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‘मांस-मदिरा मुक्त हो काशी, इसके हैं हम सब अभिलाषी’ के उद्घोष के साथ निकाली गई संत आग्रह पदयात्रा

उमेश गुप्ता / वाराणसी
‘मांस-मदिरा मुक्त हो काशी, इसके हैं हम सब अभिलाषी’ का नारा काशी के संत समाज ने रविवार की सुबह काशी में बुलंद किया। काशी के मठों-मंदिरों, पीठाधीश्वर-महंत, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने सामाजिक संस्था आगमन एवं ब्रह्म सेना के संयुक्त तत्वावधान में निकाली गई ‘संत आग्रह पदयात्रा’ में शामिल होकर एक स्वर में काशी को मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र घोषित करने का अनुरोध राज्य एवं केंद्र की सरकार से किया।
कश्मीरीगंज स्थित श्रीराम जानकी मंदिर से इस पदयात्रा का शुभारंभ ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज के लिखित भेजे गए पत्र के संबोधन से हुआ। अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी महाराज ने कहा कि यह संत आग्रह पदयात्रा नूतन काशी के पुरातन स्वरूप का एक अभिन्न अंग है। आधुनिकता और विलासितापूर्ण जीवन के आदी हो चुके लोगों के लिए यह एक चेतावनी है। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की परिचायक काशी नगरी का मांस-मदिरा से मुक्त होना इसके पौराणिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए अत्यंत अनिवार्य है। मैं प्रत्येक काशीवासी से आग्रह करना चाहता हूं कि इस अभिनव अभियान में अपनी वासनाओं की आहुति देकर इसे सफल बनाने के लिए कृतसंकल्पित हो जाएं, तभी उनका काशीवासी होना सही मायने में सार्थक होगा।
यात्रा की शुरुआत काशी के संत समाज ने भगवान शिव, प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के विग्रह का विशेष अर्चन-पूजन कर किया। इसके उपरांत ‘सनातनियों की है ये गुहार, संतों की बात सुने सरकार’, ‘पवित्र काशी शिव का धाम, मांस-मदिरा का यहां क्या काम’ आदि सूत्र वाक्यों का घोष करते हुए गणमान्य काशीवासियों के समूह ने पदयात्रा आरंभ की। इस दौरान प्रमुख पदयात्री संतों ने रेणुका देवी के मंदिर में जाकर ‘काशी को मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र’ बनाए जाने की कामना से पूजन- अर्चना भी की।
सुमेरुपीठ के शंकराचार्य नरेंद्रनंद सरस्वती ने कहा कि वैसे तो सप्तपुरियों में सम्मिलित सभी नगरियों का महात्म्य बहुत ही विशेष है, किंतु काशी का वैशिष्ट इसलिए बढ़ जाता है कि यहां जीवित मनुष्य को ज्ञान और जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति सहज रूप से होती है। इस महाश्मशान भूमि पर आदिदेव महादेव यहां दिवंगत होने वाले व्यक्ति के कान में स्वयं तारक मंत्र देते हैं। इस दृष्टि से संसार की दुर्लभ नगरी होने के नाते काशी में धार्मिक भावनाओं का पूर्णरूपेण सम्मान होना चाहिए। धार्मिक दृष्टि से मांस भक्षण और मदिरापान दोनों ही कृत्य न सिर्फ निंदनीय हैं, अपितु इन्हें पाप का कारण भी बताया गया है। काशी जैसी महातीर्थ नगरी जहां देवाधिदेव महादेव स्वयं भगवती पार्वती के साथ विराजमान रहते हैं, उस नगरी में यह पाप कदापि नहीं होना चाहिए। मैं भारत और उत्तर प्रदेश की सरकार से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि काशी को मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र घोषित कर इसके वैशिष्ट को बनाए रखने में अपना विशेष योगदान करें।
यात्रा के समापन पर शंकराचार्य कांची पीठाधीश्वर शंकर विजेंद्र ने अपने लिखित संदेश और आशीर्वाचन में कहा कि काशीवासियों द्वारा उठाई गई यह आवाज आज नहीं तो कल सत्ता संपन्न लोगों तक अवश्य पहुंचेगी। धर्मनगरी काशी को मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र उसी समय बना दिया जाना चाहिए था, जब मथुरा, अयोध्या और हरिद्वार बनाया गया था। देर से ही सही, किंतु काशी को धर्मनगरी के रूप में पूजन वाले लोग इसके समर्थन में खड़े हुए हैं तो उनका यह उद्यम सफल होकर ही रहेगा। संत आग्रह पदयात्रा में महंत शंकरपुरी महाराज, कर्मकांड मानस पं. श्रीनाथ पाठक ‘रानी गुरु’, रामभरत शास्त्री, गोविंददास महराज़, चल्ला सुब्बाराव शास्त्री, डॉ. राजीव श्रीगुरु, प्रो. विनय पांडेय, डॉ. सुभाष पांडेय, डॉ. के. निरंजन, रामबली मौर्य, पं. हरेंद्र उपाध्याय, पं. अशोक त्रिपाठी, राकेश जैन, राकेश मिड्ढा, डॉ. हरेंद्र राय, ज्योतिषी पवन त्रिपाठी, मनोज पांडेय, विकास त्रिपाठी,डॉ चंद्रमणि सिंह, ज्योतिष एवं भागवताचार्य जयन्तुजय शास्त्री, आर पी राय, अजय कुमार दुबे, प्रो. ह्रदय रंजन शर्मा, विजय मणि त्रिपाठी, राजेश शुक्ला, गोपाल शर्मा, अर्जुन सेठी, विनोद राव पाठक, कृष्ण मोहन पांडेय, बालक बाबा जी, कन्हैया पाठक, रामभरत ओझा, नमिता झा, अरुण ओझा, जयप्रकाश शर्मा, अमित उपाध्याय, मदन कुमार तिवारी आदि शामिल रहे।

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