-कार्रवाई के नाम पर प्रशासकीय खानापूर्ति
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
‘घाती’ सरकार द्वारा संचालित सेंट जॉर्ज अस्पताल में गत बुधवार की रात एक शर्मनाक घटना घटी है। इस सरकारी अस्पताल में इलाज मिलने में हुई देरी के कारण अस्पताल के ही एक कर्मचारी की मौत हो गई। आरोप है कि अस्पताल में इलाज की देरी के चलते यह चौथी मौत हुई है। हालांकि, कार्रवाई के नाम पर प्रशासनिक खानापूर्ति करते हुए तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, इस मामले की गहन जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है, जो एक सप्ताह में रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर संबंधित दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही मामले को तूल पकड़ने से बचाने के लिए सरकार की तरफ से तीन साल से ज्यादा समय से कार्यरत डॉक्टरों और कर्मचारियों का तबादला करने का निर्देश भी दिया गया है।
बता दें कि अनीश गत बुधवार की दोपहर घर में गिर गए थे। इसके चलते उनके सिर पर चोट लग गई थी। परिजन उन्हें इलाज के लिए शाम करीब छह बजे सेंट जॉर्ज अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ले गए थे। अनीश के परिजनों का कहना है कि जिस समय उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया था, उस समय अस्पताल में वरिष्ठ डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे इसलिए रेजिडेंट डॉक्टर से जांच कराने के बाद वह एक्स-रे के लिए गए। इसके बाद सिर पर टांके लगाने के लिए अस्पताल में कोई वरिष्ठ डॉक्टर उपलब्ध नहीं होने के कारण टांके लगाने में देरी हुई।
टांके लगाने के लिए पौने आठ बजे माइनर सर्जरी थिएटर में ले जाया गया। इसी दौरान अनीश को मिर्गी आ गई। रात करीब नौ बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इससे गुस्साए परिजनों और उनके सहयोगियों ने अस्पताल में हंगामा किया और डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इस मामले पर संज्ञान लेते हुए अस्पताल के तीन डॉक्टरों चिकित्सा अधिकारी डॉ. नबीला जबील, रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ. गोकुल भोले और डॉ. भूषण वानखेड़े को निलंबित कर दिया गया। साथ ही मामले की गहनता से जांच के लिए जे. जे. अस्पताल के सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. अजय भंडारवार, फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. विद्या नागर और फॉरेंसिक साइंस विभाग के प्रमुख व जी. टी. अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. भालचंद्र चिखलकर की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की गई है।
सात महीने में चौथी मौत
अस्पताल कर्मियों का आरोप है कि सेंट जॉर्ज अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण जनवरी से लेकर अब तक चार कर्मचारियों की मौत हो गई है। अस्पताल परिसर में रहनेवाले ३४ साल के विजेंद्र सोलंकी को हार्ट अटैक आने के बाद चार जनवरी को अस्पताल में लाया गया, जहां उन्हें पौने घंटे तक आईसीयू में बेड नहीं मिला और उन्होंने आईसीयू वॉर्ड के बाहर ही दम तोड़ दिया। इसी परिसर में रहनेवाली सेवानिवृत्त संगीता वाघेला नामक महिला की भी २१ जून को पौने घंटे तक इलाज न मिलने से मौत हो गई थी। इसी तरह एक और कमर्चारी की भी अस्पताल में इलाज न मिलने से मौत हुई थी।
बुरे दिन से गुजर रहा अस्पताल
कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना काल में अस्पताल को सबसे ज्यादा निधि मिली थी और चिकित्सा सुविधाओं को मजबूत करने का आदेश दिया गया था। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन की तरफ से इस आदेश को दरकिनार किया गया और ‘घाती’ राज में यह अस्पताल बुरे दौर से गुजर रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि मौजूदा समय में अस्पताल में केवल सर्जिकल, ऑर्थोपेडिक और नेत्र विभाग ही चल रहा है, जिनके विभागों के प्रमुख हफ्तेभर तक मुंह नहीं दिखाते हैं। कई विभाग कोरोना काल के बाद से ही बंद हैं। उनका कहना है कि अस्पताल में करीब ४० से ५० फीसदी पोस्ट खाली पड़े हुए हैं, जिन्हें भरने के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।