मुख्यपृष्ठधर्म विशेषसत् वाणी : सृष्टि चक्र में जीव आत्मा का सफर

सत् वाणी : सृष्टि चक्र में जीव आत्मा का सफर

कुंडलिनी शक्ति आत्मा और मन को लेकर शिवधाम से धरती पर आती है। पृथ्वी के पहले का निवास स्थान सभी आत्माओं का शिवधाम ही है जो सातवें आसमान पर स्थापित है। हमारा मन सृष्टि कल्याण का एक संकल्प परमात्मा शिव से लेता है और इस सृष्टि चक्र में पंâस जाता है। हर आत्मा को चार प्रकार से जन्म लेने पड़ते हैं। चार प्रकार के जीव (जलज, अंडज, पिडंज और श्वेतज) और ८४ लाख योनियों में जन्म ग्रहण करने के पश्चात आत्मा को सात बार मानव शरीर की प्राप्ति होती है, जिससे वह अपने संकल्प को किसी मानव जन्म में पूर्ण कर ले और मोक्ष को प्राप्त कर लें क्योंकि मोक्ष की प्राप्ति संकल्प की पूर्ति के पश्चात ही होती है। अगर आत्मा इन सातों जन्मों में अपने संकल्प को पूर्ण नहीं कर पाती है तो उसे ५०० से ७०० साल प्रेत या पितृ योनि में भटकना पड़ता है और उसके बाद फिर से ८४ लाख योनियों में जन्म ग्रहण करना पड़ता है क्योंकि संकल्प की पूर्ति तो मानव योनि में ही संभव हो पाती है। पूर्ण ८४ लाख योनियां पार करने में आत्मा को लगभग ५००० वर्षों का समय लग जाता है। प्रत्यक्ष समय काल में असंख्य आत्माएं इस सृष्टि चक्र में फंसी भी हुई हैं और अधिकांश आत्माएं मानव जन्म में भी जीवन यापन कर रही हैं। मानव जीवन में आत्मा को अपने शरीर की कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करना होगा, जिससे उसके मन में उसके संकल्प का ज्ञान उत्पन्न होगा। प्रत्यक्ष समय काल में कोई भी मन अपने संकल्प का ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ है इसलिए पृथ्वी की आज यह दुर्दशा हुई पड़ी है। मानव का कल्याण संकल्पित जीवन यापन करने में ही होता है। प्रत्यक्ष समय काल में पूर्ण मानव योनि भटकी हुई है और आध्यात्मिक जीवन से पूर्ण रूप से दूर है क्योंकि प्रत्यक्ष समय काल का मानव धर्मी जीवन व्यतीत कर रहा है। अपने संकल्प के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मानव को आध्यात्मिक बनना पड़ेगा, जिसमें उसे शिव की आराधना, साधना, पूजा, यज्ञ और तपस्या करनी होगी। मानव को इन क्रियाओं का ज्ञान ग्रहण कर अपनी कुंडलिनी को जागना होगा क्योंकि कुंडलिनी शक्ति ही ज्ञान की देवी है और शिव की दासी भी। शरीर में जाग्रत होते ही यह शक्ति मन को विशेष ज्ञान से पूर्ण रूप से भर देती है और पूर्ण पृथ्वी पर सर्वोपरि ज्ञान ही माना गया है क्योंकि ज्ञान द्वारा ही कल्याण होता है।
पं. राजकुमार शर्मा (शांडिल्य)
संपर्क – ७७३८७०७९२३

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