तभी पार्टी और नेताओं की पीठ में घोंपे गए छुरे
सामना संवाददाता / मुंबई
ईडी से छुटकारा पाने के लिए भाजपा के साथ गए। अजीत पवार गुट के नेता छगन भुजबल ने कहा कि ईडी से छुटकारा पाने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा पुनर्जन्म हुआ है। इस बात का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपनी किताब में किया है। इससे महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। साथ ही एक बार फिर ये साबित हो गया है कि जांच एजेंसियों का डर दिखाकर ही शिवसेना और राकांपा को तोड़ा गया है। छगन भुजबल के बयान पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद संजय राऊत ने जोरदार भाजपा का `काला’ चिट्ठा खोलते हुए तंज भरे लफ्जों में कहा कि सभी को खुली सांस लेनी थी, इसीलिए पक्ष और नेताओं की पीठ में छुरे घोंपे। साथ ही पार्टी और उसके नेताओं की आलोचना की, क्योंकि हर कोई आजादी से सांस लेना चाहता है।
मीडिया से बातचीत में संजय राऊत ने कहा कि एकनाथ शिंदे से लेकर अजीत पवार तक सभी ने ईडी से बचने और खुद की चमड़ी बचाने के लिए पार्टी छोड़ दी। अगर ऐसा नहीं होता, तो भाजपा में शामिल होने के बाद प्रफुल्ल पटेल और कई अन्य लोगों की संपत्तियां छोड़ी नहीं गई होतीं। ईडी और सीबीआई की फाइलें अलमारियों में बंद नहीं होतीं। हसन मुश्रीफ, दिलीप वलसे-पाटील सहित शिवसेना के फूट कर लोग ईडी के डर से ही पलायन कर गए हैं। अब उन्हें डर नहीं लग रहा है, क्योंकि पिछले दो सालों में उन्होंने वह सब कुछ हासिल कर लिया है, जो वे हासिल करना चाहते थे। मुलुंड का पोपटलाल इन सभी को जेल में डालने वाला था, लेकिन अब उसकी भी आवाज बंद हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि छगन भुजबल के भतीजे जेल जाकर आए। उनकी संपत्ति अभी भी कुर्क है। ऐसे बहुत से लोग हैं। सभी खुलकर सांस लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने नेताओं और पार्टी की पीठ में छुरा घोंपा। अब क्यों लुका-छिपी खेल रहे हो?
…तो संघर्ष होने की है संभावना
१७ नवंबर को हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का स्मृति दिवस है। महाराष्ट्र के कोने-कोने से लोग शिवाजी पार्क आएंगे। इस कारण शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे की सभा को अनुमति मिलनी चाहिए थी, लेकिन एक दिन पहले दूसरी पार्टी द्वारा आवेदन करने के कारण वह जगह उन्हें मिल रही है। शाम को उनकी सभा होगी और पूरे दिन हमारा, बालासाहेब ठाकरे के चहेते आते रहेंगे, यानी उन्हें वहीं रोका जाएगा।
यह है इसके पीछे का मुख्य हथियार
क्या शिवसेना नेताओं पर भी दबाव था? यह सवाल पूछे जाने पर संजय राऊत ने कहा कि मेरे समेत कई लोगों पर था। मैंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंवैâया नायडू को पत्र लिखकर यह बात बताई थी। वह पत्र रिकॉर्ड में है। अनिल देशमुख, अनिल परब पर भी दबाव था। रवींद्र वायकर भाग निकले। वे कल तक हमारे साथ थे, अगले दिन चले गए। फाइल बंद हो गई। मनपा या अन्य अपराध वापस ले लिए गए। संजय राऊत ने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी तोड़ने के पीछे ईडी का दबाव मुख्य हथियार था। संजय राऊत ने कहा कि एकनाथ शिंदे शिवसेना और धनुष-बाण के बारे में बात न करें। मोदी, शाह की कृपा से उन्होंने धनुष-बाण हाथ में ले लिया है। शिवसेना और धनुष-बाण के साथ एकनाथ शिंदे मोदी और शाह के चरणों में झूठ बोल रहे हैं। ईडी के डर से कइयों ने दलबदल किया, लेकिन हम जैसे लोगों का पूरा जीवन हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे के साथ गुजर गया। हमने मुंह पर कहा है कि हम मर जाएंगे, लेकिन शरणागत नहीं होंगे, लेकिन कुछ कमजोर दिल के लोग भी होते हैं। शरीर बाघ का और कलेजा चूहे का होता है।
हम न मुड़े, न झुके
संजय राऊत ने छगन भुजबल के पुनर्जन्म वाले बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मैं स्वयं उस प्रक्रिया से गुजर चुका हूं। हम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते। हम इंसान हैं। पुनर्जन्म सब मिथ्या है। मूलत: हम मरे नहीं थे। हमारा स्वाभिमान जीवित था। संजय राऊत ने जोर देकर कहा कि हम न मुड़े, न झुके, हम डटे रहे और लड़ते रहे। इसलिए हम आज भी आत्मसम्मान के साथ जीवित हैं।