अनिल तिवारी
पहले मेरठ, फिर संभल। उत्तर प्रदेश में एक सप्ताह के भीतर कोल्ड स्टोरेज ढहने की दो गंभीर घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसने उत्तर प्रदेश की सरकारी अनदेखी और प्रशासकीय लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है। बीसियों मजदूरों की जान लेने या उन्हें गंभीर रूप से अपाहिज बना देनेवाले कोल्ड स्टोरेज के इन दो हादसों ने साबित कर दिया है कि यूपी में निर्माण नीति को लेकर सरकार की ‘कोल्ड’ पॉलिसी पहले भी जारी थी और वो अब भी बदस्तूर जारी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में जिस विकास की ताल रोज ठोकते हैं, यह उसकी जमीनी हकीकत है।
जहां शहर-शहर, गांव-देहात में रोज हजारों-लाखों अवैध निर्माण उग रहे हैं, उस प्रदेश में आज भी कोई कारगर निर्माण नीति न हो, या जो नीति हो भी तो उसे प्रभावी ढंग से लागू न किया जा रहा हो तो नतीजे घातक होना स्वाभाविक हैं। यूपी में आज भी घटिया दर्जे के निर्माण धड़ल्ले से जारी हैं। बिना किसी तकनीकी विशेषज्ञ की निगरानी में, बिना किसी सरकारी मापदंडों के पालन के, बड़े-बड़े निर्माण हो रहे हैं। लाखों टन वजन को सहने के लिए कमजोर कोल्ड स्टोरेज बन रहे हैं, घरों और इमारतों का निर्माण हो रहा है। यूपी के किसी क्षेत्र में नए निर्माणों की कोई प्रशासकीय जांच-परख नहीं है, निर्माणकर्ताओं पर कोई अंकुश नहीं है, कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। सब कुछ जुगाड़ और सुझाव पर जारी है। यह उत्तर प्रदेश का एक कड़वा सच है।
यहां बुलडोजर की सरकार जिस तत्परता से चुनिंदा निर्माण ढहाने की ‘अवैध’ नीति पर चल रही है, उतनी ही तत्परता से यदि समग्र निर्माण बचाने की वैध नीति पर काम करती, तो शायद कई निरपराधों की जिंदगी मौत के आगोश में जाने से बच गई होती। इतना ही नहीं, वर्तमान और विगत सरकारों ने किसी जानलेवा हादसे के बाद किसी को जवाबदेह बनाने से बेहतर, यदि पहले ही इसके जिम्मेदार को जवाबदेह बनने को प्रेरित किया होता तो संभल और मेरठ जैसे हादसों से गरीबों की छत नहीं उजड़ी होती। यूपी सरकार को इस दिशा में गंभीरता से काम करना चाहिए था। उन्हें चाहिए था कि समय रहते प्रदेश की जनता की सुरक्षा और उनके समुचित बीमा की आवश्यकता को सुनिश्चित करे। साथ ही उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए था कि प्रदेश में उनके शासनकाल में बना हर निर्माण सुरक्षित और मजबूत हो, तभी उत्तर प्रदेश का भविष्य भी सुरक्षित होता और सरकारी दावों पर जनता का विश्वास भी मजबूत।