मुख्यपृष्ठसंपादकीयघोटालेबाज तानाजी!

घोटालेबाज तानाजी!

ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री देवाभाऊ ने उपमुख्यमंत्री शिंदे और उनके लोगों का जीना हराम करने की ठान ली है। मुख्यमंत्री ने शिंदे के अमृत काल में हुए भ्रष्ट लेन-देन को निलंबित करने की तैयारी कर ली है। इसमें स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर तानाजी सावंत के कार्यकाल की टेंडरबाजी भी शामिल है। चूंकि, मुख्यमंत्री ने तानाजी सावंत द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की साफ-सफाई के लिए दिए गए ३ हजार १९० करोड़ के ठेके की जांच के आदेश दे दिए हैं, इसलिए तानाजी सावंत पर विशेष विमान से बैंकॉक भागने की नौबत आ गई है। तानाजी सावंत के चिरंजीव एक महीने पहले ७० लाख रुपए खर्च कर मौज-मस्ती के लिए ‘खास’ विमान से बैंकॉक निकले थे। उनके पिता के दबाव में उनका विमान उतरवा दिया गया, लेकिन ७० लाख खर्च कर पूर्व मंत्री का बेटा एक विशेष विमान से ‘बैंकॉक’ जाता है। फिर बैंकॉक का खर्च अलग है। इतना पैसा कहां से आता है? इसका जवाब अब मुख्यमंत्री देवाभाऊ ने दिया। यह स्पष्ट है कि जब तानाजी सावंत स्वास्थ्य मंत्री थे, तब उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में घोटालों पर घोटाले कर खूब बोरियां भरीं और पैसे घर ले गए। श्री. फडणवीस ने अब स्वास्थ्य विभाग में हुए घोटालों की जांच शुरू कर दी है। तानाजी सावंत ने यह टेंडर गैरकानूनी तरीके से दिया। पुणे की एक कंपनी को राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की मशीनों से सफाई के लिए सालाना ६३८ करोड़ रुपए का ठेका दिया गया है। इसे देते हुए इस काम के लिए पहले की दरें बढ़ा दी गर्इं। पहले जिस साफ-सफाई के लिए प्रति वर्ष ७०-८० करोड़ का खर्च आता था अब एक साल के लिए सरकारी तिजोरी से
६३८ करोड़ रुपए
गिने गए। यह बात सामने आई कि तानाजी सावंत का संबंध इस कंपनी से है। यह ठेका ६ साल के लिए ३ हजार १९० करोड़ में दिया गया और यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार है। ३ हजार १९० करोड़ में से कितने करोड़ स्वयं तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री को मिले और कितना टक्का उनके राजनीतिक आकाओं के खजाने में जमा हुआ? इसकी भी जांच होनी चाहिए। शिंदे कुछ समय के लिए फडणवीस-१ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे और जब वे खुद मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने तानाजी को स्वास्थ्य मंत्री बनाया। दोनों ने मिलकर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को चौपट कर दिया। दवाओं की खरीद में घोटाला तो हुआ ही, मेडिकल उपकरणों से लेकर एंबुलेंस सेवाओं तक हर जगह हिस्सेबाजी शुरू हो गई। शिंदे के चिरंजीव और उनकी एक टोली चिकित्सा सहायता केंद्र चला रही थी और उन्हीं के जरिए स्वास्थ्य सेवा के सभी वित्तीय लेन-देन किए गए। इसलिए इस स्वास्थ्य घोटाले के मास्टरमाइंड भले ही तानाजी सावंत थे, लेकिन घोटाले के लाभार्थी ‘वर्षा’ बंगले पर थे। राज्य में चिकित्सा पदाधिकारियों, सिविल सर्जनों के तबादलों-बढोतरियों और नियुक्तियों में सीधे-सीधे करोड़ों का कारोबार हुआ। महाराष्ट्र में कुल १,२०० चिकित्सा अधिकारियों को ‘भर्ती’ करने के लिए प्रत्येक से चार से पांच लाख रुपए लेकर करोड़ों रुपए एकत्र किए गए। महात्मा ज्योतिराव फुले योजना को लागू करने के लिए निजी अस्पतालों से प्रति बेड एक लाख रुपए लिए गए और यह आज भी जारी है। इस योजना के बोगस लाभार्थियों के बड़े-बड़े बोगस बिल मंजूर कर करोड़ों रुपए स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंचाए जा रहे हैं। आदिवासी पाडों में कोई स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। गर्भवती महिलाओं को
चादरों और कंबलों के पालने
के जरिए तालुका तक ले जाना पड़ता है। उस दौरान रास्ते में ही महिलाओं की डिलिवरी हो जाती है। इससे बच्चे और मां की जिंदगी पर बन आती है। विदर्भ में छोटे बच्चों के शव कंधे पर लेकर घर जा रहे माता-पिता की तस्वीर भी सरकार को विचलित न कर सकी। मृतदेह ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिलती, लेकिन महाराष्ट्र में एंबुलेंस खरीदने के नाम पर १० हजार करोड़ का घोटाला हो गया। चूंकि शिंदे पुत्र कंपनी सुमित पैâसिलिटीज से संबंध थे, इसलिए इस कंपनी के लिए ‘टेंडर’ हासिल करने का दबाव था और ८०० करोड़ के मूल टेंडर को बढ़ाकर १० हजार करोड़ कर दिया गया और महाराष्ट्र का खजाना लूट लिया गया। इस लेन-देन में कम से कम छह हजार करोड़ रुपए का कमीशन किसके जेब में गया? शिंदे द्वारा पाले-पोसे गए केकड़ों ने स्वास्थ्य व्यवस्था के माध्यम से राज्य के खजाने को खाली करने का काम किया। बाद में विधानसभा चुनाव में यही पैसा आया और मतदाताओं को ५-१० हजार भेजकर वोट खरीदे गए। इस भ्रष्टाचार के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां उड़ गर्इं। बहुत से गरीबों को दवा नहीं मिली। एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हुर्इं, जिसके चलते उन्होंने तडप-तड़पकर प्राण छोड़ दिए होंगे, लेकिन भ्रष्टाचार के पैसे पर किसी ने चुनाव लड़े हैं तो किसी के छोरे मौज-मस्ती के लिए विशेष विमान से ‘बैंकॉक’ चले गए। मुख्यमंत्री फडणवीस ने अब स्वास्थ्य मंत्री के रूप में तानाजी सावंत के कार्यकाल के ३,९०० करोड़ रुपए के ठेके को रोक दिया है, लेकिन यह केवल हिमशैल की ऊपरी नोक है। स्वास्थ्य विभाग का सड़ा हुआ कामकाज महाराष्ट्र पर एक धब्बा है। मुख्यमंत्री ने सख्त कदम उठाए हैं। उन कदमों के नीचे गरीबों की दवाएं चुराने वाले कुचले जाएं!

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