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साहित्य शलाका : हिंदी कविता में राष्ट्रीय भावना के सूत्रपात के विविध पक्ष

डॉ. दयानंद तिवारी

 

आधुनिक साहित्य में विशेष रूप से कविता का द्वितीय उत्थान महावीर प्रसाद द्विवेदी के नेतृत्व में गतिशील हुआ। इसीलिए इसका नामकरण द्विवेदी युग किया गया है। इस युग में राजनीतिक और सामाजिक नवजागरण का प्रभाव और भी गहन और व्यापक हो गया था। राष्ट्रीय संचेतना तथा सांस्कृतिक गरिमा के पूर्ण अहसास ने साहित्य को नई दिशा की ओर उन्मुख किया। इसी कारण से इस युग के लिए जागरण सुधार काल नाम भी प्रस्तावित किया गया है।
राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत हिंदी कवियों की हिंदी कविता में राष्ट्रीयता की भावना प्रमुख रही है। २०वीं शताब्दी के आरंभ में जब स्वाधीनता संग्राम में तीव्रता आ गई थी, उसी के परिणामस्वरूप हिंदी कविता में राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति आदि विषयों की प्रधानता हो गई। हिंदी कवि नवजागरण से प्रभावित हुए। इसी से प्रभावित होकर कवियों ने राष्ट्रीयता के गीत गाए। राष्ट्रीय सांस्कृतिक पुनरोत्थान में कवि मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ पुस्तक नवजागरण की अग्रदूत है।
इसमें देश के अतीत के गौरवगान से लेकर देशप्रेम की भावना का वर्णन मिलता है। इस काल में यदि राष्ट्रीय भावना या देश के बारे में लिखा जाता था तो उन कवियों की रचनाओं को जब्त कर दिया जाता था या फिर उन कवियों को क्रांतिकारी कहकर जेल में डाल दिया जाता था। राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत काव्य की यह परंपरा द्विवेदी युग में अपने उच्चतम शिखर पर थी। इसलिए इस काल में राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण काव्य लिखा गया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (१८६४-१९३८) हिंदी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ (१९००-१९२०) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने १७ वर्षों तक हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘सरस्वती’ का संपादन किया। हिंदी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। प्रेरणा से ब्रज-भाषा हिंदी कविता से हटती गई और खड़ी बोली ने उसका स्थान ले लिया। कविता की दृष्टि से वह इतिवृत्तात्मक युग था। आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्जवल अतीत, देशभक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा प्रेम वगैरह कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण शृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही। मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी बोली में आ नहीं पाए थे। इस युग के प्रमुख कवि- अयोध्या सिंह ‘हरिऔध’, रामचरित उपाध्याय, जगन्नाथ दास रत्नाकर, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी, मैथिलीशरण गुप्त, लोचन प्रसाद पांडेय, सियारामशरण गुप्त हैं।
छायावादी युग की कविता (१९१७-१९३६)
सन् १९२० के आस-पास हिंदी में कल्पनापूर्ण स्वछंद और भावुक कविताओं की एक बाढ़ आई। यह यूरोप के रोमांटिसिज्म से प्रभावित थी। भाव, शैली, छंद, अलंकार सब दृष्टियों से इसमें नयापन था। भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद लोकप्रिय हुई इस कविता को आलोचकों ने छायावादी युग का नाम दिया। छायावादी कवियों की उस समय भारी कटु आलोचना हुई, परंतु आज यह निर्विवाद तथ्य है कि आधुनिक हिंदी कविता की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि इसी समय के कवियों द्वारा हुई। जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा इस युग के प्रधान कवि हैं।
उत्तर-छायावाद युग (१९३६-१९४३)
यह काल भारतीय राजनीति में भारी उथल-पुथल का काल रहा है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, कई विचारधाराओं और आंदोलनों का प्रभाव इस काल की कविता पर पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध के भयावह परिणामों के प्रभाव से भी इस काल की कविता बहुत हद तक प्रभावित है। निष्कर्षत: राष्ट्रवादी, गांधीवादी, विप्लववादी, प्रगतिवादी, यथार्थवादी, हालावादी आदि विविध प्रकार की कविताएं इस काल में लिखी गर्इं। इस काल के प्रमुख कवि हैं- माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, हरिवंश राय ‘बच्चन’, भगवतीचरण वर्मा, नरेंद्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, रांगेय राघव।
प्रगतिवादी युग की कविता (१९४४-१९९०)
छायावादी काव्य बुद्धिजीवियों के मध्य ही रहा। जन-जन की वाणी यह नहीं बन सका। सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलनों का सीधा प्रभाव इस युग की कविता पर सामान्यत: नहीं पड़ा। संसार में समाजवादी विचारधारा तेजी से पैâल रही थी। सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुद्ध जनमत तैयार होने लगा। इसकी प्रतिच्छाया हिंदी कविता पर भी पड़ी और हिंदी साहित्य के प्रगतिवादी युग का जन्म हुआ। १९३० के बाद की हिंदी कविता ऐसी प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित है। १९३६ में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ के गठन के साथ हिंदी साहित्य में मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी आंदोलन की शुरुआत हुई। इसका सबसे अधिक दूरगामी प्रभाव हिंदी आलोचना पर पड़ा। मार्क्सवादी आलोचकों ने हिंदी साहित्य के समूचे इतिहास को वर्ग-संघर्ष के दृष्टिकोण से पुनर्मूल्यांकन करने का प्रयास आरंभ किया। प्रगतिवादी कवियों में नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और त्रिलोचन के साथ नई कविता के कवि मुक्तिबोध और शमशेर को भी रखा जाता है।
प्रयोगवाद-नई कविता युग की कविता (१९९०-अब तक)
दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात संसार में घोर निराशा तथा अवसाद की लहर फैल गई। साहित्य पर भी इसका प्रभाव पड़ा। ‘अज्ञेय’ के संपादन में १९४३ में ‘तार सप्तक’ का प्रकाशन हुआ। तब से हिंदी कविता में प्रयोगवादी युग का जन्म हुआ ऐसी मान्यता है। इसी का विकसित रूप नई कविता कहलाता है। दुर्बोधता, निराशा, कुंठा, वैयक्तिकता, छंदहीनता के आक्षेप इस कविता पर भी किए गए हैं। वास्तव में नई कविता नई रुचि का प्रतिबिंब है। इस धारा के मुख्य कवि हैं- अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, भारतभूषण अग्रवाल, बिहारी लाल हरित, मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय, जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, कुंवर नारायण, केदार नाथ सिंह।
इस प्रकार आधुनिक हिंदी खड़ी बोली कविता ने भी अल्प समय में उपलब्धि के उच्च शिखर सर किए हैं। क्या प्रबंध काव्य, क्या मुक्तक काव्य दोनों में हिंदी कविता ने सुंदर रचनाएं प्राप्त की हैं। गीति-काव्य के क्षेत्र में भी कई सुंदर रचनाएं हिंदी को मिली हैं। आकार और प्रकार का वैविध्य बरबस हमारा ध्यान आकर्षित करता है। संगीत-रूपक, गीत-नाट्य वगैरह क्षेत्रों में भी प्रशंसनीय कार्य हुआ है। कविता के बाह्य एवं अंतरंग रूपों में युगानुरूप जो नए-नए प्रयोग नित्य-प्रति होते रहते हैं, वे हिंदी कविता की जीवनी-शक्ति एवं स्फूर्ति के परिचायक हैं।
साहित्य शलाका के माध्यम से आज हम द्विवेदी युग के सूत्रधार महावीर प्रसाद द्विवेदी से इस चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं। साहित्य शलाका के आगामी कड़ियों में हम राष्ट्रीय काव्यधारा के देशप्रेम एवं देशभक्ति के प्रखर स्वर, नारी के प्रति संवेदनात्मक दृष्टिकोण, सामाजिक सुधार की भावना, बौद्धिकता की प्रधानता, धार्मिक भावनाओं के परिवर्तन, इतिवृतात्मकता, प्रकृति चित्रण आदि विषयों पर चर्चा के साथ विभिन्न कवियों को जानने और समझने का प्रयास करेंगे।

(लेखक श्री जेजेटी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर व सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और साहित्यकार हैं।)

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