़ी का यश है। देश में लोकतंत्र की हर दिन हत्या हो रही है। ईडी, सीबीआई, ईवीएम जैसे हथियार देश में जनता को गुलामी की ओर धकेल रहे हैं। राजनीति में दिल बड़ा रखना पड़ता है। वह दिलदारी ही खत्म हो गई थी। बंगलुरु में उस दिलदारी का नया पौधा उगते देखा गया।

कांग्रेस की मजबूत सत्तावाले कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में देश की २६ प्रमुख पार्टियों का एक सम्मेलन संपन्न हुआ। देश में वर्ष २०२४ में लोकतंत्र वालों का राज आए। धर्मांधता व तानाशाही का शासन समाप्त हो, इसके लिए ये सभी एक साथ आए और उनका साथ आना सफल रहा। क्योंकि उसी दिन हमारे प्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को बिखरे हुए ‘राजग’ यानी ‘एनडीए’ को एकजुट करके दिल्ली में बैठक करनी पड़ी। इसे बंगलुरु की बैठक की सफलता ही कहना होगा। बंगलुरु के लिए एयरपोर्ट पर जाते वक्त मुंबई के एक होटल में राष्ट्रवादी से भाजपा में शामिल हुए नेता से अचानक मुलाकात हो गई। वे ‘एनडीए’ की बैठक के लिए दिल्ली जा रहे थे। मैंने कहा, ‘हम बंगलुरु जाने के लिए निकले हैं।’ उस पर उनका सवाल था, ‘वहां जाकर अब क्या हासिल होगा?’
‘क्या होगा? यह अंतत: जनता ही तय करेगी। मोदी जिन्हें अपना व्यक्तिगत शत्रु समझते हैं, वो सभी देशभक्त दल एकजुट हों, उनके नेता एक साथ रहें, ऐसी पूरे देश की इच्छा है। उन्हें आपने पूरी तरह से निराश किया है,’ ऐसा मैंने कहा। इस पर उन्होंने कहा, ‘विपक्षी दलों की एकता, अब किसलिए?’
‘मोदी-शाह को पराजित करने के लिए!’
‘मोदी को पराजित क्यों करना है?’ सवाल।
‘देश में तानाशाही खत्म करके लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए। आज सत्ता का, संपत्ति का विकेंद्रीकरण पूर्णत: समाप्त हो गया है। सत्ता व संपत्ति महज दो-चार लोगों के हाथों में पहुंच गई है। यह तस्वीर आपको जंचती है क्या?’ मेरा सवाल।
‘तस्वीर अच्छी नहीं है, लेकिन हमें चक्की पीसने नहीं जाना… इसलिए मोदी चाहिए।’ ऐसा उन्होंने कहा।
‘२०२४ में मोदी जाएंगे। तब क्या करेंगे?’
‘वे सचमुच जाएंगे क्या?’
‘जाएंगे ये तय है!’ मैंने दृढ़तापूर्वक कहा। उनके मन में दिल्ली की सत्ता को लेकर भय था। यह बात उनकी बातों से जाहिर हो रहा था।

हम ही जीतेंगे!

१८ तारीख को बंगलुरु में २६ राजनीतिक दलों की बैठक हुई। उसी दिन दिल्ली के अशोक होटल में ‘एनडीए’ के रूप में ३८ दलों का सम्मेलन भाजपा ने आयोजित किया और मोदी ने उसमें हमेशा की तरह, हमेशा जैसा रटा-रटाया भाषण दिया। ‘वर्ष २०२४ में भी हम ही जीतेंगे। हमें ही मत देने का निर्णय जनता ने लिया है, ऐसा मोदी कहते हैं।’ हम ही जीतेंगे व हम ही दो-चार लोग सत्ता चलाएंगे। ये सब सुना तो लगा, हिंदुस्थान की राजनीति अब मतदाताओं पर निर्भर नहीं है। यह केवल मोदी, शाह, ईडी, सीबीआई, उद्योगपति अडानी और अंबानी तय करते हैं। इसके लिए तंत्र, मंत्र, धर्म सब कुछ प्रयोग किया जाता है। जो राघोबादादा ने उस काल में किया था। छोटे माधवराव पेशवा की मौत हो जाए, इसके लिए राघोबा ने अघोरी उपाय किए, जबकि आनंदीबाई मंत्र जाप करती थीं। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के लिए दिल्ली द्वारा गुवाहाटी-छाप राजनीति रची गई। लोकतंत्र मतलब मैं, मेरी ‘टोली’ के लिए चलाया गया शासन, ऐसी तस्वीर तैयार की गई। बुद्धिवाद, वैचारिक भूमिका, स्वच्छ राजनीति ये सभी विषय आम जनता के मनोरंजन के लिए रखे गए हैं, ऐसा प्रतीत होता है।
दुनिया बिल्कुल नहीं बदली है। क्योंकि जिन पर इसे बदलने की जिम्मेदारी है वे ही नहीं बदल रहे हैं, लेकिन आखिर में यह गड़बड़ी और कितने दिन चलेगी? यही सवाल है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रूमैन ने अपने टेबल पर तख्ती रखी थी।
‘’ultimate responsibility lies here’ उस पर ऐसा लिखा था। देश के मौजूदा अस्थिर हालात, जांच एजेंसियों के बल पर तोड़े जा रहे दल, राजनीतिक विरोधियों में जेल का डर और इसके माध्यम से गिराई जा रही सरकारें, देश के संकट में होने के बाद भी नहीं रुकने वाला भ्रष्टाचार, धर्मांधता, नेताओं के बीच संघर्ष ये सब देखकर जिम्मेदारी इस शब्द की ही मौत हो गई है, ऐसा लगने लगा है।

जीर्णोद्धार क्यों?

बंगलुरु में एकत्रित हुए सभी राजनीतिक दलों का माहौल उत्साहवर्धक था। उस दिन बंगलुरु हवाईअड्डे पर निजी विमानों की पार्किंग का नजारा देखने लायक था। १७ तारीख की शाम श्रीमती सोनिया गांधी ने सभी आमंत्रितों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया और पूरा ‘हिंदुस्थान’ उस रात एक-एक टेबल पर स्नेह भोज के लिए इकट्ठा हुआ नजर आया। सिर्फ मोदी और भाजपा का मतलब भारत नहीं है, यह उस रात स्पष्ट हो गया। संभवत: इसी वजह से अगले दिन आघाड़ी का नाम ‘इंडिया’ रखा गया होगा। तानाशाही के खिलाफ ‘इंडिया’ के एकजुट होने की वह तस्वीर प्रेरणादायी थी। बंगलुरु में ‘इंडिया’ एक साथ आया, इसलिए भाजपा ने दिल्ली में ‘एनडीए’ को इकट्ठा किया। इसमें ३८ पार्टियां थीं। उनमें से २६ दलों को उनके राज्यों में भी अस्तित्व नहीं है। कुछ पार्टियां तो केवल तहसील स्तर पर ही थीं। महाराष्ट्र से विनय कोरे, बच्चू कडू, गोवा से सरदेसाई उन ३८ में थे। इन २६ पार्टियों का एक भी सांसद नहीं, लेकिन ३८ पार्टियों का नया एनडीए बनाकर श्री मोदी अकड़ दिखा रहे हैं, जो कि व्यर्थ है। मोदी अकेले सभी पर भारी हैं! खुद मोदी ऐसा अक्सर छाती पीटते हुए बोल चुके हैं, लेकिन उन्हें भी अंतत: २०२४ के लिए ‘एनडीए’ का जीर्णोद्धार करना ही पड़ा।

देश की लड़ाई!

दिल्ली में मोदी और बंगलुरु में राहुल गांधी ऐसी उस बैठक की तस्वीर, लेकिन दिल्ली की बैठक में सभी गुलाम अथवा हाशिए पर पहुंचे दल थे। बंगलुरु में सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, केजरीवाल, नीतिश कुमार, हेमंत सोरेन, शरद पवार से लेकर पंजाब के भगवंत मान, लालू यादव, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी तक सभी जुझारू नेता थे। लड़ने वालों के पीछे अंतत: जनता खड़ी रहती है। ‘इंडिया’ नाम रखने के कारण आलोचना करने वालों को राहुल गांधी ने बंगलुरु में जवाब दिया। यह लड़ाई देश के लिए है, इसीलिए इसे ‘इंडिया’ नाम दिया है। जो कि उचित ही है। हम ही जीतेंगे व जनता हमें ही मत देगी, ऐसा कहने वालों का अहंकार बहुत समय तक नहीं टिकेगा। यह बंगलुरु की हवा ने साफ कर दिया। बंगलुरु में सभी नेताओं का दिलदारी से स्वागत करने में कांग्रेस ने पहल की। मुख्यमंत्री सिद्धरमय्या व उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार प्रत्यक्ष उपस्थित रहे।
२०१४ के बाद देश की राजनीति से दिलदारी का पूरी तरह से उच्चाटन हो गया है। उस दिलदार इंडिया का नया पौधा फिर से बंगलुरु की भूमि पर लग गया है।
२०२४ तक वह महावृक्ष बन जाए!

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