मुख्यपृष्ठधर्म विशेषसत् वाणी : मानव का शरीर चला कैसे है

सत् वाणी : मानव का शरीर चला कैसे है

मानव का शरीर पांच तत्वों से बना है। जल (रक्त), थल (हड्डी और मांस), वायु (दस रुद्र वायुएं), अग्नि (आत्मा) और आकाश (ऊर्जा धाराएं और नाड़ियां) इन पांच तत्वों के पांच प्रकार के स्वाद होते हैं। जल का खारा, पृथ्वी का मीठा, वायु का अम्ल, अग्नि का तीखा और आकाश का कड़वा। मानव शरीर में इन पांच स्वादों से पांच प्रकार की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। खारे स्वाद से लोभ की भावना उत्पन्न होती है। मीठे स्वाद से मोह की भावना उत्पन्न होती है। अम्ल स्वाद से काम की भावना उत्पन्न होती है। तीखे स्वाद से क्रोध की भावना उत्पन्न होती है। कड़वे स्वाद से अहंकार की भावना उत्पन्न होती है। अब भावना का अच्छा या बुरा उत्पन्न होना यह रूद्र वायुओं पर निर्भर करता है। पांच प्रकार की नाग वायु रुद्रों से बुरी भावनाएं उत्पन्न होती हैं। (नाग, कर्म, कीकल, देवदत्त और धनंजय) जिन भावनाओं के आवेश में आकर मानव बुरे कर्म संपन्न करता है। पांच प्रकार की प्राण वायु रूद्र वायुओं (प्राण, अपान समान, उदान और व्यान) से पांच प्रकार की अच्छी भावनाएं उत्पन्न होती हैं, जिससे प्राणी अच्छे कर्म संपन्न करता है। जब रक्त के माध्यम से तत्व आत्मा के संपर्क में आते हैं तो ये भावना हृदय से उत्पन्न होती है और मस्तिष्क में विराजे मन से टकराती है। मन इस भावना को विचार के रूप में तब्दील करता है और सोचने की क्रिया संपन्न करने हेतु बुद्धि को देता है। मानव की बुद्धि अनेक दिशाओं में सोचती है और अपनी सोच मन को व्यक्त करती है, जिसके उपरांत मन समझने की क्रिया संपन्न करता है। तत्पश्चात अपनी कर्म इंद्रियों को आदेश व ऊर्जा प्रदान करता है,। जिससे मानव शरीर कर्म संपन्न करता है। प्रत्यक्ष समय काल का मानव या तो मन की समझ को हावी कर लेता है। अपनी बुद्धि की सोच पर और शरीर से कर्म संपन्न कर रहा है या फिर अपनी ही बुद्धि की सोच को हावी कर रहा है। अपने ही मन की समझ पर और शरीर से कर्म संपन्न कर लेता है। प्रत्यक्ष समय काल के मानव को ज्ञान नहीं कि कौन-सा कर्म उसे समझदारी से संपन्न करना है और कौन-सा कर्म उसे होशियारी से संपन्न करना है। मानव के दुखी होने की यह बहुत बड़ी वजह भी है। मानव है कि समझदारी से अपने घर और रिश्तेदारों के साथ के कर्म संपन्न करे। जहां होशियारी का कोई काम नहीं है और व्यापार इत्यादि घर के बाहर वाले सारे कर्म होशियारी से संपन्न करें। जहां समझदारी का कोई काम नहीं। मानव मस्तिष्क का यह मन और बुद्धि का चक्र कुंडलिनी जागरण से पूर्ण रूप से छूटता है और तत्पश्चात मानव अपने मन और अपनी बुद्धि दोनों का सदुपयोग कर पता है।
– पं. राजकुमार शर्मा (शांडिल्य)
संपर्क – ७७३८७०७९२३

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