मुंबई के वस्त्रोद्योग आयुक्तालय को नई दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय मोदी-शाह सरकार ने लिया है। विधानसभा में विपक्ष ने जब इस पर सवाल पूछा तो देवेंद्र फडणवीस ने अंधभक्तों को भी शर्मिंदा कर दे ऐसा स्पष्टीकरण दिया। कार्यालय मुंबई में ही रहेगा और कपड़ा विभाग के आयुक्त अब से दिल्ली में बैठेंगे। श्री फडणवीस का इस तरह का कहना तथ्यहीन है। आखिर आयुक्तालय का मतलब क्या होता है? यदि आयुक्त ही कार्यालय में नहीं होगा तो कार्यालय और उसके सौ-पांच सौ कर्मचारियों का क्या महत्व है? वस्त्रोद्योग आयुक्तालय को दिल्ली के रास्ते अमदाबाद स्थानांतरित करने का यह दांव है। सीधे गुजरात ले गए तो टकराव होगा। इसलिए कमिश्नर को पहले दिल्ली ले जाएं और जब सब कुछ शांत हो जाए तो उनकी रवानगी गुजरात में कर दें। इससे अलग और कोई साजिश हो ही नहीं सकती, लेकिन महाराष्ट्र के इस नुकसान पर मुख्यमंत्री कुछ नहीं बोल रहे हैं और उपमुख्यमंत्री अर्थहीन जवाब देकर भाग जाते हैं। विधानसभा में इस पर और आक्रामक तरीके से घेराबंदी करनी चाहिए थी। लगता है ऐसा नहीं हुआ। बाघ जैसे महाराष्ट्र को बकरी बनाकर उसकी पूंछ से खेलने की तकनीक दिल्ली ने शुरू की है, यह घातक है। वस्त्रोद्योग आयुक्तालय को महाराष्ट्र से भगा ले गए और बदले में ‘बुकी’ अनिल जयसिंघानी को गुजरात ने मुंबई भेज दिया। ‘वांटेड बुकी’ को पकड़ने के लिए गृहमंत्री ने जितनी मेहनत की, उतनी ही मेहनत वस्त्रोद्योग आयुक्तालय को मुंबई में बनाए रखने की होती तो राज्य का भला हो जाता। एक पैâशन डिजाइनर ने गृहमंत्री के घर में घुसकर उनके परिवार को एक करोड़ रुपए रिश्वत देने की हिम्मत दिखाई और इस मामले में अनिल जयसिंघानी को गुजरात से पकड़कर लाए। यानी यहां भी गुजरात कनेक्शन है। इस अनिल जयसिंघानी पर वास्तव में किसकी सरपरस्ती थी, यह एक स्वतंत्र, निष्पक्ष जांच का विषय है लेकिन क्या अब हमारे राज्य और देश में कुछ भी ‘निष्पक्ष’ रह गया है? इसलिए वस्त्रोद्योग आयुक्तालय गया और अनिल जयसिंघानी महाशय आए। मुंबई को अच्छी तरह से नोचा जाए और सजे हुए ‘खोके’ भरकर कचरा भेजने की मोदी-शाह की पक्की नीति दिखाई देती है। देश में मुंबई का जो महत्व है, उसे कम करने का बीड़ा इन लोगों ने उठा रखा है। महाराष्ट्र की कई परियोजनाओं को पहले ही गुजरात भगा ले गए। मुंबई के महत्वपूर्ण कार्यालयों को स्थानांतरित कर दिया। मुंबई इसके आगे देश की आर्थिक राजधानी न रहे, इस दृष्टिकोण से मोदी-शाह के कदम पड़ रहे हैं। सही अर्थों में मुंबई को गुजरात से जोड़ने की साजिश थी और है। कुछ न कर सके तो मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बना देना और महाराष्ट्र का मुंबई पर से अधिकार छीन लेना यह उनकी नीति है। पांच-पचास खोकेवालों ने भले ही मिट्टी खा ली हो लेकिन महाराष्ट्र की मराठी जनता उबलकर बाघ जैसे छलांग लेगी, इस डर से वे पीछे से वार कर रहे हैं। पहले जब दुनिया के नेता हिंदुस्थान के दौरे पर आते थे तो वे एक बार मुंबई आते ही थे लेकिन पिछले सात-आठ वर्षों में क्या दुनिया के एक भी बड़े नेता को मुंबई में अवतरित होने दिया गया? सभी वैश्विक नेताओं को दिल्ली से पहले अमदाबाद में उतारा जाता है, यह उसी मकसद से। मुंबई देश की क्रिकेट की ‘पंढरी’ है, लेकिन प्रधानमंत्री विदेशी मेहमानों के लिए विशेष क्रिकेट प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते हैं, वह भी सिर्फ अमदाबाद में। यह सब सुनिश्चित तरीके से चल रहा है। एक तरह से इस मंडली ने देश की राजधानी यानी दिल्ली को भी महत्व देने से इनकार कर दिया है। प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं और सभी राज्य, शहर उन्हें समान रूप से प्रिय होते हैं, लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री का खेल ही निराला दिखाई दे रहा है। अंग्रेज हिंदुस्थान को लूटकर अपने इंग्लैंड ले जा रहे थे। उनका साम्राज्य पूरी दुनिया में था, लेकिन लूट का माल केवल इंग्लैंड की ही दिशा में जाता था। वैसा हमारे देश में शुरू हो गया है। सब कुछ गुजरात में जा रहा है और गुजरात को मिल रहा है, यह भावना प. बंगाल से लेकर बिहार तक सभी की है। ममता बनर्जी से लेकर तेजस्वी यादव तक कइयों ने इस पर बोला है। महाराष्ट्र के मन में भी यह बेचैनी है। वेदांता-फॉक्सकॉन, बल्क ड्रग पार्क, मेडिकल डिवाइस पार्क, टाटा एयर बस परियोजना को महाराष्ट्र से खींचकर गुजरात में ले जाया गया। मुंबई के बीकेसी में बननेवाले अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र को गुजरात के गांधीनगर में ले गए। कई राष्ट्रीय कार्यालय मुंबई से चले गए। एयर इंडिया से लेकर पेटेंट डिजाइन ट्रेडमार्क ऑफिस तक। मुंबई का हीरा व्यापार भी उठा ले गए। द्रौपदी के चीरहरण की तरह ही मुंबई का चीरहरण प्रतिदिन हो रहा है। अब यहां के वस्त्रोद्योग आयुक्तालय को भी भगा ले गए। मुंबई से सब कुछ छीनकर ले जाना मुंबई को बर्बाद करने की साजिश है। इसलिए मुख्यमंत्री पद पर एक ‘मिंधे’ को और उपमुख्यमंत्री पद पर एक ‘होयबा’ अंधभक्त को बिठाया गया है, यह स्पष्ट है।