मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनासत्यम् शिवम सुंदरम्

सत्यम् शिवम सुंदरम्

सत्यम शिवम सुंदरम,
आप और सिर्फ आप महामहिम।
आपको प्रणाम महामहिम,
आपका धन्यवाद महामहिम।
अपराजित लोकतंत्र की सांसें फिर चलने लगी,
एक बार फिर चहकती-महकती बयार बहने लगी।
हमारी आपकी सबकी चैन की सांस चलने लगी,
लोकतंत्र सुरक्षित है की घंटी चा‌रों तरफ बजने लगी।
आ रहा हूं मैं,
जा रहा हूं मैं।
कयास की इस आस में कुछ भी संभव है, लोकतंत्र की इस धरती पर सब कुछ संभव है।
-इं. पंकज गुप्ता, मुंबई

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