मुख्यपृष्ठस्तंभशिलालेख : सौंदर्यबोध, काव्य सृजन का मूल है!

शिलालेख : सौंदर्यबोध, काव्य सृजन का मूल है!

देश गांधी जयंती के उत्सवों में व्यस्त है। गांधी विश्व सभ्यता के विरल नायक हैं। बहुआयामी व्यक्ति थे। वैसे हिंदुस्थान का हर व्यक्ति बहुआयामी है। यूरोप में विशेषज्ञों की भरमार है, लेकिन जीवन के सभी क्षेत्रों का ज्ञान रखने वाले जनसामान्य हिंदुस्थान में होते हैं। हिंदुस्थान का प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा- थोड़ा दार्शनिक है। कामचलाऊ नास्तिक है। यथार्थवादी आस्तिक है। वह धार्मिक है, वह तार्किक है, वह साहित्यिक है, वह घरेलू वैद्य या डॉक्टर है। वह संगीत पारखी / प्रेमी है। वह परिवर्तनकामी है। लेकिन उसके व्यक्तित्व का सर्वोत्तम किसी एक या दो आयामों में ही प्रकट होता है। मनुष्य की सर्वोत्तम उर्जा प्रेम या युद्ध में चरम पर पहुंचती है। गांधी जी का सर्वोत्तम जीवन के सभी आयामों में प्रकट होता है। कदाचित इसका मूलकारण विश्व मानवता के प्रति उनका प्रेम है। संगीत हिंदुस्थानी ज्ञान परंपरा का प्रतिष्ठित अनुशासन है। गांधी जी ने लिखा, ‘हम पर संगीत का बहुत असर होता है। वेद मंत्रों की रचना संगीत के आधार पर हुई जान पड़ती है। मधुर संगीत आत्मा के ताप को शांत कर सकता है। अगर संगीत की शुद्ध शिक्षा मिले तो नाटक के गीत गाने में और बेसुरा राग अलापने में उनका (बच्चों) समय नष्ट न हो।’ आश्चर्यजनक है कि एक सत्याग्रही संयमी महात्मा संगीत के बारीक तत्वों और उसके आत्यंतिक प्रभावों से भी सुपरिचित था।
गांधी जी का सौंदर्य बोध अप्रतिम था। अनुभूतियां गहरी थीं। उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के वर्णन में लिखा, ‘नदी समुद्र की तरह विशाल जान पड़ती है। नदी की भव्य शांति मनोहर प्रतीत होती है। बादलों में छिपा हुआ चंद्रमा पानी पर अपनी हल्की रोशनी बिखेरे है। फिर भी मेरे मन को चैन कहां?’ यह राजनेता या पत्रकार की भाषा नहीं है। यहां गहन सौंदर्यबोध की भावाभिव्यक्ति है। १९२० में वे काशी में थे, लिखा है ‘आकाश में जैसे-जैसे प्रकाश बढ़ता जाता, वैसे-वैसे गंगा के पानी पर स्वर्णिम प्रकाश बिखरता जाता है और अंत में जब सूर्य पूर्णतया दृष्टिगोचर होता, उस समय ऐसा प्रतीत होता मानो पानी में एक वृहदाकार स्वर्ण स्तंभ प्रतिष्ठापित कर दिया गया है। उस भव्य दृश्य को देखने के बाद सूर्य की उपासना, नदियों की महिमा और गायत्री मंत्र के अर्थ को मैं अच्छी तरह समझ सका।’ इन शब्दों में प्राणवान काव्यरस का प्रवाह है। वेद नदियों की स्तुतियों से भरे पूरे हैं। यही अनुभूति गांधी जी को भी हुई थी। इसका मूल उनका सौंदर्य बोध था।
सौंदर्यबोध काव्य सृजन का मूल है लेकिन गांधी जी के सौंदर्यबोध में सुंदरतम् के साथ सत्य और शिवत्म भी हैं। मनुष्य जन्मजात सौंदर्यप्रेमी है। प्रकृति विविध रूपों से भरी पूरी है। यहां रूप-रूप प्रतिरूप सौंदर्य की छटा है। सौंदर्यबोध मनुष्य को सुकुमार, सुकोमल और निरहंकारी बनाता है। जिसमें जितना गहन सौंदर्यबोध वह उतना ही सुकोमल भावनिष्ठ। वैदिक ऋषि कवि भी सौंदर्यबोध से लबालब परिपूर्ण थे। दुनिया की सभी सभ्यताओं का विकास सौंदर्यबोध से हुआ। चार्ल्स डारविन ने लिखा है कि, ‘प्रकृति के रूपों को देखकर भावोत्तेजन होते हैं।’ भावोत्तेजन के संकेत मस्तिष्क में जाते हैं। मनुष्य की बुद्धि इन भावोत्तेजनों का विवेचन करती है। विवेचन से आया निष्कर्ष बोध संबंधित व्यक्ति का ‘सौंदर्यबोध’ होता है। आधुनिक काल में रवींद्रनाथ टैगोर का सौंदर्यबोध याद किए जाने योग्य है। गांधी जी का सौंदर्यबोध वैदिक ऋषियों की याद दिलाता है।
रवींद्रनाथ टैगोर का सौंदर्यबोध परिधिगत है। बेशक उसमें सत्यम्, शिवम् ओर सुंदरतम् की त्रयी है लेकिन उसमें रूप की सत्ता है। गांधी जी का सौंदर्यबोध रूप से परे जाता है। यजुर्वेद के ४०वें अध्याय (ईशावास्योपनिषद्) में सत्य का मुख हिरण्यपात्र से ढका हुआ बताया गया है – हिरण्यमय पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। प्रार्थना है कि यह हिरण्यपात्र हटाओ, ऋषि सत्य का दर्शनाभिलाषी है। यहां हिरण्य सौंदर्य से ढका हुआ सत्य देखने का आग्रह है। गांधी जी का सौंदर्य बोध भी ऐसा ही है बिल्कुल सीधा, सरल और निश्च्छल। रवींद्र नाथ का सौंदर्यबोध विशिष्ट है, गांधी जी का सौंदर्य बोध सरल और सामान्य है। १९८० के दशक में एक अर्थशास्त्री ई.एफ. सूमाखर ने अर्थशास्त्र की अपनी किताब का नाम रखा था ‘स्माल इज ब्यूटीफुल’। यहां लघुता ही सुंदरता है कि छोटे उद्योग, छोटी कारीगरी, घरेलू उत्पादन सुंदर है। सुंदरता में आकर्षण होते हैं। क्रांतियां सुंदर नहीं होतीं। उनके परिणाम सुंदरता ला सकते हैं। जय प्रकाश नारायण ने देश की स्वतंत्रता के बाद समग्र क्रांति की बात की थी। उनके एक लेख आह्वान का शीर्षक था ‘दि रिवूल्यूशन ब्यूटीफुल’। प्रख्यात् गांधीवादी चिंतक धर्मपाल जी ने अंग्रेजों के पहले के हिंदुस्थान को ‘ब्यूटीफुल ट्री’ की संज्ञा दी थी।
रवींद्रनाथ और गांधी जी समकालीन थे। एक विश्वकवि और दूसरा विश्वमानव। विश्व कवि रवींद्रनाथ के सौंदर्य बोध में मादकता थी। विश्वमानव गांधी के सौंदर्यबोध में सम्मोहन था। विश्व कवि के सौंदर्यबोध में भाव-दृश्य थे। यहां हृदय और रूप का वितान था। इसलिए उनका सौंदर्य बोध चाक्षुष था, इंद्रियबोध की परिधि में था। गांधी जी का सौंदर्यबोध चाक्षुष ही नहीं था, उसमें मानवीय अनुभूति का अमृत था, संगधा पृथ्वी की सुगंध थी। गांधी जी का सत्याग्रह इसी मानवीय सौंदर्यबोध का रूपांतरण था। संस्कृत के महाकवि माघ ने सुंदरता की परिभाषा दी थी ‘क्षणे क्षणे यन्नवता मुपैति, तदैव रूपं रमणीयताया: – सुंदर – रमणीय वह है जो प्रतिक्षण नया हो, आकर्षित करता रहे।’ सौंदर्य की ऐसी परिभाषा फिर दूसरी नहीं हुई। माघ की यह परिभाषा वैदिक ऋषियों की ‘सत्य’ की परिभाषा से मिलती जुलती है – जो त्रिकाल अबाधित है, वही सत्य है। सत्य पर समय की सत्ता का प्रभाव नहीं पड़ता। वह तीनों कालों में सत्य रहता है। इसी तरह जो बोध प्रतिक्षण नया और आकर्षक हो वही सौंदर्य है। गांधी जी के सौंदर्यबोध में प्रकृति की सनातन सरलता है।
प्रकृति का सौंदर्य स्वयं बोलता है। सौंदर्य प्रेमी आंखों से भी सुन लेते हैं। कलाएं प्रकृति की अनुकृति होती है। कला में व्यक्त सौंदर्य को भी स्वयं बोलना चाहिए। गांधी जी सौंदर्यबोध से युक्त थे। उन्होंने कहा, ‘चित्र ऐसे होने चाहिए जो मुझसे बोलें मेरे आगे नाचें, ऐसे चित्र दुनिया में बहुत थोड़े हैं।’ गांधी जी की दृष्टि में आत्मबल से युक्त स्वस्थ शरीर ही सुंदर होता है और जो स्वस्थ व सुंदर होता है, वह हथियारबंद यूरोपीय का सामना भी कर सकता है। उन्होंने लिखा, ‘भारत का ग्वाला भीमसेनी शरीर और बहुत अच्छे गठन वाला होता है। अपनी मोटी मजबूत लाठी से वह किसी भी तलवार वाले साधारण यूरोपीय का सामना कर सकता है।’ यहां गांधी का ध्यान स्वस्थ शरीर पर है, शरीर के सुंदर गठन पर है पर इससे भी ज्यादा हथियारबंद यूरोपीय से टक्कर लेने पर है। गांधी जी अंग्रेजों से लड़ते समय उन्हें हराने की बात कभी नहीं भूले। यूरोपीय सभ्यता को पराजित करने की शक्ति से लैस व्यक्ति को ही स्वस्थ और सुंदर कहा जाना चाहिए। गांधी जी हिंदुस्थानी स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। वे हिंदुस्थान को संस्कृति आधारित राष्ट्र मानते थे। उन्होंने ‘हिंद स्वराज‘ में लिखा है कि, ‘आपको अंग्रेजों ने बताया है कि हिंदुस्थान को अंग्रेजों ने राष्ट्र बनाया है। यह बात गलत है। हिंदुस्थान अंग्रेजों के पहले भी राष्ट्र था।’ गांधी ने सत्याग्रह के बल पर विश्व को प्रभावित किया। हिंदुस्थानी राष्ट्रवाद को जन-जन तक पहुंचाया। वे ब्रिटिश सत्ता से टकराए। मैंने स्वयं देखा है कि उसी सत्ता के इंग्लैंड स्थित संसद भवन के सामने गांधी जी की प्रतिमा है। उनकी स्मृति प्रेरक है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के
पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)

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