विद्यार्थियों की पढ़ाई हो रही प्रभावित
मानखुर्द में मनपा स्कूल से मुंह मोड़ रहे लोग
सामना संवाददाता / मुंबई
शिंदे सरकार के राज में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की धज्जियां उड़ रही हैं। मुंबई के पूर्वी उपनगर के मानखुर्द इलाके में स्थित मुंबई मनपा के ‘मुंबई पब्लिक स्कूल’ में ५५० छात्रों को पढ़ाने के लिए केवल दो शिक्षक ही उपलब्ध हैं। इसका असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ रहा है, उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है और इसके चलते अभिभावक मनपा के स्कूल से मुंह मोड़ रहे हैं और उन्होंने अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने का निर्णय लिया है।
तीन साल पहले हुई थी शुरूआत
मनपा स्कूलोें में पढाई के स्तर को उठाने के लिए कुछ साल पहले मुंबई के कई स्थानों पर ‘मुंबई पब्लिक स्कूल’ शुरू किए गए थे। इसी कड़ी में तीन साल पहले मानखुर्द इलाके के महाराष्ट्र नगर में भी इसकी शुरूआत की गई थी। इस स्कूल में वर्तमान में पहली से सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले ५६० विद्यार्थी हैं। तीन साल पहले जब स्कूल शुरू हुआ था तो यहां बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए अभिभावकों की भारी भीड़ उमड़ती थी। इसका कारण था कि अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को मिलने वाली गुणवत्तापुर्ण शिक्षा, वह भी पूरी तरह से निःशुल्क। कई अभिभावकों ने तो अपने बच्चों को निजी स्कूलोें से निकालकर इस स्कूल में दाखिला दिलाया था।
शिक्षकों के अभाव में स्कूल की दुर्दशा
पिछले दो वर्षों से इस विद्यालय में शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त है और इसका असर विद्यालय में छात्रों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। वर्तमान में इस विद्यालय में कक्षा एक से सातवीं तक की १४ कक्षाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन १४ कक्षाओं के लिए मात्र दो शिक्षक उपलब्ध रहने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अक्सर शिक्षकों को कुछ दिनों के लिए संविदा पर बुलाया जाता है। लेकिन कभी-कभी वह भी उपलब्ध नहीं होते हैैं, इसलिए छात्रों को पूरे दिन शिक्षकों के बिना स्कूल में बैठना पड़ता है।
स्कूल छोड़ रहे विद्यार्थी
इस स्कूल में पिछले दो साल से यही स्थिति है। वर्तमान में कुछ अभिभावकों ने इस स्कूल से मुंह मोड़ लिया है। नतीजा यह हुआ कि पिछले दो साल में इस स्कूल के करीब ४० से ५० विद्यार्थियों ने क्षेत्र के निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया है। एक अभिभावक ने कहा कि हमें शिक्षा नहीं मिल सकी। लेकिन हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए इस स्कूल में डालते हैं। लेकिन इस स्कूल में कोई शिक्षक नहीं होने के कारण बच्चे घर आकर भी कुछ नहीं पढ़ते हैं।