मुख्यपृष्ठसंपादकीयकश्मीर में फिर बलिदान!... सरकार चुनाव में मशगूल!

कश्मीर में फिर बलिदान!… सरकार चुनाव में मशगूल!

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जैसे मोदी-शाह के लिए जंग का मैदान ही बन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह समेत पूरा कैबिनेट पांच राज्यों की चुनावी रणभूमि में उतर चुका है। जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में भारतीय सेना के दो कैप्टन और दो जवान शहीद हो गए हैं लेकिन मोदी-शाह भाजपा की जीत के लिए प्रचार में मशगूल हैं। ये वीर योद्धा आतंकवादियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। पांच राज्यों में सियासी जंग चल रही है और भाजपा, कांग्रेस समेत अपने सियासी दुश्मनों को दफनाने की तैयारी में है। चुनाव के अंतिम चरण में मोदी सरकार कांग्रेस और गांधी परिवार के स्वामित्व वाले अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ की संपत्ति जब्त करवा रही है। इस संपत्ति की कीमत करीब छह सौ करोड़ रुपए है। ‘नेशनल हेराल्ड’ समाचार पत्र की स्थापना पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी और ‘हेराल्ड’ ने स्वतंत्रता संग्राम के हथियार के रूप में काम किया था, लेकिन जिनका स्वतंत्रता संग्राम से कोई लेना-देना नहीं था, उन्होंने ‘नेशनल हेराल्ड’ पर कब्जा कर लिया और जीत का विकृत हास्य किया। लेकिन इसी दौरान, मोदी-शाह सरकार कश्मीर घाटी में आतंकवादियों को बड़ी मात्रा में धन मुहैया कराने वालों की कमर तोड़ने में विफल रही है। कश्मीर घाटी में चरमपंथी गतिविधियां, आतंकवाद को खत्म करने के लिए ‘नोटबंदी’ का जालिम उपाय श्री मोदी ने किया। आतंकी दो हजार के नकली नोट छापकर उसे चलन में ला रहे इसलिए उन गुलाबी नोटों को बंद किया, इसके बावजूद घाटी में जवानों का खून बहना बंद नहीं हुआ। क्योंकि मोदी-शाह को कश्मीर मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही करनी है। धारा-३७० हटाने का खेल हो या ‘पुलवामा’ नरसंहार, इन घटनाओं का इस्तेमाल सिर्फ वोट मांगने के लिए किया गया। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आरोप लगाया कि पुलवामा में ४० जवानों का नरसंहार मोदी सरकार का पाप था। ४० जवानों की हत्या पर दुखी होने की बजाय कुछ लोगों को आंतरिक राजनीतिक खुशी हुई, क्योंकि वे इस शहादत का इस्तेमाल २०१९ के लोकसभा चुनाव में वोट मांगने के लिए कर सकते थे और उन्होंने ऐसा किया भी। यह विकृति का एक रूप नहीं तो क्या है? साढ़े चार साल बाद भी जम्मू- कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हो सके। केंद्र सरकार चुनाव कराने से डर रही है। जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवा अभी भी बंद है और गाजा पट्टी की तरह मानो जनता वहां बंदी है। लोकतंत्र और आजादी का वहां गला घोंटा जा रहा है। विस्थापित कश्मीरी पंडितों का आक्रोश भाजपा का मन विचलित नहीं करता। २०१४ और २०१९ के चुनाव में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का वादा करनेवाले मोदी-शाह उसके बाद वहां फटके तक नहीं। कश्मीर मुद्दे का कोई समाधान नहीं है और मणिपुर अभी भी जल रहा है। मोदी-शाह मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ की सियासी जंग जीतने निकल पड़े हैं। मोदी-शाह मणिपुर समस्या पर बात करने को तैयार नहीं हैं, कश्मीर समस्या पर बात नहीं कर रहे हैं। वे केवल कांग्रेस और गांधी परिवार के बारे में बात करते हैं। ईडी, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके राजनीतिक दुश्मनों का कांटा निकाला जा सकता है, लेकिन मणिपुर, कश्मीर में आतंकवाद और सेना के जवानों की शहादत को नहीं रोका जा सकता। मणिपुर में हिंसा जारी है और कश्मीर में जवानों की हत्याएं नहीं रुक रही हैं। क्योंकि ये हथियारों की लड़ाई है। सेना के पूर्वी डिवीजन के कमांडर राणा प्रताप कलिता का खुलेतौर पर कहना है, ‘मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा एक राजनीतिक समस्या है और राज्य में हिंसा तब तक जारी रहेगी जब तक आम लोगों से लूटे गए सुरक्षा बलों के ४,००० हथियार बरामद नहीं हो जाते।’ किसी राज्य में सेना के शस्त्रागार पर हमला करके ४,००० हथियार लूट लिए जाते हैं और वही हथियार देश पर ताने जाते हैं। यह सब रोकने में विफल केंद्र में बैठी सरकार सिर्फ लोगों को गलतबयानी करके बेवकूफ बना रही है। कश्मीर में उग्रवादियों के पास हथियार हैं, मणिपुर में लोगों के पास हथियार हैं और सरकार या तो ‘मोदी’ स्टेडियम में, विश्व कप मैदान पर या पांच राज्यों के चुनावों में राजनीतिक विरोधियों पर हमला कर रही है। तस्वीर ये है कि देश खतरे में है और देश की सुरक्षा हवा में है। पिछले साल कश्मीर में आतंकी हमलों में कई पुलिसकर्मी, सेना के अधिकारी और जवान अपनी जान गंवा चुके हैं। उनके आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन सरकार को इसका न तो दुख है और न ही अफसोस। वे कांग्रेस मुक्त भारत, शिवसेना मुक्त महाराष्ट्र चाहते हैं, लेकिन आतंकवाद मुक्त कश्मीर और मणिपुर नहीं चाहते। वे पाक अधिकृत कश्मीर को लेने की बात करते हैं, लेकिन उनसे मौजूदा कश्मीर में जवानों की शहादत नहीं रोकी जा सकती। बुधवार को राजौरी जिले में आतंकियों से मुठभेड़ में दो कैप्टन और दो जवान फिर बलिदान की वेदी पर चढ़ गए। कश्मीर में बार-बार जवानों का खून बहाया जा रहा है, लेकिन दिल्ली पर चढ़ा सत्ता और चुनाव का नशा नहीं उतर रहा!

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