दुनिया की इस भीड़ में
हर शख्स यहाँ अकेला है,
कोई रोता है अपनी तकदीर पर,
तो कोई देख औरों को जलता है।
प्रेम जब हो दिल से सच्चा,
तो अनजाने भी रिश्ते निभाते हैं,
वरना अपने भी अपनों को
हर मोड़ पर भुला देते हैं।
मन की व्यथा को कौन समझे,
दिल की कहानियाँ किससे कहें,
जब दर्द को समझ न पाए कोई,
तो खामोशी में ही राहत मिले।
मुखौटों की इस बस्ती में
चेहरों की पहचान कहाँ है,
हर मुस्कान के पीछे छिपी
एक नई कहानी है यहाँ ।
इस अंधकार में मिलेगी रोशनी,
बस उम्मीद का दिया जलाए रखना,
शायद किसी रोज़ इस दुनिया में
हमसाया किसी मोड़ पर मिल जाए ।
मुनीष भाटिया