डॉ. रवींद्र कुमार
खबर है कि एक साहब ने एक राजस्वकर्मी की जूते से पिटाई कर दी और उसे यह बताया कि जीजा मंत्री हैं हमारे। जैसा कि अमूमन होता है। फौरी तौर पर दो गुट बन गए। एक साले की तरफदारी करने लग गया तो दूसरा उस ‘पिटित’ बोले तो पीड़ित की तरफ हो गया। साले की तरफ के लोग बोल रहे हैं कि यह राजस्वकर्मी समझता क्या है अपने आपको? अब अगर मंत्री जी के रिश्तेदारों का भी काम नहीं होगा तो आम आदमी को कितनी कठिनाई आती होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। साले साब का कहना है कि अगर ये छोटा सा काम भी नहीं हो सकता, तो जीजा के मंत्री बनने का फायदा क्या है? हमने तो जिज्जी ब्याही, इसलिए थी कि हमारे सब सरकारी काम झट से हो जाया करेंगे। मगर ये क्य? हो न हो ये राजस्वकर्मी एंटी-नेशनल होगा। या फिर विपक्ष का होगा दोनों में अब फर्क भी कहां रह गया है।
उधर राजस्वकर्मी की साइड वालों का कहना है कि मंत्री के साले हैं तो क्या सिर पर मूतेंगे। यहां टर्न से ही काम होगा। वो भी तब, जब सब कागजात पूरे होंगे। शिकायत करनी है तो कर दो। ट्रांसफर कराना है तो ट्रांसफर करा दो, मगर ऐसा नहीं हो सकता कि हमारे दफ्तर में कोई गाली-गलौज या रिश्वत देकर काम करा ले जाए। हमने तो बड़ा-बड़ा लिखवा भी रखा है ‘इस दफ्तर में रिश्वत लेना और देना दोनों वर्जित है’। साथ ही शिकायत के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के नाम, फोन नंबर भी दिए हैं। कई तो पूछने लग पड़े हैं कि ये रिश्वत इन्हीं अधिकारियों को देनी है जिनके नाम और फोन न. बोर्ड पर लिखे हैं? शायद इसीलिए नाम, नं. बोर्ड पर दिए हैं। देखिए सब कितना आसान कर दिया है। इसे कहते हैं ‘ईज ऑफ ऑफिस-ऑफिस’।
एक वर्ग का कहना है कि साले साब ने बताया ही नहीं कि वह किसके साले हैं। अब सभी किसी न किसी के साले होते हैं। कोई कब तलक सालों का हिसाब-किताब रखे। सालों का हिसाब-किताब रखे तो जीजा रखे। भला वो क्यूं रखे? अब सही भी है राजस्वकर्मी ऑफिस की फाइलें देखे या ‘किस्सा जीजा-साला’ देखे और सीधी-सीधी बात है साले साब को भरपूर विनम्रता से बताना चाहिए था कि वह अमुक के सगे साले हैं, अथवा अमुक उनके सगे जीजा हैं। आजकल छद्म रिश्ते भी बहुत चल निकले हैं। दादा हो, चाचा हो, चाची हो, बुआ हो, भतीजा हो, यहां तक कि भाई भी। जब एक से मैंने उसके भाई के बारे में गहरी पूछताछ की तो बोला साब मेरा गांव वाला है, मेरा तो भाई ही हुआ। क्या दीदी, क्या चाचा, क्या ताऊ, क्या मामा सब सियासत में उतर आए हैं। पहले पॉलिटिक्स में रिश्तेदारी इस हद तक नहीं थी। अब तो पॉलिटिक्स में रिश्तेदारी और रिश्तेदारी में पॉलिटिक्स ऐसे रच-बस गई है कि पहचानना मुश्किल है कि सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है। असली निपोटिज्म तो यहां है।
बहरहाल! यह पता नहीं चल सका कि जूते जैसे अस्त्र से पिटने के बाद फाइल निकल पायी या नहीं? यह एक गंभीर मामला है। यह प्रकरण न जाने कितने साले और जीजाओं का प्रेरणास्रोत बन चारों ओर दफ्तर-दफ्तर फैल जाएगा। यह एक महामारी है बिलकुल कोविड सरीखी। अब इंसान को कौन समझाए कि रिश्ते टेम्परेरी हैं, नश्वर हैं। अत: मनुष्य ने उसकी खोज कर ली है, जो शाश्वत है और वो है मुद्रा-भाव। नृत्य वाली मुद्रा नहीं बल्कि भाव पता लगाएं और भारत सरकार द्वारा जारी मुद्रा सौंप दें। स्वीकृत/अनुमोदित फाइल झट ले लें। इस हाथ दे, उस हाथ ले। भगवान ने इसीलिए दो हाथ दिए हैं। इसमें जीजा-साला न लाएं, वे किसी काम नहीं आएंगे। ये रिश्तेदारी नहीं राज-काज है। किंगशिप, किनशिप को नहीं पहचानती। न कोई किसी का साला। न कोई किसी का जीजा। आप सुने नहीं? न बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा…