मुख्यपृष्ठस्तंभसाहित्य शलाका : जन्मदिन विशेष...सांस्कृतिक परंपरा के कवि नरेश मेहता

साहित्य शलाका : जन्मदिन विशेष…सांस्कृतिक परंपरा के कवि नरेश मेहता

डॉ. दयानंद तिवारी

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के यशस्वी कवि श्री नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में हैं, जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नई व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। रागात्मकता, संवेदना और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल तत्व हैं, जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति पर्युत्सुक बनाते हैं। आर्ष परंपरा और साहित्य को नरेश मेहता के काव्य में नई दृष्टि मिली। साथ ही प्रचलित साहित्यिक रुझानों से एक तरह की दूरी ने उनकी काव्य-शैली और संरचना को विशिष्टता दी।
नई कविता के सर्वप्रमुख कवियों में से एक नरेश मेहता का जन्म मालवा के शाजापुर कस्बे में १५ फरवरी, १९२२ को हुआ। उनका नाम ‘पूर्णशंकर’ रखा गया। नरसिंहगढ़ की राजमाता ने एक काव्य सभा में उनके काव्यपाठ पर प्रसन्न हो उन्हें ‘नरेश’ की उपाधि दी। कालांतर में उन्होंने यही नाम रख लिया। नरेश मेहता हिंदी कविता में भारतीय आभिजात्य एवं सांस्कृतिक परंपरा के कवि कहे जाते हैं। नई कविता की अतिबौद्धिकता के प्रतिरोध में वह परंपरा के सांस्कृतिक-राग की ओर उन्मुख हुए। वेद-उपनिषद और रामायण-महाभारत महाकाव्यों की मिथकीय चेतना का उनके काव्य में प्रवेश हुआ। इस कारण उन्हें ‘वैष्णव परंपरा का कवि’ भी कहा गया है।
उनका काव्य-लेखन १९३५-३६ से आरंभ हुआ। मुक्तिबोध, प्रभाकर माचवे, नेमीचंद्र जैन, सोहनलाल द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान सरीखे कवियों से प्रशंसा पाकर वह उज्जैन में विद्यार्थी जीवन से ही कवि के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। कालांतर में वह पढ़ाई के लिए काशी गए, वहीं पंडित केशवप्रसाद मिश्र की प्रेरणा से वेदों की ओर उन्मुख हुए। वह ‘दूसरा सप्तक’ में शामिल प्रमुख कवियों में से एक हैं।
उनके साहित्यिक जीवन के निर्माण में उनकी पत्नी महिमा मेहता का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने न केवल उनके पारिवारिक आर्थिक भार को कम किया, बल्कि उन्हें साहित्य सृजन के लिए लगातार प्रेरित करती रहीं। दिल्ली, इलाहाबाद, उज्जैन आदि कई शहरों में अपना जीवन गुजारते हुए जीवन के उत्तरकाल में वह भोपाल आकर बस गए। यहीं २२ नवंबर, २००० को उनका देहावसान हुआ। उन्हें १९८८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार और १९९२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रमुख कृतियां
काव्य-संग्रह : बनपाखी! सुनो!!, बोलने दो चीड़ को, मेरा समर्पित एकांत, उत्सवा, तुम मेरा मौन हो, अरण्या, आखिर समुद्र से तात्पर्य, पिछले दिनों नंगे पैरों, देखना एक दिन, तुम मेरा मौन हो, चैत्या
खंडकाव्य : संशय की एक रात, महाप्रस्थान, प्रवाद पर्व, शबरी, प्रार्थना पुरुष, पुरुष
उपन्यास : डूबते मस्तूल, यह पथ बंधु था, धूमकेतु: एक श्रुति, नदी यशस्वी है, दो एकांत, प्रथम फाल्गुन, उत्तरकथा भाग-१, उत्तरकथा भाग-२
कहानी-संग्रह : तथापि, एक समर्पित महिला, जलसाघर
नाटक : सुबह के घंटे, खंडित यात्राएं
रेडियो एकांकी : सनोवर के फूल, पिछली रात की बरफ
यात्रावृत्त : साधु न चलै जमात
संस्मरण : प्रदक्षिणा: अपने समय की
संपादन : वाग्देवी, गांधी गाथा, हिंदी साहित्य सम्मेलन का इतिहास
अनुवाद : आधी रात की दस्तक
उनकी कविताएं राष्ट्रीय विचारधारा और समसामयिक घटना पर आधारित हैं। उन्होंने भारत के उन्नत भाल की कल्पना की है। उनकी प्रमुख कविताएं इस प्रकार देखी जा सकती हैं।
हिमालय के तब आंगन में
झील में लगा बरसने स्वर्ण
पिघलते हिमवानों के बीच
खिलखिला उठा दूब का वर्ण
शुक्र-छाया में सूना कूल देख
उतरे थे प्यासे मेघ
तभी सुन किरणाश्वों की टाप
भर गई उन नयनों में बात
हो उठे उनके अंचल लाल
लाज कुंकुम में डूबे गाल
गिरी जब इंद्र-दिशा में देवि
सोमरंजित नयनों की छांह
रूप के उस वृंदावन में!!
मां
मैं नहीं जानता
क्योंकि नहीं देखा है कभी-
पर, जो भी
जहां भी लीपता होता है
गोबर के घर-आंगन,
जो भी
जहां भी प्रतिदिन दुआरे बनाता होता है
आटे-कुंकुम से अल्पना,
जो भी
जहां भी लोहे की कड़ाही में छौंकता होता है
मेथी की भाजी,
जो भी
जहां भी चिंता भरी आंखें लिए निहारता होता है
दूर तक का पथ-
वही,
हां, वही है मां!!
वृक्षत्व
माधवी के नीचे बैठा था
कि हठात विशाखा हवा आई
और फूलों का एक गुच्छ
मुझ पर झर उठा
माधवी का यह वृक्षत्व
मुझे आकंठ सुगंधित कर गया
उस दिन
एक भिखारी ने भीख के लिए ही तो गुहारा था
और मैंने द्वाराचार में उसे क्या दिया?
उपेक्षा, तिरस्कार
और शायद ढेर से अपशब्द
मेरे वृक्षत्व के इन फूलों ने
निश्चय ही उसे कुछ तो किया ही होगा,
पर सुगंधित तो नहीं की
सबका अपना-अपना वृक्षत्व है
अंतत:
वे तब भीड़ में भी हुआ करते थे
शेरवानी और पायजामे में
फिर वे होते गए
मंच की सीढ़ियों पर तेज-तेज चढ़ती
साड़ी में से उझकी पड़ती
राजसी एड़ियां
और फिर
गोलियों से रक्षित शीशे वाले मंच पर पहुंचकर
मीलों दूर बैठाई गई जनता के लिए
बुलेट-प्रूफ जैकेट में
अंतत: राष्ट्र को समर्पित
एक राजकीय नमस्कार हो गए
निवेदन
जब तुम मुझे अपमानित करते हो
तब तुम मेरे निकष होते हो
प्रभु से प्रार्थना है
वह तुम्हें निकष ही रखे
‘महाप्रस्थान’ काव्य पांडवों के ‘स्वर्गारोहण’ विषय पर आधारित है। प्रस्तुत काव्य में कवि युधिष्ठिर के माध्यम से अर्जुन को सत्य की प्राप्ति, राज्य परित्याग का कारण, राज्य-व्यवस्था की अखुट शक्ति से उत्पन्न संकट, व्यक्तित्व की रक्षा, युद्ध के परिणाम से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं तथा अन्य बातों का बोध कराते हैं।

(लेखक श्री जेजेटी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर व सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और साहित्यकार हैं।)

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