सामना संवाददाता / नई दिल्ली
पाकिस्तान के टूटने की शुरुआत साल १९७१ में हो गई थी, जब भारत की मदद से बांग्लादेश बना। इसके बनने के पीछे भी २४ सालों का असंतोष था। असल में अस्तित्व में आने पर इस देश में पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) की आबादी ज्यादा थी। यह बांग्ला बोलने वाले लोग थे। ज्यादा संख्या के चलते वे उम्मीद कर रहे थे कि नए देश में उन्हें ज्यादा तवज्जो भी मिलेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
संसद में बांग्ला बोलने पर मनाही
पाकिस्तानी असेंबली में बांग्ला बोलने पर पाबंदी लगा दी गई, ये कहते हुए कि मुस्लिमों की भाषा उर्दू है। साथ ही इस्लाम से जोड़ते हुए उर्दू को राजकीय भाषा बना दिया गया। यहां तक भी चल जाता, लेकिन हद यह हुई कि बांग्ला बोलने वालों पर हिंसा होने लगा।
पूर्वी पाकिस्तान से होने लगा भेदभाव
बंगाली आबादी के साथ असमानता इतनी बढ़ी कि पूरा का पूरा पूर्वी पाकिस्तान ही खुद को अलग-थलग पाने लगा। यहीं से बांग्लादेश की नींव पड़ी। आग में घी डालने का काम सत्तर के दशक में वहां आए साइक्लोन ने किया। साइक्लोन में भारी संख्या में लोग मारे गए, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उन्हें राहत देने में काफी हेर-फेर की। इसके तुरंत बाद बांग्लादेश अलग होने के लिए भिड़ गया। खूब खून बहा। पाकिस्तान पर आरोप है कि उसने मानवाधिकार ताक पर रखते हुए जमकर वॉर क्राइम भी किए। आखिरकार, भारत के दखल देने पर पाकिस्तानी सेना को सरेंडर करना पड़ा, और बांग्लादेश बना।
क्यों अलग होना चाहते हैं बलूच
साल १९४७ में पाकिस्तान के बनने के साथ ही बलूच मुद्दे ने उसकी नाक में दम कर रखा है। आए दिन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की खबरें आती हैं कि उसने अपने यहां कोई धमाका कर दिया, जिसमें पाकिस्तान सरकार या चीन के लोग मारे गए। इसके अलावा भी कई चरमपंथी संगठन हैं, जो बलूच आजादी चाहते हैं। दरअसल, ये पाकिस्तान का वो हिस्सा है, जो कभी भी सरकार के बस में नहीं रहा। इसकी दो वजहें हैं- एक, पाकिस्तान ने धोखे से उसे अपने साथ मिला लिया और दूसरा, बलूचिस्तान मानता है कि पाकिस्तान उसके साथ सौतेला व्यवहार करता रहा।