मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : गोली खट्टी-मीठी

सटायर : गोली खट्टी-मीठी

डॉ. रविंद्र कुमार

पहले गोली केवल डॉक्टर लोग देते थे। लाल, पीली, हरी गोलियां! सिर-दर्द, पेट-दर्द की गोली, ताकत की गोली। टॉफी-चॉकलेट को भी हम बच्चे गोली ही बोलते थे और खुशी-खुशी गोली खाते थे। खट्टी-मीठी गोलियां। एक गोली होती थी जो युद्ध में चलती थी और गरीब सैनिक लोग देशभक्ति के नाम पर अपने-अपने देश के लिए सीने पर खाते थे।
आखिर में एक गोली वो थी जो फिल्मों में बॉस मारता था अपने राइवल गैंग के आदमियों को तो कभी अपने ही गैंग मेंबर को गोली मारता था। मजे की बात है कि जिस मेंबर को गोली मारनी होती थी उसे लास्ट तक, यानी गोली चलने तक, शक भी नहीं होता था कि गोली अब आई कि तब आई।
कुछ समय बाद दृश्य बदला और पटल पर आए नेता लोग, तरह-तरह के नेता, किस्म-किस्म के नेता, छोटे नेता, मंझोले, बड़े नेता, गांव के नेता, कस्बे के नेता, गोया ग्राम पंचायत से लेकर दुनिया के कोने-कोने में नेता लोग पैâले हुए हैं। माफिया जैसे हर क्षेत्र में हैं। वाटर- टेंकर माफिया, किडनी माफिया, बालू माफिया, पार्किंग माफिया, टेंडर माफिया, नकल माफिया, पेपर आउट करानेवाला माफिया, विदेश भिजवानेवाला माफिया आदि-आदि। इसी तरह कोई अपने आप को गांव का नेता बताता तो कोई अपने आप को दुनिया का। नेताओं की एक हॉबी होती है गोली देने की। वो हर समय, हर मीटिंग में, हर चुनाव में अवाम को गोली देते हैं। बस गोली के रंग और तासीर बदलती रहती है। बदलती क्या रहती है वो यकीन दिलाते हैं कि ये गोली आपकी गरीबी हटाकर आपको रातों-रात अमीर बना देगी। दूसरा आता है और बताता है कि उसकी गोली इंडिया को शाइनिंग बना देगी। मूर्ख! जब इंडिया शाइनिंग होगा तो तुम, तेरा गांव-शहर, बिरादरी अपने आप ही शाइनिंग करने लगेगी। कोई कहता है कि जो हुआ सो हुआ बस! अब तुम्हें ऐसे अंधेरे में, पेड़ पर नहीं रहने देंगे न ये पेड़ की छाल पहनने देंगे। आओ, बेझिझक पेड़ से नीचे उतरो, ये रथ तुम्हें मतदान बूथ तक वाया मंदिर लेकर जाएगा। जब तक लौटोगे, तुम लखपति होगे। तुम्हारे अच्छे दिन आ चुके होंगे। इस तरह चुनाव-दर-चुनाव गोली बदलती रहती है। आवाम हर बार नई गोली का यकीन कर लेती है। अब तो इस यकीन की गोल्डन जुबली रैली चल रही है।

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