मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : तू मेडल की इच्छा मत कर

सटायर : तू मेडल की इच्छा मत कर

डॉ. रवींद्र कुमार

ओलिंपिक से हमारी टीमें लगभग खाली हाथ ही लौटती हैं। हम देशवासियों को इसकी आदत हो गई है, वैसे ही जैसे उन्हें ग्लानि और शर्म की हो गई है। हारी हुई टीमें एक साथ नहीं लौटती हैं तथा कैमरे से मुंह छिपाती फिरती हैं।
वास्तव में पदक न जीत पाने में हमारे खिलाड़ियों का कोई दोष नहीं है। दोष है, हमारे संस्कारों का। हमें तो सदैव यही शिक्षा दी गई है– तू कर्म किए जा, फल की इच्छा न कर। सो वत्स! तू तो ओलिंपिक में जाए जा, पदक की इच्छा न कर। ये जिंदगी फानी है। जीवन क्या है? – पानी का बुलबुला है, फिर ये भागदौड़, ये ईर्ष्या, ये द्वेष क्यों? अरे तू न जीता न सही। ब्राजील तो जीता। वो भी तो तेरे भाई हैं। वसुधेव कुटुंबकम की भावना का इस से बेहतर प्रदर्शन भला और क्या होगा। एक कोई देश स्लोवाकिया नामक है उसने भी पदक जीते हैं तो क्या हम उससे भी स्लो हैं? यह देश नक्शे में कहां है इसे ढूंढना उतना ही कठिन है जितना हमारे पदाधिकारियों को जिनका पता-ठिकाना उनसे भी गुप्त रखा गया जिनसे समन्वय और देख-भाल के नाम पर वो वहां पधारे थे।
अब कोई हमसे कहे कि गोला फेंको, भाला फेंको तो हमारे मन को अंदर तक चोट पहुंचती है। बापू के अहिंसावादी देश में ऐसे हिंसक खेल। न बाबा न।  मेडल या नो मेडल। पर नो खून खराबा। अब कुश्ती को ही लीजिए हमारे पहलवान यहां कितनों से कुश्ती करके तो सूची में अपना नाम जुड़वा पाए थे। बेचारे यहीं थक गए। वहां क्या खाक भिड़ते। सुना है जाते-जाते भी भिड़ंत जारी थी भ्रष्ट्राचार से, भाई-भतीजावाद से। हमारे मित्र अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ को एक नोटिस जारी कर रहे हैं कि हमारे विशाल और महान देश को देखते हुए उन्हें लोहे, लकड़ी, टिन, चमड़े, गत्ते और पेपर मेडल भी चलाने चाहिए। ये क्या कि आप सात समंदर पार जाएं मगर पदक-तालिका में आपका नाम दूर-दूर तक न हो। जब देखना हो, बॉटम से देखना पड़ता है।
तन्हा-तन्हा यहां पर जीना ये कोई बात है
कोई मेडल नहीं हाथ मेरे ये कोई बात है
हॉकी पर न जाने क्यूं हम अपना अधिकार समझते हैं, लेकिन जिस प्रकार की हमारी परफॉर्मेंस तथा पोलिटिक्स है हमें दस-बीस साल के लिए ओलिंपिक और टूर्नामेंट से अलग हो जाना चाहिए, नाहक ही इतनी विदेशी मुद्रा का अपव्यय होता है। कम से कम वो तो बचत होगी। कहते हैं हमारे हर दल में खिलाड़ियों से कहीं अधिक उनकी देखभाल को गए पदाधिकारी होते हैं, यह भी गलत है हमें अपने खिलाड़ियों की इतनी देखभाल भी नहीं करनी चाहिए कि वे आराम तलब हो जाएं और मेडल जीतना उनकी प्राथमिकता ही न रह जाए। वैसे सुनने में यह आया है कि  बेचारे खिलाड़ी ही पदाधिकारियों की जी हुजूरी करते फिर रहे थे और चिलम भरने में लगे थे।
एक सुझाव यह भी है कि भारत एक अनुदान प्रधान देश है। हमारे यहां दान लेने-देने की एक दीर्घ परंपरा रही है। कर्ण ने अपने सोने के कवच-कुंडल दान कर दिए थे। अत: ऐसे देश जिन्हें पदक मिले हैं उन्हें स्वेच्छा से कुछ पदक भारत को दान कर देने चाहिए। बदले में हम उन्हें ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ का आशीर्वाद दे सकते हैं। इस आशीर्वाद का कमाल हम अपने देश में तो देख ही रहे हैं जहां इतने पूत फले हैं कि दूध में खतरनाक रसायन मिलाने पड़ रहे हैं। पदक विजेता देशों को यह बात समझाई जा सकती है कि दान देने से उनका लोक-परलोक दोनों सुधरेगा।
दे दाता के नाम..!
क्या ही अच्छा हो यदि हमारे देश, काल, समाज और योग्यताओं को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ इन प्रतियोगिताओं को सम्मिलित करें।
बलात्कार: इस वर्ग में सामूहिक और एकल आयोजन कराए जा सकते हैं। इस खेल में अद्भुत टीम स्पिरिट का प्रदर्शन अक्सर देखने में आता है।
हत्याएं : इंडोर (घर में घुस कर) तथा आउटडोर (राह चलते)
घोटाले : इसमें अनेक स्वर्ण पदक भारत की झोली में गिरेंगे। अनेक प्रतियोगी देशों से तो वॉक ओवर ही मिल जाएगा। इसमें चीनी, चारा, सड़क, मस्टर रोल, यूरिया, मकान आवंटन, पेट्रोल, गैस सिलिंडर  जैसे ईवेंट्स कराए जा सकते हैं।
रिश्वतखोरी : कौन कितनी जल्दी और अधिक से अधिक रिश्वत खा सकता है और पचा सकता है। इस खेल के सभी वर्गों में भारत छा जाएगा। इसी प्रकार की अन्य प्रतियोगिताएं यथा मीटर मेनिपुलेशन, जिसमें पेट्रोल पम्प, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, बिजली-पानी के मीटर शामिल किए जा सकते हैं।
मिलावट: मिलावट के मेराथन में भी भारत आसानी से तमाम देशों के ऊपर अपनी जीत दर्ज करा सकता है। पेट्रोल, दूध, दाल, मसाले, शराब, चाय-पत्ती,  ओपन चैलेंज!
स्लो-फाइलिंग: याद है पहले एक स्लो-साइकिलिंग का कंपटीशन स्कूल में होता था, बस उसी तरह का कुछ। कोई प्रोजेक्ट हो, दफ्तर की फाइल हो, कोर्ट के मुकदमे हों।
पुल/सड़क निर्माण: पुल कितनी जल्दी गिरेगा या सड़क कितने मि. मी. पानी बरसने पर बह जाएगी।
इसी प्रकार की अन्य प्रतियोगिताएं करार्इं जा सकती हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी पवित्र-पावन-उर्वरा भूमि पर इतने सोने के मेडलों की बरसात होगी कि वह पुन: एक बार सोने की चिड़िया होने का गौरव प्राप्त करेगी।

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