मनमोहन सिंह
बात उस वक्त की है, जब सारा देश चंद्रयान तीन चंद्र मिशन की सफलता पर झूम रहा था। इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर ने उस वक्त एक बड़ी बात कह दी थी। उन्होंने कहा था कि इसरो के वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिकों की तुलना में पांचवां हिस्सा कमाते हैं, जिससे उन्हें अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए कम लागत वाले समाधान खोजने में मदद मिलती है। भले ही उनकी इस बात को नकारात्मक न मानते हुए सकारात्मक माना जाए फिर भी उन्होंने यह मान लिया था इसरो के वैज्ञानिकों की तनख्वाह कम है! क्या हम इसे इस तरह से भी मान सकते हैं कि यदि वैज्ञानिक की तनख्वाह बढ़ जाएगी तो अन्वेषण की लागत बढ़ जाएगी? इसरो के ही चीफ ने यह भी कहा था कि कम सैलरी स्ट्रक्चर की वजह से नए वैज्ञानिकों की इसरो पहली प्राथमिकता नहीं होता!
उस वक्त मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने चंद्रयान-३ के लिए बधाई देते हुए कहा था कि वैज्ञानिकों को १७ महीने से सैलरी नहीं मिली है। हालांकि, दिग्विजय सिंह के बयान पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का कहना था कि दिग्विजय का बयान देशद्रोही, विदेशी ताकतों से प्रेरित है।
आज इन सभी बातों का जिक्र करने की वजह यह है कि सरकार द्वारा पिछले दिनों विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पद्म पुरस्कार और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के समान ‘राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार’ (आरवीपी) की घोषणा की गई। चुनांचे इस महीने के अंत में ३३ वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (आरवीपी), जो मेधावी वैज्ञानिकों को सालाना पुरस्कार देने की आजाद भारत की लंबी परंपरा के प्रति वर्तमान सरकार का नया दृष्टिकोण है, से नवाजा जाएगा।
कहा जा रहा है कि यह बदलाव शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्कारों, जो कभी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा ४५ साल से कम उम्र के वैज्ञानिकों को प्रदान किए जाते थे, को खत्म करने के लिए किया गया है! इसमें एक प्रमाणपत्र, एक नकद पुरस्कार और कुछ अतिरिक्त मौद्रिक लाभ शामिल होते थे। आरवीपी ने इसकी जगह एक पदक और एक प्रमाण पत्र का प्रावधान कर दिया तथा इसका नाम बदलकर विज्ञान युवा-एसएसबी कर दिया। अन्य आरवीपी पुरस्कार -विज्ञान श्री, विज्ञान रत्न और विज्ञान टीम पुरस्कार- भी हैं। ये पुरस्कार ४५ साल से ज्यादा उम्र के उन वैज्ञानिकों के लिए होंगे, जिन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दिया है और साथ ही असाधारण योगदान वाले वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों की टीमों को भी दिए जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि सरकार के इस प्रयास को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। लेकिन सरकार की यह सोच कि वैज्ञानिक सिर्फ सम्मान और मान्यता पाने के लिए ही लालायित रहते हैं को भी बुनियादी तौर पर बदलने की जरूरत है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में बहुत से वैज्ञानिक न्यूनतम निधि व घटिया उपकरणों के सहारे और हतोत्साहित करने वाले वातावरण के बीच काम करते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबरों को हम वैâसे भूल सकते हैं? यह हमारे लिए गर्व का विषय हो सकता है कि वैज्ञानिक ऐसे माहौल में भी अपने कार्यों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। लेकिन गर्व करने उनकी तारीफ करने और उन्हें सम्मानित करने से क्या उनका माहौल उनकी आर्थिक चुनौतियों आदि की भरपाई हो जाएगी? यदि दिली तमन्ना है तो बेहतर यह होगा कि बजट के दौरान उनकी उपस्थिति को अनदेखा नहीं किया जाए। बजटीय आवंटन बढ़ा दिया जाए जिसके चलते वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक अनुसंधानों को अपेक्षाकृत ज्यादा फायदा होगा! तब जाकर ही हम कह सकेंगे जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान।